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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्य की पंक्तियों को समस्या रूप में लेकर श्लोकपूर्ति इस काव्य में की है। इस प्रकार घटखर्पर के एक श्लोक से मदन के चार श्लोक हुए हैं। 2) ले. कृष्णमिश्र। ___3) ले. अच्युत रावजी मोडक। ई. 19 वीं शती। कृष्णलीलातरंगिणी - 1) कवि नारायणतीर्थ। ई. 18 वीं शती। कृष्णलीला विषयक संगीतिका। इसमें 12 तरंग हैं। तथा कृष्णचरित्र के रुक्मिणीहरण प्रसंग तक घटनाओं का समावेश है। यह ग्रंथ 36 दाक्षिणात्य रागों में रचा गया है। 2) ले. बेल्लमकोण्ड रामराय । कृष्णलीलामृतम् - कवि- महामहोपाध्याय लक्ष्मण सूरि । ई. 19 वीं शती। कृष्णलीलास्तव - ले.कृष्णदास कविराज । ई. 16 वीं शती। कृष्णलीलोद्देशदीपिका - ले.कर्णपूर। कांचनपाडा (बंगाल) के निवासी। ई. 16 वीं शती। कृष्णविजयम् - 1) ले.-रामचन्द्र। 2) शंकर आचार्य । कृष्णविलास-1) कवि-प्रभाकर । 2) दीक्षित । 3) पुण्यकोटि । कृष्णविलासचम्पू - 1) ले.- लक्ष्मण। 2) नरसिंह सूरि। अनन्तराय का पुत्र । 3) वीरेश्वर । 4) कृष्णशास्त्री। कृष्णशतकम् - 1) मूल तेलगु काव्य का अनुवाद । अनुवादक चिट्टीगुडूर वरदाचारियर । 2) वाक्तोल नारायण मेनन । केरलवासी। कृष्णस्तुति - ले.धर्मसूरि। ई. 15 वीं शती। कृष्णायनम् - ले.भारद्वाज। सात सर्ग। कृष्णार्चनदीपिका - ले.चैतन्यमत के एक आचार्य जीव गोस्वामी। ई. 16 वीं शती। इस ग्रंथ में कृष्ण-पूजा की विधि विस्तार से बताई गई है। कृष्णार्जुनविजयम् (नाटक) - ले.सी.वी.वेंकटराम दीक्षितार । 1944 में पालघाट से प्रकाशित। अंक संख्या- पांच। अंतिम अंक में तीन दृष्य, अन्य प्रत्येक में दो दृश्य हैं। जिस पर श्रीकृष्ण क्रुद्ध थे, ऐसे गय नामक गन्धर्व की युधिष्ठिर द्वारा रक्षा की कथा इस का विषय है। कृष्णानंदकाव्यम् - ले.नित्यानन्द। ई. 14 वीं शती। कृष्णाभ्युदयम् ( नाटक) - ले.लोकनाथ भट्ट। ई. 17 वीं शती। प्रथम अभिनय कांचीपुर में हस्तगिरिनाथ की वार्षिक यात्रा महोत्सव के अवसर पर हुआ। विषय- कृष्णजन्म की कथा। जबलपुर से सन 1964 ई. में प्रकाशित। 2) वरदराजयज्वा। 3) तिम्मयज्वा। 4) यलेयवल्ली श्रीनिवासार्य। पिता- वेंकटेश। 5) वरदादेशिक। पिता- आप्पाराय। कृष्णामृततरंगिका- कवि- वेंकटेश। कृष्णामृत-महार्णव - श्रीकृष्ण की स्तुति में प्राचीन ऋषि मुनियों एवं कवियों के सरस पद्यों का यह संकलन है। संकलन कर्ता द्वैतमत के प्रतिष्ठापक मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती। कृष्णह्निकौमुदी (लघुकाव्य)- ले.कवि कर्णपूर ई. 16 वीं शती। कृष्णोदन्त - कवि- भास्कर। विषय- कृष्णकथा । केतकीग्रहगणितम् - ले.व्यंकटेश बालकृष्ण केतकर। केतकीवासनाभाष्यम - ले.व्यं.बा.केतकर । विषय-ज्यं केनोपनिषद् - यह सामवेद की तलवकार- शाखा के अंतर्गत नवम अध्याय है। अतः इसे तलवकारोपनिषद् या जैमिनीयउपनिषद् कहते हैं। इसके प्रारंभ में "केन" शब्द आया है (केनेषितं पताति) जिसके कारण इसे केनोपनिषद् कहा जाता है। इसके छोटे छोटे 4 खंड हैं जो अंशतः गद्यात्मक व अंशतः पद्यात्मक गुरु-शिष्य संवाद रूप है। प्रथम खंड में शिष्य द्वारा यह पूछा गया है कि इंद्रियों का प्रेरक कौन है। इसके उत्तर में गुरु ने इंद्रियादि को प्रेरणा देने वाला परब्रह्म परमात्मा को मानते हुए उनकी अनिर्वचनीयता का प्रतिपादन किया है। द्वितीय खंड में जीवात्मा को परमात्मा का अंश बता कर, संपूर्ण इंद्रियादि की शक्ति को ब्रह्म की ही शक्ति माना गया है तथा तृतीय व चतुर्थ खंडों में उमा हैमवती के आख्यान द्वारा अग्नि प्रभृति वैदिक देवताओं की सारी शक्ति ब्रह्ममूलक मान कर ब्रह्म की महत्ता और देवताओं की अल्पशक्तिमत्ता स्थापित की गई है। इसमें ब्रह्म-विद्या के रहस्य को जानने के साधन, तपस्या, मन-इंद्रियों का दमन तथा कर्तव्यपालन बतलाये गये हैं। आचार्यों ने इस पर भाष्य लिखे हैं। केरल-ग्रंथमाला - "मित्रगोष्ठी' पत्रिका के अनुसार 1906 में दक्षिण मलबार के कोट्टकाल नगर से इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका सम्पादन कालीकत के जैमोरिणवंशी करते थे। लगभग 64 पृष्ठों वाली इस पत्रिका में केरलीय संस्कृत वाङ्मय प्रकाशित होता था। केरलभाषाविवर्त - मूल मलयालम ग्रन्थ का अनुवाद । अनुवादक हैं- ई.व्ही. रामानुज नम्बुद्री (नम्पुतिरी) केरलाभरण-चम्पू -ले. रामचंद्र दीक्षित। ई. 17 वीं शती। पिता- केशव (यज्ञराम) दीक्षित जो "रत्नखेट" श्रीनिवासदीक्षित के परिवार से सम्बन्धि थे। इस चम्पू काव्य में इन्द्र की सभा में वसिष्ठ व विश्वामित्र के इस विवाद का वर्णन है कि कौनसा प्रदेश अधिक रमणीय है। इंद्र के आदेशानुसार मिलिंद व मकरंद नामक दो गंधर्व भ्रमण करने निकलते हैं और केरल की रमणीय प्रकृति पर मुग्ध होकर उसे ही सर्वाधिक श्रेष्ठ घोषित करते हैं। इसकी भाषा अनुप्रासमयी व प्रौढ है। यह ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है। केरलोदय- (महाकाव्य) - ले. एलुतच्छन्। केरलनिवासी। प्रस्तुत महाकाव्य को सन 1979 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। 82 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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