________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
भगवती दुर्गा की प्रसन्नता के उपाय इसमें प्रतिपादित हैं। इसके 5 पटलों में शक्ति कुमारी की पूजा विशेष रूप से वर्णित है। कुमुदिनी (उपन्यास) ले. चक्रवर्ती राजगोपाल | ले. मेघाव्रत शास्त्री आधुनिक तन्त्र के कुमुदिनीचन्द्र अनुसार 350 पृष्ठों का उपन्यास । । । कुरुकुल्लासाधनम् ले इन्द्रभूति विषय बौद्धतंत्र कुरुकेशगानुकरणम् शठगोप नम्मालवारकृत प्राचीन ( परंपरा के अनुसार ई.पू. 31 वीं शती) तामिळ काव्य नालायिरम् का अनुवाद। अनुवादक हैं रामानुज । भारत के प्रादेशिक भाषीय काव्य का प्रायः यह प्रथम संस्कृतानुवाद माना गया है। कुलचूडामणितन्त्रम् ( इस नाम से तीन विभिन्न ग्रंथ हैं ।) 1) श्लोक - 490। यह सात पटलों में पूर्ण है। 2 ) श्लोक504 । भैरव - भैरवी - संवाद रूप। विषय कुलदेवता की पूजा, कुलांगनाओं का निरूपण, यन्त्रलेखन, मद्यपान आदि की सिद्धि का प्रकार, कुलाचार - संकेत इत्यादि ।
www.kobatirth.org
-
3) श्लोक- 460। पटल- 71
विषय- कुल तन्त्रों की प्रशंसा, कौलों के कर्तव्य, कर्मो का निरूपण कुतशक्ति-पूजाविधि, कौलिकों के विशेष अनुष्ठान, महिषमर्दिनी के स्तव आदि ।
|
कुलदीक्षा ले. मनोदत्त । ई. 1875-76 । विषय- तंत्रविद्या । शिवस्वामी ने इस ग्रंथ का परिवर्धन किया। कुलदीपिका 1) श्लोक 360 कौलिकों के हित के लिए श्रीरामशंकर आचार्य ने इसकी रचना की। इसमें मंत्र पद का अर्थ, ब्रह्मनिरूपण, कुलाचार विधि, नित्यानुष्ठान, कुलपूजा, शिवालि संविदाशोधन, दीक्षा, होमविधि, प्रकारान्तर से शक्तिपूजा, बाग, बलिदान द्रव्य आदि विषय वर्णित है।
2) श्लोक- 940। कुलशास्त्र तथा तीन सम्प्रदायों का अवलोकन कर कौलिकों के हितार्थ कुलदीपिका की रचना की गयी। इसमें दस महाविद्याओं के मन्त्र, अनुष्ठान आदि विषय वर्णित हैं।
-
श्लोक- 361 विषय- कौलों द्वारा की कुलप्रकाशतन्त्रम् जाने वाली श्राद्धविधि का वर्णन ।
कुलप्रदीप ले. शिवानन्दाचार्य। 7 प्रकाशों में पूर्ण । विषय-: धर्म-प्रशंसा | कुलपूजा का समय, पूजा समय, द्रव्यकलशस्थापन के प्रयोग के चार प्रकार, कुण्ड गोल आदि द्रव्यों के ग्रहण की विधि, चक्रों का निरूपण आदि ।
ले. चन्द्रशेखर शर्मा । विषय कौलिकों
कुलपूजनचन्द्रिका की पूजाविधि। कुलपूजाविधि श्लोक- 801 इसमें किसी विशेष देवी का उल्लेख किये बिना पूजा वर्णित है। इस पद्धति में साधारण पूजाविधि की अपेक्षा अत्यल्प अन्तर है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कुलमतम् ले. श्री. कविशेखर । श्लोक 1120 16 पटलों में पूर्ण लेखन शकाब्द- 1602 विषय- श्रीन्यास, 1 पूजा, बालकसंस्कार, गुरुशिष्य- लक्षण, दीक्षाविधि, पट्कर्मविधि, वीरसाधन, शवसाधन, योगिनीसाधन, आकर्षणप्रयोग दीपनी विधान आदि ।
कुलमुक्तिकल्लोलिनी से आयानन्द (नवमीसिंह) श्लोक94501 22 पटलों में पूर्ण । इस ग्रंथ में सामान्यतः तांत्रिक पूजा का विवरण दिया गया है। कालीपूजा के प्रचुर उदाहरण दिये गये हैं। इसमें बहुत से तंत्र ग्रंथ और ग्रन्थकारों का उल्लेख है। कुलशेखर - विजयम् (रूपक) ले. दामोदरन् नम्बुद्री । ई. 19 वीं शती ।
कुलसंहिता (नवरात्रादिकुलसंहिता) श्लोक- 7681 शिव-पार्वती संवादरूप। विषय कालीतन्त्र, यामल, भूतडामर, कुब्जिकातन्त्रराज खेमरीसाधन, कालीगन्ज, बीजमन्त्र, कोलधर्म मत्स्य आदि शोधन, बलिदान, पात्रग्रहण, जप और तर्पण की विधि, कलियुग में वीरभाव को प्रशस्तता, साधना विधि, साधनादि के विभिन्न दोषों का निरूपण, कोलों के कर्तव्याकर्तव्य का विधान कॉल गुरु के लक्षण, कौलावार मे अधिकार, गुरु- प्रशंसा, कौल्लाहस्य आदि। कुलसारसंग्रह श्लोक- 107 पटल- 7। शिव-पार्वती संवाद रूप यह मौलिक तन्त्रग्रन्थ सोमभुजंगवल्ली का एक भाग है। कुलसूत्रषोडशखरकला ले. शितिकण्ठ।
1
कुलानन्द तंत्रम्- ले. मत्स्येन्द्रनाथ। इसमे भैरव व देवी के बीच संभाषण के कुल साठ श्लोक हैं। देवी की जिज्ञासा पूर्ण करने के लिये भैरव ने इसमें पाशस्तरोत्र, भेद, धूनन, कंपन, खेचर, समरस, बलीपलित-नाशन आदि यौगिक प्रक्रियाओं का वर्णन किया है।
कुलाचंनदीपिकाले महामहोपाध्याय जगदानन्द । कुलाचनपद्धति ले. सहतामनलाल दीक्षित । श्लोक संख्या
400 I
कुलोडीशम् (महातन्त्र) 1) श्लोक 925 4 पटलों में पूर्ण देवी-ईश्वर संवादरूप विषय कामेधरी, बजेधरी, भगमाला, त्रिपुरसुन्दरी और परब्रह्मरूपिणीनिया इन पांच शक्तियों का
ज्ञान ।
2) श्लोक- 1237 देवी-ईश्वर संवादरूप। 4 पटलों में पूर्ण । विषय- पंचभूतों के अधिष्ठाता (देवता) पांच शक्तियां । पंचम शक्ति के दीक्षा के दीक्षाभेद से वैष्णव, शैवादि भेद, पंचम शक्ति की ब्रह्मरूपता, उसकी उपासना के प्रकार, पंच कूट स्वप्नवती विद्या की साधना, गन्धर्वविद्या महाविद्या, नटी कापालिकी आदि आठ प्रकार की नायिकाएं उनके आकर्षण आदि के साधन के प्रकार, समयाचार, कुलाचार, सुराशापविमोचन, पंचाक्षरी विद्या, पंचमी विद्या की गायत्री मुद्रा पद की निरुक्ति,
For Private and Personal Use Only
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 77