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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्यशास्त्रीय ग्रंथ। [3] ले. रत्नभूषण। ई. 20 वीं शती। काव्यशास्त्रीय ग्रंथ । परिच्छेद संख्या 10। काव्यकौस्तुभ - ले. बलदेव विद्याभूषण। ई. 18 वीं शती। प्रकारणों के स्थान पर "प्रभा" शब्द प्रयुक्त। प्रभासंख्या नौ। विषय- काव्यशास्त्र। काव्यचन्द्रिका [१] - (अपरनाम अलंकार-चन्द्रिका) ले. रामचंद्र न्यायवागीश। काव्यशास्त्रीय ग्रंथ। रामचंद्र शर्मा तथा जगबन्धु तर्कवागीश द्वारा इस पर लिखी हुई टीका उपलब्ध है। [2] ले. कविचन्द्र। ई. 17 वीं शती। काव्य तथा नाट्यशास्त्र विषयक ग्रंथ। [3] ले. अन्नदाचरण तर्कचूडामणि। ई. 20 वीं शती। विषय- काव्यशास्त्र। काव्यचिन्ता - ले. म.म. कालीपद तर्काचार्य। विषय- काव्य शास्त्र। काव्यचूडामणि - ले. शाङ्गधर पुसदेकर । ई. 16 वीं शती। काव्यजीवनम् - ले.प्रीतिकर । विषय- काव्यशास्त्र । काव्यतत्त्वसमीक्षा - ले.नरेन्द्रनाथ चौधरी । ई. 20 वीं शती । काव्यतत्त्वावली- ले. महेशचन्द्र तर्कचूडामणि । ई. 20 वीं शती। काव्यदीपिका - ले. कान्तचन्द्र मुखोपाध्याय। ई. 20 वीं शती। काव्यशास्त्रीय ग्रंथ।। काव्यनाटकादर्श - संस्कृत और मराठी में इस मासिक पत्र का प्रकाशन धारवाड से सन 1882 में किया गया। इसमें संस्कृत के काव्य एवं नाटक ग्रंथों का सटीक प्रकाशन हुआ है। काव्यपरीक्षा - ले. श्रीवत्सलांछन भट्टाचार्य। ई. 16 वीं शती। विषय- काव्यशास्त्र। उल्लाससंख्या पांच । काव्यपेटिका - ले. महेशचन्द्र तर्कचूडामणि। गीतों का संग्रह । लेखकद्वारा प्रकाशित । ई. 20 वीं शती । काव्यप्रकाश - काव्यशास्त्र का एक सर्वमान्य ग्रंथ। ले. आचार्य मम्मट । काश्मीर निवासी। पिता- राजानक जैय्यट । यह ग्रंथ 10 उल्लासों में विभक्त है और इसके 3 विभाग हैं। कारिका, वृत्ति व उदाहरण। कारिका व वृत्ति के रचयिता के संबंध में मतभेद हैं और उदाहरण विविध ग्रंथों से लिये गए हैं। इसके प्रथम उल्लास में काव्य के हेतु, प्रयोजन, लक्षण भेद (उत्तम, मध्यम व अवरकाव्य) का वर्णन है। द्वितीय उल्लास में शब्दशक्तियों का एवं तृतीय उल्लास में व्यंजना का वर्णन है। चतुर्थ उल्लास में उत्तम काव्य (ध्वनि) के भेद व रस का चर्चात्मक निरूपण है। पंचम उल्लास में गुणीभूतव्यंग (मध्यम काव्य) का स्वरूप, भेद व व्यंजना के विरोधी तों का निरास एवं इसकी स्थापना है। षष्ठ उल्लास में अधम या चित्रकाव्य के दो भेदों (शब्दचित्र व अर्थवाक्य चित्र) का वर्णन है। सप्तम उल्लास में 70 प्रकार के काव्य दोष वर्णित हैं। इस विवेचन में प्रख्यात महाकवियों के भी दोष दिखाए हैं। अष्टम उल्लास में गुणविवेचन व नवम उल्लास में शब्दालंकारों (वक्रोत्ति, अनुप्रास, यमक, श्लेष, चित्र व पुनरुक्तवदाभास इत्यादि) का विवरण है। दशम उल्लास में 60 अर्थालंकारों, 2 मिश्रालंकारों (संकर व संसुष्टि) एवं अलंकार दोषों का विवेचन है। मम्मट द्वारा वर्णित अर्थालंकार हैं : उपमा, अनन्वय,उपमेयोपमा, उत्प्रेक्षा, संसदेह, रूपक, अपहृति, श्लेष, समासोक्ति, निदर्शना, अप्रस्तुतप्रशंसा, अतिशयोक्ति, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टांत, दीपक, मालादीपक, तुल्ययोगिता, व्यतिरेक, आक्षेप, विभावना, विशेषोक्ति, यथासंख्य, अर्थातरन्यास, विरोध, स्वभावोक्ति, व्याजस्तुति, सहोक्ति, विनोक्ति, परिवृत्ति, भाविक, काव्यलिंग, पर्यायोक्त, उदात्त, समुच्चय, पर्याय, अनुमान परिकर (यह मत अब सर्वमान्य हुआ है कि मम्मट की रचना परिकर अलंकार तक ही है। अल्लट ने यह प्रबंध परिकर के आगे पूर्ण किया) व्याजोक्ति, परिसंख्या, कारणमाला, अन्योन्य, उत्तर, सूक्ष्म, सार,समाधि, असंगति , सम, विषम, अधिक, प्रत्यनीक, मीलित, एकावली, स्मरण, भ्रांतिमान्, प्रतीप, सामान्य, विशेष तद्गुण, अतद्गुण व व्याघात। इन 60 अलंकारों के विविध भेद भी यथास्थान बताए हैं। प्रस्तुत ग्रंथ (काव्यप्रकाश) में शताब्दियों से प्रवाहित काव्यशास्त्रीय विचारधारा का सार-संग्रह किया गया है और अपनी गंभीर शैली के कारण यह ग्रंथ शांकरभाष्य एवं पातजंल महाभाष्य की भांति साहित्य-शास्त्र के क्षेत्र में महनीय बन गया है। इसी महत्ता के कारण इस ग्रंथ पर लगभग 75 टीकाएं लिखी गई है। इसकी सर्वाधिक प्राचीन टीका माणिक्यचन्द्र कृत "संकेत" है जिसका समय 1160 ई. है। आधुनिक युग के प्रसिद्ध टीकाकार वामनशास्त्री झलकीकर ने अपनी बालबोधिनी नामक प्रसिद्ध टीका में (ई. 1847) 47 टीकाकारों के संदर्भ सर्वत्र दिए हैं। काव्यप्रकाश की प्रमुख टीका तथा टीकाकार- (1) माणिक्यचन्द्र (ई. 1159)- संकेत 2) सरस्वतीतीर्थ (नरहरिआश्रमपूर्वनाम) टीका इ.स. 1242 में काशी में लिखी, 3) जयन्तभट्ट (जयन्ती) इ.स. 1264 4) श्रीवत्सलांछन (श्रीवत्स) 16 वीं शती "सारबोधिनी" 5) सोमेश्वर 14 वीं शती 6) विश्वनाथ 14 वीं शती, साहित्यदर्पणकार, 7) चण्डीदास (विश्वनाथ के पितामह का भाई, इसकी ध्वनिसिद्धान्तग्रंथ नामक रचना भी है) 8) परमानन्द तार्किकचक्रवर्ती, 15 वीं शती "साहित्यदीपिका" 9) महेश्वर न्यायालंकार 16 वीं शती। "सुबुद्धि" उत्तरार्ध टीका आदर्श 10) आनन्द राजानक- टीका निदर्शन, ई. 1765। (इसके अनुसार काव्यप्रकाश का गूढार्भ शिवस्तुति है)। 11) कमलाकर, काशीनिवासी महाराष्ट्र ब्राह्मण। काव्यप्रकाश टीका के व्यतिरिक्त इसकी अन्य रचनाएं संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /65 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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