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कात्यायनीय (वाररुच) वार्तिकपाठ - स्वतंत्र रूप से ग्रंथ अप्राप्य। पातंजल महाभाष्य में उल्लिखित वार्तिकों से इसके विषय में पता चला है। महाभाष्यकार ने पाणिनि तथा कात्यायन के लिये ही आचार्य शब्द का प्रयोग किया है। इससे वार्तिक पाठ का विशेष महत्त्व प्रतीत होता है। इसके अभाव में पाणिनि का व्याकरण अधूरा रह जाता है। समूचे वार्तिकों की निश्चित संख्या ज्ञात नहीं हो सकती क्यों कि कतिपय वार्तिक अनाम हैं, उनका कर्तृत्व निश्चित करना महान कठिन कर्म है। व्याकरण के मुनित्रय में पाणिनि के बाद कात्यायन का ही स्थान है। तीसरे मुनि पतंजलि हैं। कात्यायन की अन्य रचनाएं भी अप्राप्य हैं। कात्यायनोपनिषद् - एक गौण उपनिषद। इसमें ऊर्ध्वपुंड धारण की महत्ता बताई गयी है। इसके वक्ता हैं ब्रह्मा एवं श्रोता कात्यायन। कादंबरी - यह महाकवि बाणभट्ट की अमर साहित्यकृति है। यह गद्य काव्य चन्द्रापीड व पुंडरीक इन दो प्रमुख पात्रों के तीन जन्मों से संबंधित कहानी है। विदिशा का राजा शूद्रक एक बार अपनी राजसभा में बैठा था तब एक चांडालकन्या ने वहां आकर “वैशम्पायन " नामक एक तोता राजा को भेंट दिया। तोता मनुष्य वाणी में बोलने लगता है और कादंबरी की कथा सुनाता है। यह तोता भी कहानी का एक पात्र है। ___ कादंबरी के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध दो भाग हैं। पूर्वार्ध लिखने के बाद बाणभट्ट की मृत्यु हो गई। अतः उत्तरार्ध उनके पुत्र पुलिंद भट्ट या भूषण भट्ट ने उसी शैली में लिख कर पूर्ण किया।
बाणभट्ट ने कादंबरी के सभी पात्रों का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है तथा प्रकृति- वर्णन में उपमा, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास व परिसंख्या आदि अलंकारों का समुचित प्रयोग किया है। कादंबरी की तुलना एक सुगठित देवप्रासाद से हो सकती है। संस्कृत गद्य की ओजस्विता और भावाभिव्यंजकता की अनुभूति कराने वाली यह अप्रतिम गद्य काव्य कृति है।
"कादंबरी' की कथा का मूलस्रोत "बृहत्कथा" के राजा सुमनस् की कहानी में दिखाई पूडता है। क्यों कि इसमें भी "बृहत्कथा" की भांति शाप व पुनर्जन्म की कथानक- रूढियां प्रयुक्त हुई हैं। इसमें एक कथा के भीतर दूसरी कथा की योजना करने में "बृहत्कथा" की शैली ग्रहण की गई है। इसमें कवि ने लोककथा की अनेक रूढियों का प्रयोग किया है, जैसे मनुष्य की भांति बोलने वाला पंडित तोता, त्रिकालदर्शी महात्मा जाबालि, किन्नर, गंधर्व व अप्सराएं, शाप से आकृति-परिवर्तन, पुनर्जन्म की मान्यता तथा पुनर्जन्म के स्मरण की कथा इसमें निवेदन की है। “कादंबरी" की कथा के पात्र दंडी आदि की भांति जगत् के यथार्थवादी धरातल के पात्र न होकर चंद्रलोक, गंधर्वलोक व मर्त्यलोक में स्वच्छंदतापूर्वक विचरण करने वाले आदर्शवादी पात्र हैं। कवि ने पात्रों के
चारित्रिक पार्थक्य की अपेक्षा, कथा कहने की शैली के प्रति अधिक रुचि प्रदर्शित की है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि इसमें चारित्रिक सूक्ष्मताओं का विश्लेषण कम है। "कादंबरी' के चरित्र भले ही आदर्शवादी बाणभट्ट के हाथ की कठपुतली हैं, पर बाण ने उसका संचालन इतनी कुशलता से किया है कि उनमें चेतनता आ गई है। शुकनास का बुद्धिमान् तथा स्वामिभक्त चरित्र, वैशंपायन की सच्ची मित्रता और महाश्वेता के आदर्श प्रणयी चरित्र की रेखाओं को बाण की तूलिका ने स्पष्टतः अंकित किया है पर बाण का मन तो नायक-नायिका की प्रणय-दशाओं, प्रकृति के विविध चित्रों और काव्यमय वातावरण की सृष्टि करने में विशेष रमता है।
डॉ. कीथ का कहना है कि, “वास्तव में यह एक विचित्र कहानी है और उन लोगों के प्रति जिनको पुनर्जन्म अथवा इस मर्त्यजीवन के अनंतर पुनर्मिलन में भी विश्वास नहीं है, इसकी प्ररोचना गंभीर रूप से अवश्य ही कम हो जानी चाहिये। " परंतु भारतीय विश्वास की दृष्टि से वस्तुस्थिति सर्वथा भिन्न है। कादम्बरी के प्रसिद्ध टीकाकार - 1) भानुचंद्र और सिद्धचन्द्र, 2) हरिदास 3) शिवराम 4) बैद्यनाथ (रामभट्ट का पुत्र) 5) बालकृष्ण 6) सुरचन्द्र 7) सुखाकर 8) महादेव 9) अर्जुन (चक्रदासपुत्र) 10) घनश्याम और कुछ अज्ञात लेखकों की टीकाएं भी विद्यमान हैं। कादम्बरी पर आधारित अन्य रचनाएं- 1) अभिनवकादम्बरी - ले.दुढिराज व्यासयज्वा 2) कादम्बरीकथासार - 8 सर्ग का काव्य - ले. अभिनन्द। 3) कादम्बरीकथासार - 13 सर्ग का काव्य, ले. विक्रमदेव (त्रिविक्रम) 4) कल्पितकादम्बरी- ले. अज्ञात 5) कादम्बरी कथासार - ले. त्र्यंबक 6) कादम्बरीचम्पू: - ले. श्रीकण्ठाभिनव 7) कादम्बरीकल्याणम् (नाटक) ले. नरसिंह 8) पद्यकादम्बरीले.क्षेमेन्द्र।
संक्षिप्त कादम्बरी कथा - 1) कादम्बयर्थसार- ले. मणिराम 2) संक्षिप्तकादम्बरी - ले. काशीनाथ 3) कादम्बरीसंग्रहसार - ले. व्ही.कृष्णंमाचारियर । बाण कृत अन्य रचनाएं- चण्डीशतकम्, शिवशतकम्, मुकुटताडितकम् (अप्राप्य) तथा शारदचन्द्रिका । कादिमतम् (कादितन्त्रम्) - (नामान्तर - कादिमततन्त्र या षोडशनित्यातन्त्रम्) 36 पटल, श्लोकसंख्या- 3600। यह तन्त्रोक्त सोलह शक्तियों के मन्त्र, मन्त्रोद्धार पूजा, स्वरूप आदि का प्रतिपादक ग्रंथ है। इसमें तन्त्रावतार प्रकाशन, नौ नाथों का वैभव, पूजा, षोडशीनित्या विद्या का स्वरूप, 9 ललिता नित्या का सपर्याक्रम, ललिता नित्यार्चन, षोडश नित्याओं की नैमित्तिक तथा काम्य पूजा । कामेश्वरी, भगमालिनी, नित्यक्लिन्ना, भेरुण्डा, वह्निवासिनी, महावज्रेश्वरी, शिवदूती, त्वरिता, कुलसुन्दरी, नित्या, नीलपताका, विजया, सर्वमंगला,ज्वालामालिनी तथा चित्रा इन 16 नित्या विद्याओं का लोककाल-तादात्म्य । षोडश नित्याओं
56 संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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