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उपदेश-शतकम् - ले.- चन्द्रमाणिक्य (ई. 17 वीं शती) नीतिपर श्लोकों का संग्रह। उपनिषद्-दीपिका - ले.- पुरुषोत्तमजी। पुष्टिमार्गी साम्प्रदायिकों में इस ग्रंथ को विशेष मान्यता है। उपनिषन्मधु - प्रसिद्ध सर्वोदयी कार्यकर्ता पद्मश्री मनोहर दिवाण ने (जो महात्मा गांधी के आदेशानुसार वर्धा में कुष्ठधाम चलाते थे), ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्ड, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, छांदोग्य, ऐतरेय, बृहदारण्यक इन सुप्रसिद्ध दशोपनिषदों के अतिरिक्त आर्षेय, कौषीतकी, छागलेय, जैमिनि, बाष्कलमन्त्र, मैत्रायणि, शौनक और श्वेताश्वतर इन आठ उपनिषदों से सारभूत सिद्धान्तवचनों का संकलन कर, उनकी 'साधना' और 'ज्ञेय' नाम दो खण्डों में वर्गीकरण किया है। उपनिषदों का रहस्य समझने के लिए यह पुस्तक उपयोगी है । शारदा प्रकाशन पुणे-30।। उपमानचिन्तामणिटीका - ले.- कृष्णकान्त विद्यावागीश। उपसर्ग-वृत्तिः - ले.- भरत मल्लिक (ई. 17 वीं शती)। उपस्कार - ले.- शंकर मिश्र। (ई. 15 वीं शती)। उपहारप्रकाशिका - श्लोक-1350 । विषय- देवताओं की पूजा के सम्बन्ध में विशेष विवरण। इस पर दो टीकायें हैं, (1) उपहारप्रकाशिकाप्रकाश और (2) उपहारप्रकाशिका -विमर्शिनी। उपहार-वर्म-चरितम् (नाटक) - ले.- श्रीनिवास शास्त्री (जन्म ई. 1850) मद्रास के तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर (1886-1890) को समर्पित। 1888 ई. में मद्रास से तेलगु लिपि में प्रकाशित । कथासार - पुष्पपुर के राजा राजहंस के निमंत्रण पर मिथिला नरेश प्रहारवर्मा अपनी गर्भवती पत्नी प्रियंवदा के साथ पुष्पपुर के लिए प्रस्थान करते हैं। मार्ग में प्रियंवदा प्रसूत होती है। प्रहारवर्मा का भतीजा विकटवर्मा उनकी अनुपस्थिति में मिथिला पर अधिकार कर लौटते हुए प्रहारवर्मा को बन्दी बनाता है। प्रियंवदा नवजात शिशु को दासी पर सौंपती है, परन्तु वह चीते के डर से शिशु छोड भाग जाती है। मृगया हेतु वहां आये हुए राजहंस, शिशु को उठाकर उसके पालन का भार ग्रहण करते हैं और उपहारवर्मा नाम रखते हैं। युवा उपहारवर्मा मिथिला पर आक्रमण करता है। वहां उसका कल्पसुन्दरी से प्रेम होता है। विकटवर्मा इसमें बाधा डालता है क्यों कि वह स्वयं उससे विवाह करने की इच्छा रखता है। अन्त में नायक उपहारवर्मा विकटवर्मा का वध कर, मातापिता को मुक्त कर, स्वयं युवराज बनता है और कल्पसुन्दरी के साथ विवाह करता है। कथावस्तु उत्पाद्य है। उपांग-ललितापूजनम् - श्लोक 300। आश्विन शुक्ल पंचमी को ललिता देवी की प्रसन्नता के लिए दाक्षिणात्यों द्वारा जो व्रत किया जाता है उसीकी पूजाविधि इसमें वर्णित है। उक्त व्रत विस्तार के साथ शंकरभट के व्रतार्क तथा विश्वनाथ दैवज्ञ के व्रतराज में वर्णित है। व्रत की कथा (स्कन्दपुराण में
कथित) भी उपर्युक्त पुस्तकों में दी गयी है। यह पूजा विवरण उपांग-ललिताकल्प के आधार पर है। उपाधि-खंडनम् - ले.- मध्वाचार्य (ई. 12 वीं शती) प्रस्तुत निबंध में शंकरवेदांत में स्वीकृत "उपाधि" का द्वैतवाद के अनुसार खंडन किया है। उपाध्याय-सर्वस्वम् - ले.- दामोदर सेन (सन 1000-1050) विषय- व्याकरणशास्त्र । उपायकौशल्यम् - ले.- नागार्जुन । विषय- विवाद में प्रतिवादी पर विजय प्राप्त करना। जाति, निग्रहस्थान आदि की दृष्टि से आवश्यक तर्कशास्त्र के अंगों का विवेचन । उपासकाचारः - ले.- अमितगति (द्वितीय) जैनाचार्य ई. 10 वीं शती। उभयरूपकम् - ले.- महालिंग शास्त्री। रचना 1928-1938 तक। 1962 में "उद्यानपत्रिका' में प्रकाशित। कथासार - कुकुट स्वामी का बडा पुत्र छन्दोवृत्ति, भारतीयता का अभिमानी है तथा छोटा पुत्र छागल, विलायत में पढा, ग्रामविद्वेषी है। पिता को छागल पर गौरव है। वह गांव की कन्या वंदना से छागल का विवाह कराना चाहता है परंतु छागल को ग्रामकन्या स्वीकार्य नहीं। छागल को पत्र मिलता है कि विद्यालय में होने वाले नाटक हेम्लेट में उसे अभिनय करना है। वह शीघ्रता से दाढी बना, दाढी के बाल वहीं लिफाफे में छोड वृद्धशालकर (सेवक) के साथ स्टेशन चल देता है। हेम्लेट की भूमिका वाला कागज पढकर सभी समझते हैं कि छागल ने आत्मघात कर लिया। लिफाफे में रखे बालों को विष समझा जाता है। इतने में स्टेशन से वृद्धशालकर छागल की चिठ्ठी लेकर पहुंचता है । कुक्कुटस्वामी अन्त में पछताते रहते हैं। उमादर्श - कृष्णस्वामी कृत "उमाज् मिरर" नामक अंग्रेजी काव्य का अनुवाद । अनु.-वेङ्कटरमणाचार्य, (1939 में मुद्रित) दो सर्ग। श्लोक संख्या- 135 श्लोक। 35 से भारतीय तथा योरोपीय जीवन में भेद वर्णन किया है। उमा-परिणयम् (काव्य) - ले.- म.म. विधुशेखर शास्त्री (जन्म 1878) उमापरिणयम् (नाटक) - ले.- इ.सु. सुन्दरार्य। लेखक की प्रथम रचना। सन् 1952 में प्रकाशित। तिरुचिरापल्ली के संस्कृत साहित्य परिषद के वार्षिक उत्सव में दो बार अभिनीत । अंकसंख्या दस। प्राकृत भाषा को स्थान नहीं। नृत्य गीतों का समावेश। उमा के विवाह से संदर्भ में हिमालय और नारद के वार्तालाप से लेकर शिव-पार्वती विवाह तक की कथावस्तु प्रस्तुत नाटक में निबद्ध है। उमामहेश्वरपूजा - श्लोक- 155। इसमें उमामहेश्वर की पूजा, होम आदि वर्णित हैं। उमायामलम् - विषय - परमशिवसहस्रनाम स्तोत्र। यह
40/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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