________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
करुण के श्रृंगार, वीर, हास्य एवं अद्भुत रस सहायक के रूप में उपस्थित किये गये।
इस नाटक में गृहस्थ जीवन व प्रेम का परिपाक जितना प्रदर्शित हुआ है, संभवतः उतना अन्य किसी भी संस्कृत नाटक में न हो सका है। इसमें जीवन की नाना परिस्थितियों, भाव-दशाओं व प्राकृतिक दृष्यों का अत्यंत कुशलता एवं तन्मयता के साथ चित्रण किया गया है। राम व सीता के प्रणय का इतना उदात्त एवं पवित्र चित्र अन्यत्र दुर्लभ है। परिस्थितियों के कठोर नियंत्रण में प्रस्फुटित राम की कर्तव्य-निष्ठा तथा सीता का अनन्य प्रेम इस नाटक की महनीय देन है। इस प्रकार सभी दृष्टियों से महनीय होते हुए भी इस नाटक का दोषान्वेषण करते हुए पंडितों द्वारा जो विचार व्यक्त हुए हैं, उनका सारांश इस प्रकार है :
प्रस्तुत नाटक में शास्त्र दृष्ट्या आवश्यक मानी हुई 3 अन्वितियों की उपेक्षा की गई है। वे हैं- 1) समय की अन्विति, 2) स्थान की अन्विति एवं 3) कार्य की अन्विति । प्रस्तुत नाटक में काल की अन्विति पर ध्यान नहीं दिया गया है। प्रथम तथा द्वितीय अंक की घटनाओं के मध्य 12 वर्षों का अंतर दिखाई पड़ता है तथा शेष अंकों की घटनाएं अत्यंत त्वरा के साथ घटती हैं। स्थान की अन्विति का भी इस नाटक में उचित निर्वाह नहीं किया गया है। स्थान की अन्विति का भी इस नाटक में उचित निर्वाह नहीं किया गया है। प्रथम, द्वितीय व तृतीय अंक की घटनाएं क्रमशः अयोध्या. पंचवटी व जनस्थान में घटित होती हैं तथा चतुर्थ अंक की घटनाएं वाल्मीकि-आश्रम में घटती हैं। कार्यान्विति के विचार से भी इस नाटक को शिथिल माना गया है। समीक्षकों ने यहां तक विचार व्यक्त किया है कि यदि उपर्युक्त अंशों को नाटक से निकाल भी दिया जाय तो भी कथावस्तु के विकास एवं फल में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं आता। __ प्रस्तुत नाटक में एक ही प्रकृति के पात्रों का चित्रण किया गया है। राम, सीता, लक्ष्मण, शंबूक, जनक, वाल्मीकि प्रभृति सभी पात्र गंभीर प्रकृति के हैं। कवि ने इंद्रमय पात्रों के चित्रण में अभिरुचि नहीं दिखलाई है। नाटक के अन्य दोषों में विदूषक का अभाव, भाषा का काठिन्य व विलापप्रलापों का आधिक्य है। इसके अधिकांश पात्र फूट-फूट कर रोते हैं। प्रधान पात्रों में भी यह दोष दिखाई देता है, जो चरित्रगत उदात्तता का बहुत बडा दोष है। इन प्रलापों से धीरोदात्त चरित्र के विकास एवं परिपुष्टि में सहायता नहीं प्राप्त होती। पंचम अंक में राम के चरित्र पर लव द्वारा किये गये आक्षेप को क्षेमेन्द्र प्रभृति कतिपय आचार्यों ने अनौचित्यपूर्ण माना है।
उत्तर रामचरित पर लिखी हुई महत्त्वपूर्ण टीकाओं के लेखक - 1) वीरराघव, 2) आत्माराम, 3) लक्ष्मणसूरि, 4) ए. बरुआ, 5) जे. विद्यासागर, 6) अभिराम, 7) प्रेमचन्द
तर्कवागीश, 8) भटज़ी शास्त्री घाटे (नागपुर), 9) तारकुमार चक्रवर्ती, 10) रामचन्द्र, 11) घनश्याम, 12) ल मीकुमार ताताचार्य (इन्होंने अपनी टीका में नाटक का प्रधान रस विप्रलम्भ शृंगार बताया है।) 13) राघवाचार्य, 14) पूर्ण सरस्वती और 15) नारायण भट्ट। उत्तराखण्ड-यात्रा - ले.- शिवप्रसाद भट्टाचार्य (ई. 1890-1965) विषय- उत्तराखण्ड यात्रा का वर्णन। उत्सववर्णनम् - ले. त्रिवांकुर (त्रावणकोर) नरेश राजवर्म कुलदेव। ई. 19 वीं शती। उदयनचरितम् - ले. प्रा. व्ही. अनन्ताचार्य कोडंबकम्। 15 अध्याय, बाललोपयोगी पुस्तक । उदयनराज - ले. हस्तिमल्ल। पिता- गोविंद भट्ट। जैनाचार्य । विषय- कथा। उदयसुन्दरीकथा - ले. सोड्ढल। ई. 11 वीं शती। उदारराघवम् (रूपक) - (1) ले. राधामंगल नारायण (ई. 19 वीं शती।) (2) ले. चण्डीसूर्य । उद्गातृदशाननम् (नाटक) - ले. य, महालिंग शास्त्री। रचनाप्रारंभ 1927, समाप्ति 1952 | अंकसंख्या सात। दस मुंहवाला रावण, षण्मुखी स्कन्द, अश्वमुखी शृंगिरिटि, गजमुखी गणेश आदि विचित्र पात्र इस नाटक में है। सन्ध्या. रात्रि. नन्दी इ. छायात्मक पात्र भी मिलते है। कथासार- पार्वती शिव से रूठ कर शरवण में आती है। इस बीच रावण कुबेर पर आक्रमण करता है। नारद रावण को उकसाता है कि शिवजी ने कुबेर को शरण दी। रावण कैलास पर धावा .बोलता है। वहां नन्दी के होने पर रावण कैलास को उखाडने
को उद्युक्त होता है, परंतु शिवजी पादांगुष्ठ से कैलास को दबाते हैं, जिससे वह उसके नीचे दबाया जाता हैं, कैलास को उत्पाटित होता देख कर पार्वती अपना मान छोड कर शिवजी को आलिंगन देती है। इधर रावण शिवजी की स्तुति करता है। रावण की प्रार्थना से संतुष्ट होकर शिवजी उसे चन्द्रहास खड्ग तथा पुष्पक विमान देते हैं। उद्धवचरितम् - ले. रघुनन्दन गोस्वामी। (ई. 18 वीं शती ।) उद्धव-दूतम् - इस संदेश काव्य के रचयिता हैं माधव कवीन्द्र। 17 वीं शताब्दी। इस काव्य की रचना मंदाक्रांता वृत्त में है। इसमें कुल 141 श्लोक हैं। इस काव्य में कृष्ण द्वारा उद्धव को अपना दूत बनाया जाकर, उनके द्वारा अपना संदेश गोपियों के पास भेजने का वर्णन है। कृष्ण का दूत जानकर राधा, उद्धव से अपनी एवं गोपियों की विरहव्यथा का वर्णन करती है। कृष्ण व कुब्जा के प्रेम को लेकर राधा विविध प्रकार का आक्षेप करती है और अक्रूर को भी फटकारती है। राधा अपने संदेश में कहती है कि कृष्ण के अतिरिक्त उनका दूसरा प्रेमी नहीं है। यदि उनके वियोग में मेरे प्राण निकल जाएं
38 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
For Private and Personal Use Only