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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उणादिवृत्ति - ले- उज्ज्वलदत्त (ई. 13 वीं शती) (2) श्लोक- 210। 10 पटल। विषय- साधकों के उणादिवृत्ति - ले. पुरुषोत्तम देव । ई. 12 वीं अथवा 13 वीं शती। कर्त्तव्य, उनकी विधि-दीक्षा के लिये गुरु-शिष्यों की पात्रता, उत्कलिकावल्लरी - ले.- रूप-गोस्वामी। ई. 16 वीं शती। कौल शक्ति, कुलसाधकों के लक्षण, कला-प्रशंसा, शक्तिप्रशंसा, विषय- कृष्णभक्ति। स्वयंभू-कुसुम-माहात्म्य आसनविधि, बलिप्रशंसा आदि । उत्तम-जॉर्ज-ज्यायसी रत्नमालिका - ले. एस्. श्रीनिवासाचार्य.। उत्तरनैषधम् - ले. वन्दारुभट्ट। कोचीन-नरेश का आश्रित । ई. कुम्भकोणम् के निवासी। विषय- आंग्लसम्राट् पंचम जॉर्ज की 19 वीं शती (पूर्वार्थ)। माता-श्रीदेवी। पिता- नीलकण्ठ । प्रशंसा। श्रीहर्षकृत 'नैषधचरितम्' का क्लिष्टत्वरहित अनुकरण इस काव्य उत्तरकाण्डचम्पू - ले. राघव । का वैशिष्ट्य है। उत्तर-कामाख्यातन्त्रम् - श्लोक 315। पार्वती- ईश्वरसंवादरूप। उत्तरपुराण - 1. इसकी रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र (ई. पूर्वखण्ड और उत्तरखण्ड नामक दो खंडो में विभक्त। उत्तर 9 वीं शती) द्वारा गुरु के निर्वाण के पश्चात् हुई थी। इसे खण्ड में 13 पटल हैं। विषय- चार युगों के धर्म। भिन्न जैनियों के आदि पुराण का उत्तरार्ध माना जाता है। कहते हैं भिन्न महीनों में भिन्न भिन्न देवताओं की पूजा का फल। - कि 'आदिपुराण' के 44 सर्ग लिखने के बाद ही जिनसेनजी अन्तर्याग। विष्णुचक्र से कटे हुये सती के अंग प्रत्यंगों से का निर्वाण हो गया था। तदनंतर उनके शिष्य गुणभद्र ने उत्पन्न पीठों में शक्ति और भैरवों के नाम। 'आदि पुराण' के उत्तर अंश को समाप्त किया। अतः इसे उत्तरकुरुक्षेत्रम् - ले.- विश्वेश्वर विद्याभूषण। 'संस्कृत साहित्य उत्तर पुराण कहते हैं। पत्रिका' वर्ष 50-51 में प्रकाशित नाटक। मधु-पूर्णिमा के ___ इस पुराण में 23 तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र वर्णित हैं जो अवसर पर अभिनीत। अंकसंख्या 5। इसमें महाभारत युद्ध दूसरे तीर्थकर अजितसेन से लेकर 24 वें तीर्थकर महावीर के पश्चात् की कौरव, पाण्डव तथा श्रीकृष्ण की दुःस्थिति का. तक समाप्त हो जाता है। इसे जैनियों के 24 पुराणों का चित्रण है। प्रत्येक अंक में भिन्न-भिन्न कथाएं अनुस्यूत हैं। 'ज्ञान-कोश" माना जाता है क्यों कि इसमें सभी जैन पुराणों इसमें नाटकीयता तथा कार्य (एक्शन) को स्थान नहीं है। का सार संकलित है। इसमें 32 उत्तरवर्ती पुराणों की भी 'अनुक्रमणिका प्रस्तुत की गई है। 'आदिपुराण' व 'उत्तरपुराण' ___ कुन्ती का वानप्रस्थ, कृष्ण का प्रभास-प्रस्थान, द्वारका के में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन-चरित्र का वर्णन करने से पूर्व यादवों का विनाश, कृष्ण-बलराम का देहत्याग, यादव महिलाओं । चक्रवर्ती राजाओं की कथाएं वर्णित हैं। इनके विचार से प्रत्येक का दस्युओं द्वारा अपहरण परीक्षित्' का राज्याभिषेक, शमीक तीर्थकर पूर्व जन्म में राजा थे। इसमें कुल मिला कर 63 ऋषि के गले में मृत सर्प डालने से परीक्षित् का शापग्रस्त व्यक्तियों का चरित्र वर्णित है, जिनमें 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती होना, जनमेजय का सर्पसत्र, आस्तिक द्वारा सर्पो का रक्षण राजा, 9 वासुदेव, 9 शुक्लबल तथा १ विष्णुद्विप आते हैं। आदि घटनाओं का वर्णन है। इसमें सर्वत्र जैन धर्म की शिक्षा का प्रतिपादन है तथा श्रीकृष्ण उत्तरचंपू - 1. ले. भगवंत कवि। एकोजी भोसले के मुख्य को त्रिखंडाधिपति एवं तीर्थंकर नेमिनाथ का शिष्य माना गया है। . अमात्य गंगाधर का पुत्र। ई. 17 वीं शती। रामायण के ____ 2. ले.- सकलकीर्ति । जैनाचार्य । पिता- कर्णसिंह । माता-शोभा उत्तरकांड पर आधारित। इसमें मुख्यतः राम-राज्याभिषेक का ई. 14 वीं शती। इसमें 15 अधिकार (अध्याय) हैं। वर्णभ किया गया है, इसकी रचना-शैली साधारण कोटि की उत्पत्तितन्त्रम् - 1. श्लोक 642। पटल संख्या 380 से है और यह ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है। इसका विवरण अधिक। उमा द्वारा कलिसम्मत साधन के विषय में पूछे जाने तंजौर केटलाग में प्राप्त होता है। 2. ले.- ब्रह्म पंडित। 3. पर भगवान् ने उस पर निम्ननिर्दिष्ट विषयों का प्रतिपादन किया राघवभट्ट। - दिव्य भाव की प्रशंसा, बलियोग्य पशु और पक्षी, असंस्कृत उत्तरचम्पूरामायणम् - कवि- वेंकटकृष्ण। चिदम्बरम् निवासी। मद्यपान, यवनी-योनियों में गमन करने पर भी लौकिक की ई. 19 वीं शती। निर्दोषता, भाव-लक्षण, कलियुग में सुरापान से भारतवर्ष में उत्तरचरितम् - (रूपक) ले.- रामकृष्ण। ई. 18 वीं शती। वर्णभ्रंश, म्लेछों के राज में कलिस्वभाव, कलियुग में पशुभाव श्रीरामचंद्र के उत्तरकालीन जीवन वृत्तान्त का वर्णन है। का विधान, मद्यपान आदि का निषेध, उसके अनुकल्प का उत्तरतन्त्रम् - (1) श्लोक 500। यह देवी-ईश्वर संवादरूप निषेध, करमाला की शक्ति साधना का वृत्तान्त, कालधर्म, तांत्रिकग्रंथ 16 पटलों में पूर्ण है। देवी ने साधकों की आत्मसमर्पण का प्रकार, बाणलिंग में आवाहन, शिवनिर्माल्य प्रयोगविधि, शाक्तनिन्दा में दोष, महाविद्या पूजन, भगलिंग के जलपान आदि की फलश्रुति, प्रातःकृत्य-निरूपण, शिव-निन्दा माहात्म्य, गृहस्थों के आचार, कर्म-काल, पुरश्चरण, बलिदान में दोष, दुर्गापूजा का माहात्म्य, अर्घ्यदानविधि, गंगाजल में आदि का निरूपण विस्तार से किया है। देवता के आवाहन की आवश्यकता, विष्णुतत्त्व, दशावतारवर्णन, 36/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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