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सायणाचार्य(14) वेदार्थप्रकाश (सायणभाष्य
= ऋक्संहिता, सामसंहिता, तैत्तिरीयसंहिता, काण्वसंहिता, अथर्वसंहिता तथा ब्राह्मणों पर) बोधायनसूत्रभाष्य, यज्ञतंत्रसुधानिधि, सुभाषितसुधानिधि, अलंकारसुधानिधि, पुरूषार्थसुधानिधि,
माधवीयाधातुवृत्ति, कर्मविपाक। सुधीन्द्र तीर्थ
अलंकारमंजरी, (16-17)
अलंकारनिकष सुधीन्द्र
साहित्यसाम्राज्यम् सब्रह्मण्य शर्मा (वाय.) : मुलाविद्यानिरास सुमतीन्द्र
: मधुधारा (अलंकारमंजरी
की टीका) सुमतीन्द्र तीर्थ (17-18): जयघोषणाप्रबन्ध सुरेश्वराचार्य
बृहदारण्यकभाष्यम्,
नैष्कर्म्यसिद्धि। सोमदेवसूरि(10) : यशस्तिलकचंपू,
नीतिवाक्यामृतम्, षण्णवतिप्रकरणम्,
महेन्द्रमालतीसंजल्प सोमनाथ कवि(16) : व्यासतीर्थचरितचम्पू सोमेश्वर(तृतीय)
अमिलषितार्थचिन्तामणि (चालुक्य नृपति) (मासोल्लास या (12)
जगदाचार्यपुस्तकम्)। हरदत्ताचार्य
गणकारिका (वीरशैवमत) हरिषेण(10)
: बृहत्कथाकोश हलायुध
: कविरहस्यम् (धातुकाव्यम्),
मृतसंजीविनी (छंदःसूत्र टीका) हाल(4-5)
गाथासप्तशती (महाराष्ट्री प्राकृत)
काश्मीर की संस्कृत वाङ्मय निर्मिति में अवरोध निर्माण हुआ। तथापि ई. 9 से 12 वीं शती तक की अवधि में काश्मीर ने जो योगदान दिया वह चिरस्थायी स्वरूप का है। (प्रस्तुत परिशिष्ट “इन्टरनॅशनल संस्कृत कॉन्फरस-1972" के प्रथम खंड में मुद्रित डॉ. नवजीवन रस्तोगी और श्री अनंतराम शास्त्री के लेखों पर मुख्यतः आधारित है।) ग्रंथ
ग्रंथकार अज्ञात
: विष्णुधर्मोत्तरपुराण अज्ञात
नीलमतपुराण अद्योर शिवाचार्य (12) : अज्ञात अभिनवगुप्ताचार्य तंत्रालोक, लोचन (10-11)
(धन्यालोकटीका), अभिनवभारती (भरतनाट्यशास्त्र की टीका), विमर्शिनी और बृहविमर्शिनी (उत्पलकृत कारिका की टीका), गीतार्थसंग्रह । कुल ग्रंथ
संख्या-42 अर्चट (बौद्ध)
हेतुबिन्दु टीका अल्लट
काव्यप्रकाश (दशम
उल्लास का उत्तरार्ध) आनंदवर्धनाचार्य
ध्वन्यालोक, अर्जुनचरितम्, (9)
विषमबाणलीला, देवीशतकम्, भगवद्गीता-टीका, विवृत्ति
(प्रमाण विनिश्चयटीका)। आमर्दक
अज्ञात ईश्वरशिव(9)
रासमहोदधि, शंकरराशि। उत्पल
: ईश्वरप्रभिज्ञाकारिका,
सिद्धित्रयी, शिवदृष्टि की टीका। उत्पल देव (12)
शिवस्तोत्रावली उत्पल वैष्णव (10) प्रदीपिका (स्पंदकारिका की
टीका) उत्पलवैष्णव द्वारा उल्लिखित पांचरात्र संहिताएं जया, हंसपरमेश्वर, वैहायस, श्रीकालपरा, श्रीसात्वत, पौष्कर, अहिर्बुन्ध्य
परिशिष्ट (6) काश्मीर के ग्रंथकार और ग्रंथ
उद्भट (8)
काव्यालंकारसारसंग्रह, भामहविवरणम् (टीकाग्रंथ) वेदभाष्य
:
काश्मीर का अपरनाम है शारदादेश। इस प्रदेश में अति प्राचीन काल से संस्कृत विद्या की उपासना होती आयी है। काश्मीरी पंडितों द्वारा साहित्यशास्त्र, इतिहास तथा त्रिक, शैव, वैष्णव, प्रत्यभिज्ञा, तंत्र, लकुलीश, पाशुपत, इत्यादि विविध दार्शनिक विषयों के क्षेत्र में वैशिष्ट्यपूर्ण योगदान हुआ। बाद में परकीय इस्लामी संस्कृति के अतिरिक्त प्रभाव के कारण
उव्वट कल्याणवर्मा (11) कल्लट(9)
शिवसूत्रटीका, स्पन्दकारिका (सटीक), (प्रस्तुत कारिकाएं वसुगुप्तकृत
संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथ खण्ड/463
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