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आरुणि - इस नाम की शाखा का उल्लेख ऋग्वेद की शाखाओं के वर्णन में मिलता है। इसी नाम की कृष्ण यजुर्वेद की भी शाखा हो सकती है। यह भी हो सकता है कि इस नाम की केवल ऋग्वेदीय या केवल याजुष शाखा हो। आरुण्युपनिषद - संन्यास विषयक एक गौण उपनिषद् । इसमें 9 मंत्र हैं। संन्यास लेने के इच्छुक पुरुष के कर्तव्य दिये गये हैं। आरोग्यदर्पण - सन 1888 में प्रयाग से पंडित जगन्नाथ के सम्पादकत्व में यह पत्र प्रकाशित किया जाता था। संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में प्रकाशित यह पत्र आयुर्वेद तथा चरक संहिता से सम्बन्धित था। आर्चाभिन - कृष्ण यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा। संहिताब्राह्मण के संबंध में कुछ ज्ञात नहीं। आर्य - 1882 में लाहौर से इस मासिक पत्रिका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। संपादक आर.सी. बेरी थे। इसमें दर्शन, कला, साहित्य, विज्ञान धर्म और पाश्चात्य दर्शन से सम्बन्धित विषयों का प्रकाशन होता था। आर्यतारान्तर बलिविधि - ले. चन्द्रगोमी। आर्यतारा देवता विषयक भक्तिपूर्ण स्तोत्रकाव्य। आर्यतारानामस्तोत्र - ले.- अज्ञात। देवी तारा के 108 अभिधानों की संगीत स्तुति एवं विशेषणों तथा नामों का धार्मिक स्तवन। यह साहित्य कलाकृति नहीं मानी जाती। इस स्तोत्र, स्रग्धरास्तोत्र तथा एकविंशतिस्तोत्र तीनों में तारादेवी की स्तुति की है। जे.डी. ब्लोने द्वारा यह अनूदित तथा प्रकाशित हुआ है। आर्यप्रभा - सन 1909 में कलकत्ता से इस पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ हुआ। (गोवर्धन मुद्रणालय 80 मुत्तलरामबन्धू स्ट्रीट कलकत्ता)। संपादक थे श्रीकुंजबिहारी तर्कसिद्धान्त । यह एक साहित्यिक पत्रिका थी। इसमें आर्य संस्कृति और धर्मविषयक विवेचनात्मक निबंध प्रकाशित होते थे। इसका वार्षिक मूल्य सवा रु. था। यह पत्रिका दस वर्षों तक प्रकाशित होती रही। आर्यभटीयम् (अथवा आर्यसिद्धान्त) - एक विश्वविख्यात ग्रंथ। ले.- ज्योतिष शास्त्र के एक महान् आचार्य आर्यभट्ट (प्रथम)। समय ई.5 वीं शती। "आर्यभटीय" की रचना पटना में हुई थी। इसके श्लोकों की संख्या 121 है और यह ग्रंथ 4 भागों में विभक्त है :- गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद व गोलपाद । इस ग्रंथ में चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण के वैज्ञानिक कारणों का विवेचन किया गया है। आर्यभट्ट ने सूर्य व तारों को स्थिर मानते हुए, पृथ्वी के घूमने से रात व दिन होने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इनके अनुसार पृथ्वी की परिधि 4967 योजन है।
आर्यभट्टीय का अंग्रेजी अनुवाद डॉ. केर्न ने 1847 ई. में लाईडेन (हालैण्ड) में प्रकाशित किया था।
संस्कृत में "आर्यभट्टीय" की 4 टीकाएं प्राप्त होती हैं टीकाकार है : भास्कर, सूर्यदेव यज्वा, परमेश्वर और नीलकंठ। इनमें सूर्यदेव यज्वा की "आर्यभट्ट-प्रकाश" टीका सर्वोत्तम मानी जाती है। आर्यभाषाचरितम् - ले.- द्विजेन्द्रनाथ गुहचौधरी। आर्यविधानम् (अर्थात् विश्वेश्वरस्मृतिः) - ले.- म.म. विश्वेश्वरनाथ रेवू, जोधपूर-निवासी। आर्यसद्भाव - ई. 11 वीं शती। विषय - ज्योतिषशास्त्र आचार्य मल्लिसेन। ई. 11 वीं शती। इस ग्रंथ की रचना 195. आर्याछंदों में हुई है। इसमें आठ आर्याओं में ध्वज, सिंह, मंडल, वृष, स्वर, गज, तथा वायस के फलाफल तथा स्वरूप का वर्णन किया गया है। ग्रंथ के अंत में लेखक ने बताया है कि ज्योतिषशास्त्र के द्वारा भूत, भविष्य तथा वर्तमान का ज्ञान होता है और यह विद्या किसी और को न दी जाए। आर्यसाधनशतकम् - ले.-चन्द्रगोमिन। 100 श्लोकों की काव्यकृति। आर्यसिद्धान्त - सन 1896 में आर्य समाज प्रयाग द्वारा इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिष्य भीमसेन शर्मा इसके संपादक थे। आर्य समाज के सिद्धान्तों का प्रचार ही इसका प्रमुख उद्देश्य था। धार्मिक वाद-विवादों को इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। आर्याकौतुकम् - ले.- नागेशभट्ट। ई. 12 वीं शती। पिता-वेंकटेशभट्ट। आर्यातंत्रम् - नागेशभट्ट ई. 12 वीं शती। पिता- वेंकटेशभट्ट । आयांत्रिशती - (1) ले. सामराज दीक्षित। मुंबई में मुद्रित । (2) ले.- व्रजराज। ग्रंथ का अपरनाम- रसिकरंजनम्। आर्यासप्तशती - ले.- विश्वेश्वर। पिता- लक्ष्मीधर । आर्याद्विशती - ले.- दुर्गादास। आयनिषधम् - ले.- मद्रास के पण्डित नरसिंहाचार्य। ई. 20 वीं शती । यह आर्यावृत्त में श्रीहर्षकृत "नैषध" काव्य का संक्षेप है। आर्यालंकार-शतकम - ले.- पं. कृष्णराम, आयुर्वेदाध्यापक, जयपुर। आर्यावर्त-तत्त्ववारिधि - सन् 1895 में गोविन्दचन्द्र मित्र के संपादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन लखनऊ से होता था। यह मासिक पत्रिका संस्कृत- हिन्दी में थी। आयशतकम् - (1) ले.- कर्णपूर । कांचनपाडा। (बंगाल) के निवासी। ई. 16 वीं शती। (2) ले.- विश्वेश्वर। (3) ले.- नीलकण्ठ। (4) ले.- अप्पय दीक्षित। आर्यासप्तशती - 700 आर्या छंदों में रचित एक शृंगाररस प्रधान मुक्तक काव्य। रचयिता गोवर्धनाचार्य। बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के आश्रित कवि। समय ई. 12 वीं शती। कवि ने स्वयं अपने इस ग्रंथ में अपने आश्रयदाता का उल्लेख किया है।
30/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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