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लक्ष्मणाभरणीचम्पू - लक्ष्मीचरित्रम् - लक्ष्मी-केशव संवादरूप। श्लोक- 67। विषय- लक्ष्मीयुक्त और लक्ष्मीवियुक्त जीवों के लक्षण इ.। लघुमनोरमा - सिद्धान्तकौमुदी की टीका । लघुशंखस्मृति - आनन्दाश्रम पुणे द्वारा प्रकाशित । लघ्वाश्वलायनस्मृति - आनन्दाश्रम पुणे द्वारा प्रकाशित । लास्यपुष्पांजलि - विषय- नृत्यकला। लेखपंचाशिका - विषय- 50 प्रकार के विक्रयपत्र, प्रतिज्ञापत्र एवं लेख्यप्रमाण। सन 1232 ई. में लिखित । वर्धमान-व्याकरणम् - वसिष्ठ-धनुर्वेद - प्रकाशक- वेकटेश्वर प्रेस, मुंबई। वांछाकल्पलता - गणेश विषयक ग्रंथ। श्लोक 200। वास्तुविधानम् - विषय- शिल्पशास्त्र। गुजरात में प्रकाशित । विक्रमादित्य-वीरेश्वरीयम् - विषय- युद्धशास्त्र । विजयपुरीशकथा - विषय-बीजापुर के यवन राजाओं का चरित्र । वृत्ततरंगिणी - विषय- छंदःशास्त्र । वृत्तरामायणम् - विषय- अन्यान्य छंदों में रामकथा का निवेदन । वृत्तलक्षणम् - विषय-छंदःशास्त्र । वृत्तविनोद - विषय- छंदःशास्त्र । वृत्तिरत्नम् - काशिका वृत्ति की व्याख्या। वृन्दावनरहस्यम् - श्लोक- 211। वेदानध्याय - विषय- वैदिक अध्ययन में छुट्टियां । वेल्लापुरी विषयगद्यम् - विषय- वेलोर के प्रदेश तथा राजा केशवेश का चरित्र। वेश्यांगना-कल्पद्रुम - विषय- कामशास्त्र । वैखानसागम - विषय- वास्तुशास्त्र । वैष्णवधर्मखंडनम् - व्याघ्रालयेशाष्टमीमहोत्सवचम्पू - विषय- त्रावणकोर के व्यक्कोम मन्दिर की कथा। शंकरविजयविलासम् - यह काव्य चिविलासयति और विज्ञानकाण्ड तपोवन के संवादरूप में है। शब्दरसार्णव - सिद्धान्तकौमुदी की टीका। शब्दसागर - सिद्धान्तकौमुदी की टीका । शरभोजिमहाराजजातकम् - तंजौरनरेश शरभोजी भोसले का संपूर्ण चरित्र। शिल्परत्नम् - शिल्पशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ। दो खंडों में प्रकाशित। शिल्परत्नाकर - विषय- शिल्पशास्त्र। गुजरात में प्रकाशित । शृंगारकन्दुकम् - अपरनाम- जारपंचाशत् ।
शृंगाररत्नाकर - श्रीकण्ठत्रिशती - श्रीकृष्णचम्पूश्रीविद्या - षट्त्रिंशन्यतम् - स्मृति चंद्रिका एवं पराशर माधव में उल्लिखत । सकलजननीस्तव - श्लोक- 324 । संगीतमणिदर्पण - संगीतशास्त्रम्संगीतशास्त्र-दुग्धवारिधि - संगीतसर्वस्वम् - संगीतसारसंग्रह - संगीतस्वरलक्षणम् - संगीतहस्तादि-लक्षणम् - सत्यनाथ-माहात्म्य-रत्नाकर- इस काव्य का विषयमाध्वसांप्रदायी द्वैतसिद्धान्ती श्रीसत्यनाथतीर्थ का चरित्र है। सन्तानगोपालप्रबन्धसंदर्भसूतिका- हारलता पर टीका । सप्तमठाम्नायिकम् - (देखिए मठाम्नायादिविचार) सप्तस्वरलक्षणम्- विषय- संगीतशास्त्र । समयडिंडिम - इसमें कवि ने समय की अस्थिरता का तथा काल की अगाधता का वर्णन किया है और कौमुदीकुसुमम् में कवि ने सिद्धान्तकौमुदी के प्रकरणों के क्रम एवं नामकरण की सार्थकता का विवेचन पद्यों में किया है। सन 1902 में उक्त दोनों रचनाओं का प्रकाशन एक पुस्तिका के रूप में किया गया। सर्वस्वलक्षणम् - विषय- संगीतशास्त्र । सारोद्धार - सुधांजनम् - सिद्धान्तकौमुदी की टीका । सुभद्राहरणचम्पू सुवर्चसरामायणम् - परंपरानुसार इसकी रचना वैवस्वत मन्वंतर के 18 वें त्रेतायुग में हुई। इसमें कुल 15 हजार श्लोक हैं। इसमें प्रमुखतया किष्किंधा पर लक्ष्मण का कोप, सुग्रीवमिलन, वाली-तारा संवाद, वाली-रामसंवाद, रावण-दरबार, रावण को मंदोदरी की सीख, सुलोचना-विलाप, लक्ष्मण शक्ति, पर्वतसहित हनुमान् का अयोध्या में आगमन, भरत-हनुमान् संवाद, धोबी-धोबीन संवाद, शांता को सीता का शाप, शांता को पक्षियोनि की प्राप्ति, सीतात्याग, लव-कुश जन्म, लव-कुश द्वारा अश्वबंधन तथा अश्व के रक्षकों से युद्ध आदि रामायण के विभिन्न प्रसंगों का विवरण है। सूर्यप्रज्ञप्ति - ई. पूर्व 2 री शताब्दी में जैनियों के इस ज्योतिष ग्रंथ का निर्माण हुआ। इसके ज्योतिषविषयक नियम
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /435
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