________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कृष्णवास्तुशास्त्रम्- श्री. व्ही. रामस्वामी शास्त्री एण्ड सन्स ने तेलगु अनुवाद सहित इसका प्रकाशन मद्रास में किया है। कृष्णवृत्तम् - विविध छंदों में भगवान् कृष्ण की स्तुति इस छंदःशास्त्रीय ग्रंथ का विषय है। कौबेररम्भाभिसारम् - महाभारत में उल्लिखित नाटक।। क्रमरत्नमालिका - नौ पटलों में पूर्ण। श्लोक- 2000। विषय- गोपालविषयक 59 महामन्त्र और उनके जप का क्रम । क्षपणकमहान्यास - क्षेमकुतूहलम्- विषय- पाकशास्त्र । प्राप्तिस्थान- ओरिएंटल बुक हाऊस, पुणे। ख्रिस्तसंगीतम् - सन 1842 में कलकत्ता में प्रकाशित । ख्रिस्तीय-धर्मपुस्तकान्तर्गतो हितोपदेश - बैप्टिस्ट मिशन मुद्रणालयद्वारा कलकत्ता में इ. 1877 में प्रकाशित । गणपतिदीक्षाकल्पसूत्रम् - 135 सूत्रों में पूर्ण। गणेशयोगमीमांसासूत्रम् - सूत्रसंख्या- 409 । गणेशसहस्रनाम - गणेशपुराण से उद्धृत । रुद्रयामल में संगृहीत। . गर्गशिल्पसंहिता- लंदन के ट्रिनिटी कालेज के ग्रंथालय में सुरक्षित। गर्गसंहिता - श्लोक- 3701 गल्पकुसुमांजलि - ऐतिहासिक विषय पर विविध लेखों का संकलन। गारुडसंहिता - विषय- मूर्ति के आकार प्रकार । गीतदोषविचार - चण्डिकास्तोत्रम् - चतुर्भुजी टीका सहित। अध्याय 13। श्लोक - 15001 चत्वारिंशत्सद्रागनिरूपणम् - चन्द्रहाससंहिता - शिव-चन्द्र संवादरूप । विषय- गूढ शरीर ज्ञान । चन्द्रावलीचान्द्ररामायणम् - हनुमान् तथा चन्द्र के संभाषण के माध्यम से रामायण-कथा का निरूपण है। इसमें 75000 श्लोक बताये जाते हैं। कहते हैं कि इसकी रचना रेवत मन्वन्तर के बत्तीसवें त्रेतायुग में हुई। चिकित्सा - काशिका की व्याख्या। आफ्रेक्ट की बृहत् सूची में दर्शित । चिदम्बररहस्यम् - छन्दःश्लोक - छन्दःसंख्याछन्दःसुधा - इस पर गणाष्टक नामक टीका है। छन्दोरत्नाकर - जप-पद्धति - श्लोक-9601
जपविधानम् - श्लोक - 4001 जैनाचार्यविजयचम्पू- मल्लीसेन आदि जैन साधुओं का चरित्र । डाकिनीकल्प - श्लोक- 2251 डामरतन्त्रसार- श्लोक- 1008 । ताननिघण्टु - विषय- संगीत। तालप्रस्तारम्- विषय- संगीत । तालमालिका - त्रिपुरदाह- (डिम) त्रिपुरसुंदरीमंत्रनामसहस्रम्तृतीयपुरुषार्थ-साधनसरणि- विषय- कामशास्त्र । दशभूमिसूत्रम् - दशभूमीश्वर सिद्धान्त का परिष्कृत एवं विकसित रूप इस में प्राप्त होता है इस संस्कृत रचना के चार चीनी
अनुवाद 297-789 ई. के अन्तर्गत धर्मरक्ष, कुमारजीव, वररुचि तथा शीलभद्र द्वारा संपन्न हुए। इसके समान अन्य रचना दशभूमिलेशच्छेदिकासूत्र (ई. 70 में अनूदित) केवल अनुवाद से ही ज्ञात है। दशभूमीश्वरसूत्र (नामान्तर- दशभूमिक, दशभूमक)महायान सूत्रग्रंथ। कतिपय प्राप्त पाण्डुलिपियों की पुष्पिकाओं में इसे "दशभूमीश्वर-महायान-सूत्ररत्नराज" कहा है। अवतंसक सूत्र का होते हुए, स्वतन्त्ररूप में प्रसिद्ध है वर्ण्य विषय दशभूमियों का विवेचन है जिनके द्वारा सम्यक् बोधि प्राप्त की जा सकती है। यह व्याख्यान बोधिसत्व वज्रगर्भ द्वारा किया गया है जिसे शाक्यमुनि दशभूमियों की व्याख्या के लिये
आमंत्रित करते हैं। रचना गद्य में है। प्रथम परिच्छेद में गाथाएं हैं। दिनेशचरितम् - विषय- सूर्यस्तुतिपरकाव्य । धनुश्चन्द्रोदय - विषय- धनुर्विद्या । धनुष्प्रदीप - विषय- धनुर्विद्या । धर्मकारिका - विभिन्न लेखकों की 508 कारिकाओं का संग्रह । धर्मप्रश्न - आपस्तम्बधर्मसूत्र का एक अंश। धर्मराजनाटकम् - प्रकाशक- कोल्हापुर के निवासी श्री गजानन बालकृष्ण दंडगे को कोल्हापुर जिले के अन्तर्गत अपने गांव में इसकी पाण्डुलिपि मिली तद्नुसार इसका लेखनकाल सन 1887 है। स्वातंत्र्य, जातिभेद, शिक्षा का महत्त्व आदि आधुनिक विचार समर्थ रामदास और उनके शिष्य श्री. शिवाजी महाराज के संवाद में इस नाटक में दिखाई देते हैं। धर्मशास्त्रसंग्रह- श्राद्धपरक स्मृति-वचनों का संग्रह। धर्मसारसमुच्चय - यह “चतुर्विंशतिस्मृतिधर्मसारसमुच्चय" ही है। धातुकल्प - विषय-खनिशास्त्र । भांडारकर प्राच्य विद्या संशोधन मंदिर में प्राप्य। धूर्तानन्दम - (नाटक) - विषय- विलासप्रिय नागर तरुण का अधःपात ।
432 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
For Private and Personal Use Only