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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 32 वां त्रेता माना जाता है। इसमें 18 हजार श्लोक हैं। इस रामायण में प्रमुखतया गिरिजापूजा, विवाहवर्णन, सुमंत विलाप, गंगापूजन, सीताहरण, कौसल्याहरण, दिलीप, रघु, अज, दशरथ आदि की परीक्षा का विवेचन है। स्वायम्भुववृत्ति स्वाराज्यसिद्धि ले. नारायणकण्ठ । यह शैव तंत्र है। ले गंगाधरेन्द्र सरस्वती । - स्वास्थ्य-तत्त्वम् ले. गोविन्द राय । ई. 19 वीं शती । शरीरशास्त्र तथा स्वास्थ्य विषयक ग्रंथ । स्वास्थ्यवृत्तम् ले. म्हसकर और वाटवे । स्वास्थ्य तथा दीर्घायुत्व का विवेचन । - - www.kobatirth.org 1 स्वोदयकाव्यम् ले कोरड रामचन्द्र आंधनिवासी विषयलेखक का आत्मचरित्र | हकारादि- हयग्रीव - सहस्र - नामावली (सव्याख्या) ले. - बेल्लमकोण्ड रामराय। ई. 19 वीं शती । आन्ध्रनिवासी । हठयोगप्रदीपिका (नामान्तर हठ प्रदीपिका) ले. - स्वात्माराम । इस ग्रंथ में हठयोग का विस्तृत विवेचन किया जाता है जो सर्वत्र प्रमाणभूत माना जाता है। इसके चार उपदेश (अध्याय) हैं जिनमें कुल 379 श्लोक हैं । ग्रन्थ के अन्त में कर्ता के रूप में श्री स्वात्माराम योगींद्र का नामोल्लेख है। कुछ विद्वान् इसका निर्माण काल इ.स. 14 वीं शताब्दी मानते हैं इसमें यमनियम, आसन, आहार-विहार, प्राणायाम, षट्कर्म, योगमुद्रा, बंध नादानुसंधान, समाधि आदि 156 विषयों की चर्चा की गई है। ब्रह्मानंद ने इस ग्रंथ पर 'ज्योत्स्ना' नामक टीका लिखी है। इसके अतिरिक्त (1) उमापति, (2) महादेव (3) रामानंदतीर्थ और (4) व्रजभूषण की टीकाएं उल्लेखनीय हैं। हत्यापल्लवदीपिका ले. श्रीकृष्ण विद्यावागीश भट्टाचार्य । श्लोक- 9921 विषय उन्मत्त भैरवी, फेल्कारिणी, डामरमालिनी, कालोत्तर, सिद्धयोगीश्वरी, योगिनी आदि तंत्रों से शान्ति, पौष्टिक, मारण, वशीकरण, स्तंभन, उच्चाटन आदि षट्कर्म । हनुमत्कल्प ले. जनार्दन मोहन । श्लोक- 200। हनुमत्कवचादि श्लोक- 218 विषय पंचमुखी हनुमत्कवच तथा पंचमुखी हनुमन्महामंत्र । हनुमद्विजयम् (काव्य) - ले. शिवराम । ई. 19-20 वीं शती । हनुमज्जयम्ले प्रधान वेंकप्प। श्रीरामपुर के निवासी । हनुमन्नक्षत्रमाला ( काव्य ) ले. श्रीशैल दीक्षित । हनुमद्दीपदानम् सुदर्शन संहिता के अन्तर्गत श्लोक- 701 हनुमद्दीपपद्धति - ले. - हरि आचार्य । 1 हनुमद्दूतम् - ले. नित्यानन्द शास्त्री । जोधपुर निवासी । हनुमद्वादशाक्षर मंत्रपुरश्चरण विधि श्लोक- 240 हनुमन्नाटकम् - संकलनकर्ता- 1. दामोदर मिश्र । 2. मधुसूदन । - - रामकथा पर आधारित यह काव्यरूप नाटक है। इसकी रचना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की अपि तु समय समय पर अलग अलग कवियों के रामचरितपरक काव्यों से इसे बढाया गया है । इ.स. 9 वीं शताब्दी से 14 वी शताब्दी तक इसका विस्तार होता रहा। इसी लिये कर्ता के रूप में "रामभक्त हनुमान्" का उल्लेख किया गया है। इसकी रचना के विषय में इसी ग्रंथ में अद्भुत कथा बताई गई है। रामभक्त हनुमान् ने अपने नाखूनों से शिला पर इसे लिखा और रामायण के कर्ता वाल्मीकी को दिखाया। वाल्मीकी इतनी सुंदर रचना देखकर दंग रह गये किन्तु इस आशंका से कि कहीं यह रचना उनके रामायण से अधिक लोकप्रिय न हो जाय, उन्होंने इसे समुद्र में डुबा देने का आदेश दिया। हनुमानजी के अवतार भोज ने उसे समुद्र से बाहर निकाला और दामोदर मिश्र ने इसका संकलन किया। इस नाटक में न तो सूत्रधार है न इसकी प्रस्तावना । इसमें कुल 576 श्लोक हैं जो रामायण के विभिन्न प्रसंगों पर हैं। इसकी एक प्रति बंगाल में है श्री सुशीलकुमार डे के अनुसार इसका संकलन 12 वीं शताब्दी में हुआ। मधुसूदन द्वारा संकलित इस बंगाल प्रति में कुल 720 श्लोक हैं जो 9 अंकों में विभक्त हैं। इसमें कहा गया है कि हनुमानजी से स्वप्न में आदेश मिलने पर राजा विक्रम ने यह नाटक समुद्र से बाहर निकाला। इस नाटक को "छायानाटक" भी कहा जाता है। इस नाटक में 14 अंक हैं; अतः इसे महानाटक भी कहा गया है। इसमें सीता विवाह से लेकर रावणवधोपरान्त राम का अयोध्या में लौटकर राज्याभिषेक, सीतानिष्कासन तथा परमधाम में प्रत्यावर्तन तक की घटनाओं का वर्णन है। हनुमन्नाटक में नाटकीय नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसमें प्रस्तावना तथा अर्थोपक्षेपक नहीं हैं। द्वितीय अंक में राम-सीता की श्रृंगार लीलाओं का विस्तृत वर्णन है जो कि नाटकीय मर्यादा के विरुद्ध है। रंगमंचीय निर्देशों तथा नाटकीय नियमों के अभाव के कारण इसे सफल नाटक नहीं माना जा सकता । 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 हनुमत्पंचमचपटलम् सुदर्शन संहितान्तर्गत श्लोक 220 हनुमत्-पद्धति श्लोक- 2501 हनुमद्- भरतम् - ले. आंजनेय । हनुमन्मालामन्त्र - श्लोक - 4401 हनुमद्विलासम्ले. सुन्दरदास रामानुज पुत्र 20 वीं शती । हनुमत्शतकम् - ले. पारिथीयूर कृष्ण । ई. 19 वीं शती । हनुमत्स्तोत्रम् - ले. - बाणेश्वर विद्यालंकार । ई. 17-18 वीं शती । हम्मीरमहाकाव्यम् - ले. नयनचन्द्रसूरि ई. 14-15 वीं शती । 14 सर्ग तथा 1576 पद्यों का यह एक वीर श्रृंगार प्रधान ऐतिहासिक महाकाव्य है। इस का अब तक दो बार प्रकाशन हुआ है। 1) एन्युकेशन सोसायटी प्रेस मुंबई से ई. स. संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 425 For Private and Personal Use Only -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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