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से प्रकाशित संगीतरत्नाकर के संस्करण में संगीत-सुधाकर साथ ही मुद्रित है। शिंगभूपाल की संगीतसुधाकर टीका कालक्रम में प्राचीनतम टीका हैं। इनकी टीका विशद तथा स्पष्ट हैं। कल्लिनाथ की टीका लिए भी यह टीका उपजीव्य रही है। परंतु आश्चर्य का विषय यह है कि संगीतरत्नाकर के नर्तन अध्याय के अन्तर्गत प्रस्तुत रसविषयक अंश को शिंगभूपाल ने विशेष विवेचन के योग्य नहीं समझा है। यह विवेचन प्रायः 320 कारिकाओं में किया गया है। शिंगभूपाल दस कारिकाओं पर संक्षेप में एक साथ व्याख्या करते हैं। कहीं कहीं तो केवल विषय निर्देश मात्र करते हैं। अंतिम तीस कारिकाओं पर इस व्याख्या का अंश उपलब्ध नहीं है। संगीतरत्नाकर में रसस्वरूप तथा रसनिष्पत्ति का सुंदर विवरण हुआ है। इनकी कारिकाओं की छाया रसाणवसुधाकर की कारिकाओं में दृष्टिगोचर होती है। यह संभव है कि यह किसी समान स्रोत के कारण हो। शाङ्गिदेव की कुछ मान्यताएं शिंगभूपाल की मान्यताओं के विरुद्ध हैं। शाङ्गदेव शांतरस के समर्थक हैं। करुणविप्रलंभ का वे उल्लेख नहीं करते। विप्रलंभ तभा करुण के भेद को उन्होंने सयुक्तिक निरूपित किया है। बीभत्स तथा भयानक के निरूपण में वे भरतमत
का ही अनुसरण करते हैं। इन प्रकरणों की व्याख्या में शिंगभूपाल ने कहीं भी अपनी विमति प्रकट नहीं की है। रसार्णवसुधाकर में शांतरस, करुणविप्रलंभ जैसे अधिक महत्त्व के विषयों के संबंध में रत्नाकर का उल्लेख नहीं हुआ है। उभय के भेद के संबंध में वे सोढलसूनु (शाङ्गदेव) का उल्लेख कर अपने मतांतर को लेखबद्ध करते है। शाङ्गदेव
का यह वर्गीकरण भरत के अनुरूप ही है। बीभत्स भेद के प्रसंग में अपने भिन्न मत को शिंगभूपाल ने दशरुपक के विवेचन के सन्दर्भ में व्यक्त किया है। रत्नाकर के रसनिरूपण की व्याख्या में अपेक्षाकृत अनवधान का कारण यह हो सकता है कि इस विषय का विषद विवेचन अन्यत्र उपलब्ध था। संगीतशास्त्र का व्यवस्थित तथा व्यापक ग्रंथ होने के कारण व्याख्या भी तदनुरूप गंभीर है। शारंगदेव अभिनवगुप्त के अनुयायी हैं परंतु शिंगभूपाल कहीं भी उनका नाम नहीं लेते तथा भिन्न परंपरा का अनुसरण करते हैं। संगीतरत्नावली - ले.- मम्मट । ई. 12 वीं शती। संगीतराघवम् - ले.- गंगाधरशास्त्री मंगरुलकर । नागपुरनिवासी। ई. 19-20 वीं शती। गीतगोविंद के समान गीतिकाव्य। (2) ले.- चिन्नाबोम भूपाल। संगीतराज (या संगीतमीमांसा) - ले.- कुम्भकर्ण (कुम्भ या कुम्भराणा) 16000 श्लोक और संगीत, वाद्य, वेशभूषा, नृत्य तथा हाव-भाव, नायक-नायिका तथा रस विषयक अध्याय हैं : गीतगोविन्द-टीका (रसिकप्रिया) से ज्ञात होता है कि छन्द पर भी एक अध्याय था। रचना इ. 1440 में पूर्ण।
गीत तथा वाद्य पर तर्कपूर्ण विवेचन । दत्तिल और अभिनवगुप्त का अनुसरण, वीणा तथा वंशी पर पूर्ण विवेचन। संगीत शास्त्रीय गवेषणा इस रचना के अध्ययन विना अधूरी रहेगी। (2) ले. भीमनरेन्द्र। संगीतलक्षणम् - ले.- चन्द्रशेखर । संगीतविनोद - ले.- भवभट्ट (या भावभट्ट) संगीतवृत्तरत्नाकर - ले.- विट्ठल। संगीतशास्त्रसंक्षेप - ले.- गोविन्द। इसमें वेंकटमखी के मत का खण्डन और अच्युतराय (सन- 1572-1614) की वीणा का उल्लेख है। संगीतशृंगारहार - ले.- हम्मीर। (संभवतः मेवाडनरेश) मृत्य ई. 13941 संगीतसमयसार - ले.- पार्श्वदेव। समय 13 वीं शती। लेखक-अपने को 'अभिनव-भरताचार्य कहलाते हैं। कुल १ अधिकरण- 1 नाद तथा ध्वनि, (2) स्थायी, (3) राग, (4) ढोक्की, (5) वाद्य, (6) अभिनय, (7) ताल, (8) प्रस्तार और (9) आध्वयोग। संगीतसंग्रहचिन्तामणि - ले.- अप्पलाचार्य। संगीतसरणी - ले.- कविरत्न नारायण मिश्र, (अन्य रचनाएं बलभद्र विजय, शंकरविहार, उषाभिलाष, कृष्णविलास, नवनागललित, रामाभ्युदय) इसके अनुसार प्रबन्ध दो प्रकार के शुद्ध और सूत्र। शुद्ध प्रबन्ध में गेय गीत अनेक रागों के होते हैं उदा. गीतगोविन्द, पुरुषोत्तम का रामाभ्युदय इ.। सूत्र प्रबन्ध में एक ही राग के अनेक गेय गीत होते हैं उदा. रामाभ्युदय ले.- नारायण-मिश्र । संगीतसर्वस्वम् - ले.- जगद्धर । ई. 15 वीं शती। संगीतसर्वार्थसंग्रह - ले.- कृष्णराव। संगीतसागर - ले.- प्रतापसिंग। संगीतज्ञों की संसद् नियुक्त कर उसकी सहायता से संगीतकोशरूप प्रस्तुत ग्रंथ निर्माण किया गया। संगीतसार - ले.- विद्यारण्यस्वामी। (2) ले.- नारायण कवि। संगीतसारकलिका - ले.- शुद्धस्वर्णकार भोसदेव। संगीतसारसंग्रह - ले.- सौरीन्द्र मोहन। (2) ले.जगज्ज्येतिर्मल्ल। इनकी अन्य विविध रचनाएं हैं। इनके पुत्रपौत्र भी कवि हुए। संगीतसारामृतम् - ले.-तुलजराज (तुकोजी) तंजौरनरेश। शागदेव द्वारा चर्चित सर्व विषयों का परामर्श इस ग्रंथ में लिया गया है। संगीतसारोद्धार (या रागकौतूहलम्) - ले.- हरिभट्ट । संगीतसिद्धान्त - ले.- रामानन्दतीर्थ । संगीतसुधा - ले.- भीमनरेन्द्र।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 397
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