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बलि से अमृतकलश ले लेते हैं। तृतीय अंक में दैत्यों के भय से समुद्र से निकली हुई सारी वस्तुएं वापस लौटने लगती हैं तो समुद्र स्वयं प्रकट होकर उन्हें रोकता है। देवतागण उन्हें अभय देते हैं समुद्रमंथन में सात चूलिकाएं हैं। समुद्रमन्थनचम्पू ले. बेल्लमकोण्ड रामराय। आंध्र निवासी । सरला भागवत के वेद-स्तुति-स्थल ( भाग 10-87) की टीका । टीकाकार- योगी रामानुजाचार्य । टीका बडी विस्तृत है। और रामानुज के मान्य सिद्धान्तों को दृष्टि में रखकर विरचित है। इसमें श्रुति वाक्यों का तथा तदनुसारी भागवत पद्यों का अर्थ बड़ी गंभीरता के साथ स्वमतानुसार दिखलाया गया है। इसमें पद्यों का अन्वय भी दिया गया है। इसका रचना - काल श्रीनिवास सूरि (19 वीं शती का पूर्वार्ध) के बाद का है। अतः यह कृति आधुनिक ।
सरला ले. म.म. हरिदास सिद्धान्तवागीश। सन् 18761961, आधुनिक उपन्यास तंत्र के अनुसार लिखित कथा । सरसकविकुलानन्द (भाग) ले रामचन्द्र लाल ई. वेल्लाल । 18 वीं शती कीपुरनायक की चैत्रयात्रा महोत्सव में अभिनीत नायक- भुजंगशेखर । सरस्वती सन् 1923 में मुक्त्याला (मद्रास) से राजावासी रेड्डी तथा सदा विश्वेश्वरप्रसाद बहादुर के सम्पादकत्व में इस साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ।
सरस्वतीकण्ठाभरणम् ले. महाराज भोज। इस बृहत् शब्दानुशासन में आठ बडे अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद है कुल सूत्र 6411 गणपाठ, उणादिसूत्र लिंगानुशासन, परिभाषा मूलसूत्रों में समाविष्ट है। प्रथम सात अध्यायों में लौकिक शब्द सन्निविष्ट है। आठवें में वैदिक शब्दों का अन्वाख्यान हैं। ग्रंथ का मुख्य आधार पाणिनीय तथा चान्द्र व्याकरण हैं किन्तु चान्द्र का आधार अधिकतर है। सरस्वतीकण्ठाभरण - व्याख्यान नाम से स्वयं भोज ने अपनी कृति पर व्याख्या लिखी यह सप्रमाण सिद्ध है। अन्य टीकाकार(1) दण्डनाथ नारायणभट्ट (ई. 12 वीं शती) कृत हृदयहारिणी । (2) कृष्णलीलाशुकमुनि (इ. 13 वीं शती) कृत पुरुषकार (3) रामसिंह देवकृत रत्नदर्पण | सरस्वतीकण्ठाभरणम् - ले. महाराज भोज। इस में 5 बृहत् अध्याय हैं जिनमें काव्यगुणदोषविवेचन, अलंकार तथा रस का विवेचन है । साहित्य की साधारण संकल्पनाएं प्रभृत उदाहरणों सहित समझाई गई हैं। उदाहरण प्रथितयश कविओं की रचनाओं से हैं, इस कारण यह रचना वैशिष्ट्यपूर्ण है। टीकाकार - (1) रत्नेश्वर मिश्र (2) भट्ट नरसिंह, (3) लक्ष्मीनाथ भट्ट (4) जगदूधर ।
सरस्वतीतंत्रम् - शिव-पार्वती संवादरूप । पटल 71 विषयतंत्रानुसार - योनिमुद्रा का विधान है। मंत्र का चैतन्य, योनिमुद्रा,
392 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
कुल्लुकामहासेतु मुखशोधन विधि प्राणयोग इ. सरस्वतीपंचांगम् श्लोक- 4161
सरस्वतीपूजा - ले. ज्ञानभूषण। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती । सरस्वती-भवनानुशीलनम् सरखती-भवन वाराणसी से डॉ. गंगाधर झा की संरक्षकता में अनुसंधानात्मक निबंधों के प्रकाशन हेतु 1920 में अनुशीलन नामक पत्रिका प्रारंभ की गई। इसमें वाराणसेय और संस्कृत विद्यालय के विद्वानों के उच्च कोटि के निबंध प्रकाशित किये गये। सन् 1920 में सरस्वती पुस्तकालय भवन में विद्यमान अप्रकाशित ग्रंथों को प्रकाशित करने के लिये "सरस्वती ग्रंथमाला' का प्रकाशन किया गया। सरस्वती- विलास ले. कटक के राजा श्री प्रतापरुद्रदेव । 16 वीं श । अपनी राजधानी में पंडितों की सभा का आयोजन व उनसे चर्चा करने के पश्चात् आपने प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में आर्थिक विधान ( दीवानी कानून) तथा धर्मशास्त्र के नियमों का समन्वय किया गया है। बाद में इस ग्रंथ को विधान (कानून) का स्वरूप प्राप्त हुआ । सरस्वतीमंत्रकल्प ले. मल्लिषेण । जैनाचार्य इ. 7 वीं या 11 वीं शती । इसमें 75 पद्य और अल्पमात्र गद्य है। सरस्वतीसौरभम् सन 1960 में बडोदा से जयनारायण रामकृष्ण पाठक के सम्पादकत्व में इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह बडोदा- स्थित विद्वत्सभा का प्रमुख पत्र होने से सभा का विवरण और फुटकर रचनाओं का इसमें प्रकाशन होता था । सरस्वतीहृदयभूषणम् (या सरस्वती हृदयालंकारहार) ले नान्यदेव 12 वीं शती का पूर्वार्ध तिरहुत (मिथिला) के राजा । सतरा अध्याय 10,000 पद्य। इसकी पाण्डुलिपि भाण्डारकर प्राच्य विद्यासंस्थान, पुणे में विद्यमान है। अन्य रचनाएं- मालतीमाधव- टीका, भरतनाट्य- शास्त्रभाष्य ( भरतवार्तिक) इसमें संगीत विषयक प्रगति का मूल वैदिक काल में बताया है, प्रत्येक उपकरण की तुलना पवित्र ऋषियों द्वारा यज्ञविधि में उपयोग में लाए जाने वाले उपकरणों से ही है। बांसरी को छोड़ प्रत्येक विषय पर विस्तृत विवेचन है। बांसरी पर कुम्भकर्ण की विस्तृत चर्चा है। सप्तगीती, देशी गीत, प्राचीन ताल (जो अब उपयोग में नहीं) पर विस्तृत विवचन है, वीणावादन (एकतंत्री, पिनाकी, जिरी) जो ऋषियों द्वारा सप्त स्वरों में तल्लीनता के लिए होता था, उसका वर्णन है 140 रागों की सूचि दी है और शाइंगदेव ने 260 राग कहे हैं।) उनके निर्माता काश्यप तथा मतंग का निर्देश है। सरःकालिका 1 ले. भास्वत्कविरल विषय श्राद्ध, आशीच, शुद्धि, तथा गोत्र आदि । सरोजसुन्दरम् (या स्मृतिसार) - ले. कृष्णभट्ट । सर्वकालिकागम शिव-पार्वती संवाद रूप। विषय- श्री काली का देवी का माहात्म्य, यंत्र, कवच आदि जिनसे
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