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चित्- स्थपतिमहायाज्ञिक" कहा गया है। यह "कीर्ति प्रकाश" नामक निबन्ध का एक अंश है। गौर कुल में उत्पन्न कनकसिंह के पुत्र कीर्तिसिंह के आदेश से प्रणीत । इसका विरुद्ध है। "कोदण्डपरशुराममानोन्नत", जो मदनसिंह देव के समान है, जिसके आदेश से मदनरत्न का प्रणयन हुआ। (2) ले.मुकुन्दलाल । (3) ले. रामचन्द्रयज्वा ।
समय प्रदीप- ले. दत्त उपाध्याय । ई. 13-14 वीं शती (2) ले. विठ्ठल दीक्षित (3) ले. हरिहर भट्टाचार्य विषयधार्मिक कृत्यों के मुहूर्त । (4) ले ठक्कुर कृत जीर्णोद्वार ।
श्रीदत्त टीका- मधुसूदन
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समयमयूख (या कालमयूख) द्वारा मुद्रित। (2) ले.- कृष्णभट्ट । समयरत्नम् ले मणिराम ।
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समयसार
ले. रामचन्द्र । सूर्यदास के पुत्र । टीका- (1) लेखक के भाई भरत द्वारा टीका (2) सूर्यदास एवं शिवदास । विशालाक्ष के पुत्र द्वारा । 3) इसने लेखक को अपना गुरु माना है। समयसारकलश ले. अमृतचन्द्रसूरि । जैनाचार्य। ई. 10-11 वीं शती। समयसारटीका ले. अमृतचन्द्रसूरि जैनाचार्य ई. 10-11 वीं शती ।
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ले. नीलकण्ठ । घारपुरे
उमा-महेश्वर संवादरूप। श्लोक- 300 1 समयाचारतन्त्रम् विषय- समयाचार शब्द का अर्थ, वाग्वादिनी मंत्र, विजयास्तोत्र, तन्त्रोक्त कर्म में समय का महत्त्व । खीर, दही, मट्ठा आदि 14 पदार्थ, उनके शोधन के प्रकार। प्रातःकाल, मध्याह्न आदि पांच जपकाल । शान्तिक, वश्य, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि षट्कर्मों के अनुरूप मुद्रादि । पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तरादि आम्नाय पूर्व आदि आम्नायों के देवता । उक्त आम्नायों की भिन्न-भिन्न मालाएं। शान्तिक आदि में आसनभेद, जपस्थान, मंत्रों के पुल्लिंग, नपुंसक आदि कथन । वामाचार, दक्षिणाचार आदि, तंत्र, यामल आदि की संख्या । मत्स्य, मांस, मुद्रा, मैथुन मद्यादि पंच मकारों का कथन शक्तिसाधन इत्यादि । समयाचारसंकेत श्लोक- 2881 समयातन्त्रम् - देवी-ईश्वर संवाद रूप। पटल 10 श्लोक1200। विषय- गुरुक्रमवर्णन, तारा प्रकरण, दक्षिणकालिका प्रकरण, नित्यपूजा, शवसाधन, उच्छिष्ट चाण्डालिनीसिद्धि साधन, प्रचण्डासिद्धि, षट्कर्मविचरण।
समयालोक - ले. पद्मनाभ भट्ट ।
समरशान्तिमहोत्सव ले. पी. व्ही. रामचन्द्राचार्य मद्रास राज्य के शिक्षाधिकारी ।
समरांगणसूत्रधार ले धारानगरी के अधिपति भोज विषयवास्तुशास्त्र । श्री द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल के अनुसार इसके कुल 83 अध्याय है जिनमें पुरनिवेश, भवननिवेश, प्रासादनिवेश,
प्रतिमानिर्माण व यंत्रघटना- इन पांच विषयों का विस्तृत विवेचन है। इनके अलावा अगस्त्य के सकलाधिकार तथा काश्यप के अंशुमभेद में भी प्रतिमानिर्माण का व्यापक विवेचन है । समवृत्तसार ले. नीलकण्ठाचार्य ।
समस्या- कुसुमाकर (पत्रिका) कार्यालय वाराणसी में । 1924 में प्रारंभ।
समस्यापूर्ति ई.स. 1900 में कोल्हापुर से आप्पाशास्त्री राशिवडेकर के सम्पादकत्व में समस्यापूर्ति करने वाली इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। जिन प्रतिभावान् संस्कृत कवियों की रचनाएं धनाभाव के कारण प्रकाशित नहीं हो पाती थीं, उनकी रचनाओं को इसमें स्थान दिया जाता था। समातंत्रम् (वर्षतंत्र अथवा ताजिक-नीलकंठी)- ले. - नीलकंठ । ई. 16 वीं शती । विषय ज्योतिषशास्त्र । समाधानम् (नाटक) ले. रमानाथ मिश्र । रचना सन् 1945 में । विषय- छात्र तथा छात्राओं के युरोपीय पद्धति के गान्धर्व विवाह से उत्पन्न वैवाहिक समस्याओं के समाधान की चर्चा | अंकसंख्या पांच । समाधितंत्रटीका ले. प्रभाचन्द्र जैनाचार्य समय दो मान्यताएं । (1) ई. 8 वीं शती । (2) 11 वीं शती । समाधिराज परवर्ती महायान सूत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रधान वक्ता के रूप में चन्द्रप्रदीप (चन्द्रप्रभू होने से इसे "चन्द्रप्रदीपसूत्र" कहा है। चन्द्रप्रदीप एवं तथागत के संवाद का वर्णन है। 16 परिवर्त । समाधियों की सहायता से प्रारंभिक अवस्था से (जैसे पूजा, परित्याग, दयालुता आदि ) शून्यता की अवि तक जाने का मार्ग विशद किया है। प्रथम यह रचना अल्पकाय थी, कालान्तर में विशद तथा बृहत् हुई। आंशिक संस्करण काश्मीर महाराज की सहायता से हुआ। कलकत्ता से संपादित प्रथम चीनी अनुवाद ई 148 में संपन्न हुआ । यह प्रथम तथा द्वितीय शती के मध्य की रचना मानी जाती है। समाधितत्त्वम्ले देवनन्दी पूज्यपाद जैनाचार्य ई. 5-6 वीं शती माता श्रीदेवी पिता माधव भट्ट । समान्तरसिद्धि - ले. धर्मकीर्ति । ई. 7 वीं शती । समावर्तनप्रयोग ले. श्यामसुन्दर ।
समासवाद ले. - गोविन्द न्यायवागीश । समुदायप्रकरणम् ले. जगन्नाथ सूरि ।
समुद्रमन्थनम् (समवकार) ले. वत्सराज ( या पितामह) संक्षिप्तकथा इस में देव और दानवों द्वारा अमृतप्राप्ति के लिये किये गये समुद्रमंथन की कथा है। प्रथम अंक में देव और दानव क्षीरसागर को मथते हैं। जिसमें चन्द्रमा, उच्चैःश्रवा, अमृत आदि निकलते हैं, किन्तु दैत्यराज बलि चतुराई से अमृतकलश ले लेता है। समुद्र से विष निकलने पर शंकर उसे ग्रहण करते हैं । द्वितीय अंक में मोहिनी के वेश में विष्णु
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संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 391