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शैवागमनिबन्धनम् - ले. मुरारिदत्त । श्लोक 47001 27 पटलों में पूर्ण वियम मंत्रप्रयोग मंत्रसिद्धि, मुद्रा, दीक्षा, अभिषेक, शैवमण्डल, प्रतिष्ठा, जीर्णसंस्कार, सब प्रकार के स्थानों का निरूपण, उनके अंगभूत अन्यान्य कर्मों के साथ इस में संक्षेपतः वर्णित हैं 1
शैवानुष्ठानकलापसंगह ले गर्तवनशंकर । श्लोक - 105001 इसमें शैवानुष्ठान संग्रह वर्णित हैं। अति गोपनीय ग्रंथ । विषय - देवविग्रह की यथाविधि पूजा, अन्य दान आदि से सब की परितुष्टि, नवें दिन रात्रि में निशाहोम, विधिपूर्वक भूतबलि का विकिरण कर देवताओं को नमस्कार करना और मांगना, तदुपरान्त उत्त्सवविधि आदि । शैवालिनी (उपन्यास) विभागाध्यक्ष, वाराणसी वि.वि.
ले. चक्रवर्ती राजगोपाल । संस्कृत
ले. -
शैशवसाधनकाव्यम्
(1888-1972) शैशिरी शाखा ऋग्वेद की इस शाखा के संहिता ब्राह्मणादि ग्रंथ अप्राप्त हैं। अनुवाकानुक्रमणी, ऋक्प्रातिशाख्य और विकृतिवल्ली ग्रंथों में इस संहिता की अष्ट विकृतियों का स्पष्ट उल्लेख किया है । सायण का भाष्य जिस शाखा पर है वह अधिकाश में शैशिरी ही है।
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शोकमहोर्मि ले. कुलचन्द्र शर्मा । काशीनिवासी। रानी व्हिक्टोरिया के निधन पर संवादात्मक गद्यमय शोककाव्य । सन 1901 में प्रकाशित । शौचसंग्रहविवृत्ति ले. भट्टाचार्य । शौनककारिका ले. 20 अध्यायों में गुहा कृत्यों का विवरण। आश्वलायनाचार्य, ऋग्वेद की पांच शाखाओं तथा सर्वानुक्रमणी का उल्लेख इसमें है।
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म.म. कालीपद तर्काचार्य
शौनकसंहिता (अथर्ववेद) अथर्ववेद की प्रसिद्ध शौनक संहिता में प्रायः 20 काण्ड, 34 प्रपाठक 111 अनुवाक, 773 वर्ग, 760 सूत्र, 6000 मंत्र और 73826 शब्दों का विभाजन पाया जाता है किन्तु इस वर्गीकरण में अनेक मतभेद हैं। सूत्रों के विषय में व्हिटनी के मत से 598, ब्लूमफील्ड के मत से 730, एस.पी. पण्डित के मत से 759, तो अजमेर संस्करण से 731 सूत्र हैं। मंत्रसंख्या के विषय में व्हिटनी के मत से 5038, ब्लूमफील्ड के मत से 6000, एस.पी. पण्डित के मत से 6015, गुजरात संस्करण में 6680, सातवलेकर के मत से 5977 मंत्र हैं। संहिता में पाठभेद भी पर्याप्त हैं । लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद की "शाकलसंहिता" के प्रथम, अष्टम और दशम मण्डल में पाये जाते हैं। बीसवां काण्ड कुन्तापसूक्त और अन्य मंत्रों को छोड समग्र रूप में ऋग्वेद मंत्रों से ही भरा है।
इस प्रकार ऋग्वेद के मंत्रों की पुनरावृत्ति होते हुए भी
376 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
आधुनिकों के मतानुसार सभ्यता के ऐतिहासिक स्रोत के रूप में अथर्ववेद का महत्त्व ऋग्वेद से कम नहीं। पाश्चात्यों के मतानुसार संहिता में जनता के पिछडे विचार प्रस्तुत हैं । इसकी तांत्रिक सामग्री ॠग्वेद से भी प्राचीन है। वह प्रतिहासिक काल की मानी जाती है। अर्थववेद के शान्ति-पुष्टिकारक, सम्मोहन, मारण, उच्चाटन आदि तामस विषयोंके मंत्र इसमें माने जाते हैं।
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इसके प्रमुख ऋषि कण्य, तांदायण, कश्यप, आथर्वण, आंगिरस, कक्षिवान्, चालन, विश्वामित्र,, अगस्त्य, जमदग्नि, कामदेव आदि हैं। पृथ्वीसूक्त इसकी अपनी विशेषता है। विवाह, पुत्र रोगनिवारण-सूक्त नक्षत्रसूक्त, शान्तिसूक्त आदि सूक्त भी महत्त्व के हैं। राजनीति, समाजशास्त्र, वनस्पतियों के विविध प्रयोग तथा आभिचारिक सामग्री भी पर्याप्त पाई जाती है। इनके अतिरिक्त आध्यत्मिक ब्रह्मवाद की सामग्री इस संहिता में है। इसमें अधिकांश पद्य और कुछ गद्य भी है।
मंत्रों का संकलन विशिष्ट उद्देश्य रखकर किया जाने से रचना कृत्रिम व शिथिल लगती है। ऋग्वेद के समान मंडल रचना, देवताओं का क्रम, ऋषियों का निर्देश सुबद्ध नहीं है। 1 से 5 कांडों के सूक्तों में 4 से 8 मंत्र हैं। 6 वें कांड में एक या दो । 8 से 12 बड़े है। उनमें विषयों का वैचित्र्य है। 13 से 18 में विषयों की एकरूपता है। 15-16 गद्यमय हैं। अंतिम दो खिल कांड के रूप में परिचित हैं। वे बाद में जोड़े गये हैं। अंतिम कांड की मंत्रसंख्या एक हजार के आसपास है। ये मंत्र सोमयाग के लिये हैं। अथर्ववेद का पंचमांश भाग ॠवेद से लिया है। वर्तमान ऋग्वेद में जो नहीं परंतु उसकी किसी शाखा से ग्रहण किये गये कुन्ताप नाम के दस सूक्त अंतिम कांड में हैं। कौषीतकी ब्राह्मण के अनुसार ( 30.5) इनका उपयोग यज्ञ विधान में आवश्यक था। इन सूक्तों में राजा परीक्षित और उनके राष्ट्र का वर्णन है।
पैप्पलाद शाखा के उपग्रंथ नहीं मिलते पर शौनक शाखा के हैं । गोपथ ब्राह्मण अथर्ववेद का एकमेव ब्राह्मण और प्रश्न, मुंडक, मांडुक्य ये तीन उपनिषद् अथर्ववेद के हैं। वैतान एवं पैठीनसी श्रौतसूत्र, समन्त धर्मसूत्र एवं कौशिक गृह्यसूत्र इसके हैं। इसका प्रातिशाख्य है । नक्षत्रशांति, अंगिरस समान कल्प परिशिष्ट में है।
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प्राचीन मानव समाज के अध्ययन की दृष्टि से अथर्ववेद बहुमूल्य समृद्ध साहित्यनिधि है। वैद्यक शास्त्र की प्रगति, राष्ट्र विषयक विचार एवं व्यवहार, स्त्री-पुरुष संबंध, लेनदेन, लोकभ्रम, संकेत, अध्यात्म आदि अनेक विषयों का ज्ञान इसके अध्ययन से मिलता है।
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अथर्ववेद में 144 सूक्त आयुर्वेद 215 राजधर्म, 75 समाजव्यवस्था, 83 आध्यात्मिक एवं 213 विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं । दीर्घायु की कामना करने वाले अनेक सूक्त हैं।