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अधिकारी की मृत्यु ई. 1646 में हुई। असूयिनी - ले- लीला राव-दयाल । निवास- मुंबई में। चार दृश्यों में विभाजित सामाजिक नाटिका। कथासार - रेविका धीवरी के बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं। पडोसिन के बालक की बलि देने का वह उपक्रम करती है, परंतु शीघ्र ही उसे प्रतीत होता है कि यह घोर पाप है और उस से परावृत्त होती है। अहल्याचरितम् (महाकाव्य) - ले. सखाराम शास्त्री भागवत । विषय- इन्दौर की महारानी अहल्यादेवी होलकर का चरित्र।। अहल्यामोक्षचम्पू - ले. नारायण भट्टपाद । अहिर्बुध्यसंहिता - पांचरात्र- साहित्य के अंतर्गत निर्मित 215 संहिताओं में से प्रमुखतम संहिता। इसके कर्ता हैं अहिर्बुध्य जिन्होंने दीर्घ तपस्या करते हुए संकर्षण से सत्य ज्ञान प्राप्त किया। उसी ज्ञान से प्रस्तुत संहिता प्रकट हुई। इस संहिता में जीव व ब्रह्म का संबंध वेदों के समान 'सयुजा व सखा' के स्वरूप का है। इसमें बताया गया है कि सत्य अनादि, अनंत, शाश्वत, नाम-रूपरहित अविकारी, वाङ्मनसातीत है। इसे ही परमात्मा, भगवान् वासुदेव, अव्यक्त आदि से संबंधित किया जाता है। इस संहिता के मतानुसार पुरुष-प्रकृति-भेद प्रद्युम्न से प्रारंभ होता है न कि संकर्षण से। इस संहिता की निर्मिति काश्मीर में हुई। अहिमहिहननम् - कवि- वा.आ. लाटकर, काव्यतीर्थ । कोल्हापुर-निवासी। आंग्ललघुकाव्यानुवाद - ले- श्री.ल.ज. खरे। कतिपय अंग्रेजी कविताओं के संस्कृत अनुवाद का संग्रह । शारदा प्रकाशन पुणे-30। आंग्लगानम् - रचयिता- एस. नारायण। विषय अंग्रेजी राज्य की स्तुति । मद्रास-निवासी। आंग्लजर्मनीयुद्धविवरणम् . कवि- तिरुमल बुक्कपट्टणम् श्रीनिवासाचार्य । विषय- यूरोप का प्रथम (1914-18) महायुद्ध । आङ्ग्लसाम्राज्यमहाकाव्यम् - कवि- ए.आर. राजवर्मा, त्रिवांकुर (त्रावणकोर) के संस्कृत विभागाधिकारी । 19-20 वीं शताब्दी। आङ्ग्लाधिराज्य-स्वागतम् - (1) लघुकाव्य। कवि म.म. वेंकटनाथाचार्य। विशाखापट्टण के निवासी। (2) कवि-परवस्तु रंगाचार्य। विषय- अंग्रेजी साम्राज्य के इतिहास का वर्णन।।
आंग्रेजचन्द्रिका - कवि- विनायक भट्ट। अंग्रेजी साम्राज्य की बहुत सी घटनाओं का वर्णन। सन्- 18011
आंगिरसस्मृति - श्लोकसंख्या 72। डॉ. काणे के अनुसार यह संक्षिप्त ग्रंथ होना चाहिये। विषय- अत्यंज का अन्नोदक लेने पर प्रायश्चित की आवश्यकता। आंजनेयमतम् - विषय- संगीत शास्त्र का आंजनेय द्वारा याष्टिक को प्रतिपादन।
आंजनेयविजय-चम्पू - कवि-नृसिंह । आंजनेयशतकम् - ले- प्रधान वेंकप्प । श्रीरामपुर के निवासी। आन्ध्र-महाभारतम् - सन् 1959 से 'टेम्पल स्ट्रीट काकिनाडा' से टी. बुच्छी राजू के सम्पादकत्व में इस साहित्य व संस्कृति विषयक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
आकाशपंचमी-व्रतकथा - ले- श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। आकाशभैरवकल्प - (1) उमामहेश्वर-संवादरूप। श्लोक 2000। इसके 78 अध्यायों के मुख्य विषय हैं, उत्साहप्रक्रम, यजनविधि, उत्साहाभिषेक मन्त्र-यन्त्र-प्रक्रम, चित्रमाला मन्त्र, आकषर्ण, मोहन, द्रावण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, निग्रह, प्रयोग, भोगप्रदविधि, आशुतायविधि, आशु-गारुड प्रयोग, शिष्याचारविधि, राजकल्प, शरभेशाष्टक स्तोत्र आदि । रक्षाभिषेक, बलिविधान, मायाप्रयोग, मातृकावर्णन, भद्रकालीविधि,
औषधविधि, शूलिनी-दुर्गा-कल्प, वीरभद्रकल्प, जगत्क्षोभणमहामन्त्र, भैरव, दिक्पाल, मन्मथ, चामुण्डा मोहिनी, द्राविणी, आदि के विधि । शब्दाकर्षिणी भाषासरस्वती, महासरस्वती, महालक्ष्मी आदि के प्रयोग। महाशान्तिविधि, संक्षोभिणीविधि, धूमावतीविधि, धूमावतीप्रयोग, चित्र-विद्याविधि, देशिकस्तोत्र, दुःस्वप्रनाशमन्त्रविधि, पाशविमोचनविधि, औषधमन्त्रविधि, कालमन्त्रविधि, षण्मुखमंत्रविधि, त्वरिताविधि वडवानलभैरवविधि, ब्राह्मी-प्रभृति- सप्तमातृविधि, नारसिंहीविधि एवं शरभहृदय आदि।
आकाशभैरव-तन्त्रम् - शिव-पावर्ती संवादरूप। श्लोकसंख्या 39001136 पटल। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से सामाज्यलक्ष्मी
की पूजा का वर्णन है। तदनन्तर राजप्रासाद की वास्तु का निर्माण, भिन्न-भिन्न प्रकार के गज और शस्त्रास्त्र रखने की पद्धति का वर्णन है। 99 पटलों में पुरलक्षण, उसके मार्ग, बाजार और गृहों की रचना का वर्णन है। प्राचीर के बीच में राजा का महल हो। प्राचीन की चारों और जामाताओं, पुत्रों, बन्धु-बान्धवों और सम्बन्धियों के गृहों का निर्माण किया जाये। उसकी चारों ओर रथ के संचारयोग्य मार्ग बनाये जायें। प्राचीर के ऊंचे फाटक के निर्माण के साथ-साथ राजमार्ग के चारों और पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में विभिन्न बाजारों का निर्माण किया जाय। इसके दूसरे भाग में छोटे छोटे 72 अध्यायों में विभिन्न देवताओं की पूजा प्रतिपादित है। आख्यातचन्द्रिका - ले. भट्टमल्ल। ई. 13 वीं शती से प्राचीन। विषय- धातुपाठ की व्याख्या। मल्लिनाथ ने अपनी नैषधव्याख्या में इसके उदाहरण दिये हैं। अमरकोश की सर्वानन्दविरचित सर्वस्वव्याख्या में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। वेंकटरंगनाथ स्वामी ने इसका संपादन किया है।
आख्यातनिघण्टु - पाणिनीय धातुपाठ से संबंधित ग्रंथ । लीलाशुक मुनि ने अपने दैवव्याख्यान पुरुषकार में इसके उदाहरण दिये हैं। ई. 13 वीं शती के पूर्व रचित ।
22 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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