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विवृत्ति - ले.-सोमानंद। ई. 9 वीं शती (उत्तरार्ध)।
(2) ले.- विठ्ठलनाथजी। विवेककौमुदी - ले. रामकृष्ण । विषय- शिखा एवं यज्ञोपवीत धारण, विधि, नियम, परिसंख्या, स्नान, तिलकधारण, तर्पण, शिवपूजा, त्रिपुण्ड, प्रतिष्ठोत्सर्गभेद का विवेचन। विवेकचन्द्रोदयम्(नाटिका) - ले.-शिव। सन 1763 में लिखित। विश्वेश्वरानंद इन्स्टिट्यूट, होशियारपूर से सन 1966 में प्रकाशित । अंकसंख्या चार। पात्र प्रायः प्रतीकात्मक । कथासारअपने योग्य कन्या ढूंढने हेतु श्रीकृष्ण उद्धव को भेजते हैं। परिभ्रमण के पश्चात् उद्धव रुक्मिणी को कृष्ण के योग्य पाते हैं और कृष्ण से कहते हैं कि रुक्मिणी के कृष्ण को चाहने पर भी रुक्मी उसे शिशुपाल को देना चाहता है। रुक्मिणी वृद्धश्रवा के हाथों कृष्ण को संदेश भेजती है, जिसे पढ कृष्ण कुण्डिनपर पहुंचते हैं और वरदा के तट वर रुक्मिणी का हरण करते हैं। द्वारका में उनका विधिवत् पाणिग्रहण होता है। विवेकदीपक - ले.-दामोदर। विषय- महादान । संग्रामशाह के आदेशानुसार सन 1582 ई. में संगृहीत ग्रंथ । विवेकमिहिरम् (नाटक) - ले.-हीरयज्वा। रचनाकाल- सन 1785। प्रथम अभिनय नृसिंह महोत्सव के अवसर पर अंकसंख्या पांच। यह प्रतीकात्मक नाटक वेदान्त प्रतिपादित जीवन-दर्शन को सरल पदावली में समझाने के उद्देश्य से लिखा गया। नटी की भाषा संस्कृत। सूत्रधार प्रस्तावना के अन्त में जाकर फिर से भरत वाक्य में प्रविष्ट होकर श्रोताओं को आशीर्वाद देता है। इसमें प्रहसन तत्त्व का समावेश है। कथासार- मोह की राजसभा में कामक्रोधादि आकर अपना । महत्त्व बताते हैं। द्वितीय अंक में राजसभा में विवेक का आगमन। आचार्य की आज्ञा से विवेक मोह पर आक्रमण करता है। तृतीय अंक में भक्ति, श्रद्धा, धृति और शम, विवेक के साथ मोह से लडते हैं। चौथे अंक में आचार्य द्वारा हरिभक्ति का तथा ब्रह्मात्मैक्य का उपदेश। अन्त में मोह परास्त होता है और विवेकादि आचार्य के सामने नतमस्तक होते हैं। विवेकविषयम् - ले.-रामानुज। विवेकानन्द-चरितम् (नाटक) - ले.- जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) विवेकानन्द शतदीपायन में प्रकाशित । अंकसंख्या - तीन । स्वामी विवेकानन्दजी के जीवन तथा प्रमुख उपलब्धियों का रसमय वर्णन। विवेकानन्द-चरितम् - ले.-के. नागराजन । बंगलोर निवासी। इ. 1947 में लिखित। विवेकानंदचरित - ले.-डॉ. गजानन बालकृष्ण पळसुले। पुणे विश्वविद्यालय में प्राध्यापक । सुबोध भाषा में स्वामी विवेकानंद का सविस्तर चरित्र । शारदा प्रकाशन पुणे-301 विवेकानन्दविजयम् (महानाटक) - ले.-डॉ. श्रीधर भास्कर
वणेकर। विवेकानन्द शिलास्मारक समिति (मद्रास) द्वारा सन 1972 में प्रकाशित। अंकसंख्या दस। प्रथम प्रयोग नागपुर में सोमयाग महोत्सव के मंडप में। विपन्नपरित्राणं नामक प्रथम अंक में नरेन्द्र (विवेकानन्द का मूल नाम) द्वारा शेफालिका नाम विधवा युवती का विल्यम्, रहमान और वामाचरण नामक तीन दुष्ट छात्रों से संरक्षण । द्वितीय अंक में होलिकाचार्य नामक दुष्ट दांभिक के आश्रम में भ्रमवश प्रविष्ट अंधे को नरेंद्र द्वारा मार्गदर्शन। रामकृष्ण कथाश्रवणम् नामक तीसरे अंक में नरेंद्र अपने पिता के माता के संवाद में रामकृष्ण परमहंस का चरित्र सुनता है। चौथे अंक का नाम श्रीरामकृष्णदर्शन है। नरेद्र और सिद्धपुरुष रामकृष्ण परमहंस की प्रथम भेंट की घटना इसमें चित्रित है। तीर्थयात्रा नामक पंचम अंक में संन्यासी नरेन्द्र की तीर्थयात्रा में घटित विविध घटनाओं का दर्शन है। राजसभा नामक छठे अंक में मानसिंह नामक राजा की सभा में मूर्तिपूजा के विषय में चर्चा तथा विवेकानन्द द्वारा मूर्तिपूजा का औचित्य प्रतिपादन। श्रीपादशिला नामक सातवें अंक में कन्याकुमारी क्षेत्र में श्रीपाद-शिलापर समाधि से व्युत्थान होने के बाद स्वामी विवेकानन्द भारतभूमि का गुणगान करते हैं। यह प्रदीर्घ स्तोत्र शिखरिणी छंद में 85 श्लोकों में है। अमेरिका प्रवेश नामक आठवें और धर्मविषय नाम नौवें अंक में अमेरिका की घटनाओं का वर्णन है। दसवें प्रत्यागनम नामक अंक में उपसंहार है। दि. 4 जुलाई 1971 को नाटक का लेखन समाप्त हुआ। इस नाटक में प्राकृत भाषा का प्रयोग नहीं है। विवेकार्णव - ले.-श्रीनाथ। 1475-1525 ई.। लेखक के कृत्यतत्त्वार्णव में वर्णित। विशाखकीर्ति-विलास-चम्पू - ले.-रामस्वामी शास्त्री। विषयत्रावणकोर के अधिपति विशाख का चरित्र। विशाखतलाप्रबन्धचम्पू - ले.- राजरामवर्मा। विषय- त्रावणकोर
के अधिपति विशाख का चरित्र । विशाखराजमहाकाव्यम् - ले.-त्रावणकोर नरेश केरल वर्मा । विशाखसेतु-यात्रा-वर्णन-चम्पू - ले.-गणपति शास्त्री। विषयत्रावणकोर के अधिपति विशाख का चरित्र । विशिष्टाद्वैतिनी - 1905 में श्रीरंगम् से ए. गोविन्दाचार्य के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। यह विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार करने वाली पत्रिका थी। विशुद्धरसदीपिका - ले.-किशोरीप्रसाद । रासपंचाध्यायी भागवत का हृदय है। इस पर टीका लिखने का कार्य अनेक विद्वानों ने किया है। उनमें विशुद्ध रस-दीपिका के लेखक किशोरी प्रसाद का अपना विशेष स्थान है। यह टीका अत्यंत सरस-सुबोध है। इसमें व्रजेश्वरी राधाजी का विशेष वर्णन है एवं उनकी सत्ता, रसवत्ता तथा विशुद्ध रस-भवन की सिद्धि के लिये लेखक ने विशेष जागरूकता रखी है। रास के गंभीर रस को
340/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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