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विधिपूर्वक वल्ली का विवाह कुमार के साथ कराते हैं। वल्लीपरिणयम् ले. टी. ए. विश्वनाथ कुम्भकोणम् से प्रकाशित। अंकसंख्या पांच में विभाजन । प्राकृत का प्रयोग । किरातराज के कार्तिकेय के साथ विवाह की कथा । वल्ली - परिणयम-चप ले. यज्ञ सुब्रह्मण्य और स्वामी दीक्षित । तिनवेल्ली के निवासी। ई. 19 वीं शती ।
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वल्ली - बाहुलेयम् (नाटक) ले. सुब्रह्मण्य सूरि । जन्म 1850 सन् 1929 में मद्रास से प्रकाशित। अंकसंख्या सात । छायातत्त्व का प्राधान्य । विष्णु और लक्ष्मी की कन्या वल्ली के शिवपुत्र बाहुलेय के साथ विवाह की कथा । वल्ली - परिणय- चम्पू ले. यज्ञ सुब्रह्मणय और स्वामी दीक्षित । तिनवेल्ली के निवासी। ई. 19वीं शती । वल्ली - बाहुलेयम् (नाटक) ले. सुब्रह्मण्य सूरि जन्म 1850 सन् 1929 में मद्रास सेप्रकाशित। अंकसंख्या सात । छायातत्त्व का प्राधान्य । विष्णु और लक्ष्मी की कन्या वल्ली के, शिवपुत्र बाहुलेय के साथ विवाह की कथा । वशकार्यमंजरी (नामान्तर षट्कर्ममंजरी ) ले. राजाराम तर्कवागीश भट्टाचार्य । विषय- मन्त्रों की सहायता से शान्ति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि षट्कर्मविधि । वंश ब्राह्मणम् ( सामवेदीय) कुल तीन खण्डों का ग्रंथ । शतपथ और जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण के समान इस ब्राह्मण में आचार्यों की (अर्थात् सामवेदीय) परम्परा दी गई है। संपादन - सायण-भाष्यसहित सम्पादक - सत्यव्रत सामश्रमी । वशलता ले. - उदयनाचार्य । विषय- कुछ पौराणिक तथा ऐतिहासिक राजवंशों का वर्णन वशीकरणप्रबन्ध ले. श्रीकण्ठ भट्ट । 16 अध्याय । इसमें रत्यर्थ वशीकरण के तंत्रों का वर्णन है । वशीकरणस्तोत्रम् श्लोक 25 यह वशीकरणोपायभूत स्तोत्र वाराही देवी के उद्देश्य से कहा गया है। वशीकरणादिविधि श्लोक 1391 विषय- तंत्रोक्त विधि से वशीकरण, उच्चाटन, मारण, स्तंभन, मोहन विद्वेषण आदि के प्रकार । वसन्ततिलकभाण ले. वरदाचार्य (अम्मल आचार्य) रचनाकाल - सन् 1698। पिता- सुदर्शनाचार्य । रामभद्र दीक्षित के शृंगारतिलक भाण से स्पर्धा के निमित्त लिखित । प्रस्तावना सूत्रधार द्वारा। सन् 1872 ईसवी में कलकत्ता से प्रकाशित । सुबोध, भाणोचित भाषा । लोकोक्तियों का प्रचुर प्रयोग । नायक शृंगारशेखर की प्रणयव्यापारपूर्ण गतिविधयां इस भाण में वर्णित हैं। वसन्तमित्रभाण - मंगलगिरि कृष्ण द्वैपायनाचार्य । ई. 20 वीं शती । प्रकाशन विजयनगर से। विषय- देवदासी, नर्तकी, कुट्टनी, विषम परिस्थिति में पडी गृहिणी, विधवा आदि
322 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
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सन् 1921 में अंकों का दृश्यों की कन्या वल्ली
भिन्न स्तरों पर की स्त्रियों के पतन की चर्चा । विधवाविवाह का पुरस्कार । कांची के गारुड उत्सव का वर्णन। अंग्रेज महिला के मुख से अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग । कुक्कुट युद्ध तथा मेष-युद्ध के वर्णन । भिन्न प्रदेशों की वेषभूषा का प्रदर्शन । वसन्तराजीयम् (नामान्तर- शकुनार्णव) - ले. वसन्तराज भट्ट । पिता- शिवराज । मिथिला नरेश चन्द्रदेव के आदेश पर लिखित । वसन्तोत्त्सव - ले. जगद्धर ।
वसिष्ठधर्मसूत्रम् इस धर्मसूत्र में सभी वेदों व अनेक प्राचीन ग्रंथों के उद्धरण प्राप्त होते हैं। इसके मूल रूप में परिबृंहण, परिवर्धन व परिवर्तन होता रहा है। संप्रति इसमें 30 अध्याय पाये जाते हैं। इसमें "मनुस्मृति" के लगभग 40 श्लोक मिलते हैं, तथा " गौतम - धर्मसूत्र" के 19 वें अध्याय एवं " वसिष्ठ धर्मसूत्र” के 22 वें अध्याय में अक्षरशः साम्य दिखाई पडता है। प्रमाणों के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि कौनसा धर्मसूत्र पूर्ववर्ती और कौनसा परवर्ती है। इस ग्रंथ में धर्म की व्याख्या, आर्यावर्त की सीमाएं, पंचमहापातक, छह विवाह प्रकार, चार वर्ण, उनके अधिकार एवं कर्तव्य वेदपठन की महत्ता, अशिक्षित ब्राह्मण की निंदा, गुप्तधन मिलने पर उसके उपयोग के नियम, अतिथि सत्कार, मधुपर्क जनन-मरणाशीच स्त्रियों के कर्तव्य, सदाचार के संस्कार, दत्तकपुत्र सम्बन्धी विधि-नियम, उत्तराधिकार, राजधर्म, पुरोहित के कर्तव्य, दान-दक्षिणा आदि विभिन्न विषयों का विवेचन है।
धर्मसूत्र गद्यपद्यमय है जिनमें ऋग्वेद, ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, मैत्रायणी, तैत्तिरीय व काठक संहिता से उद्धरित वचन मिलते है। शंकरचार्य ने बृहदारण्यकोपनिषद् पर लिखे अपने भाष्य में वसिष्ठ धर्मसूत्र के अनेक सूत्र उद्धृत किये हैं। धर्मसूत्र की प्रकाशित व हस्तलिखित प्रति में काफी अंतर है। इस धर्मसूत्र का कालखण्ड ईसा पूर्व 300 से 1000 माना जाता है । इस पर यज्ञस्वामी की टीका है।
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वसिष्ठस्मृति वसिष्ठ द्वारा लिखित स्मृतिग्रंथ इसमें कुल 21 अध्याय हैं। जिनमें मानव की मुक्ति हेतु धर्म जिज्ञासा, आर्यावर्त की महत्ता, त्रैवर्णिक द्विजों के अध्ययन की आवश्यकता, वेदाध्ययन न करनेवाला द्विज शूद्र के समान है, तथा ब्राह्मणों का वध निंदनीय है, संस्कार, स्त्रियों की पराधीनता, आचारप्रशंसा, ब्रह्मचर्य विवाहित स्त्री के कर्तव्य, वानप्रस्थी व संन्यासी के कर्त्तव्य, स्नातक व्रत, राजव्यवहार, भक्ष्याभक्ष्य विचार, राजधर्म, पापप्रक्षालन के विधि-नियम, आदि का विवेचन है। वसुचरित्रचंपू ले. कवि कालहस्ती। प्रस्तुत चंपू-काव्य की रचना का आधार, तेलगु भाषा में रचित श्रीनाथ कवि का "वसुचरित्र" है। ग्रंथ की समाप्ति कामाक्षी देवी की स्तुति से हुई है। इस चंपू में 6 आश्वास हैं। वसुमंगलम् (नाटक) - ले. पेरुसूरि (ई. 18 वीं शती) अंकसंख्या- पांच । नायक- उपरिचर वसु । नायिका - कोलाहल