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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वक्रतुण्डपंचांगम् - (या गणेशपचांग)। विश्वसार तन्त्र के के सिद्धान्त विद्यालय से सन् 1944 में प्रकाशित । अन्तर्गत। श्लोक 3941 अंकसंख्या-आठ। ऐतिहासिक सामग्री से भरपूर । सूक्तियों तथा वक्रोक्तिजीवितम् - ले.- आचार्य कुंतक। साहित्यशास्त्र के लोकोक्तियों का सुचारु प्रयोग, बहुविध छायातत्त्व, भारतीय वक्रोक्ति-सिद्धांत का प्रस्थान-ग्रंथ। प्रस्तुत ग्रंथ 4 उन्मेषों में दुर्दशा की सूक्ष्म रचना, गीतों का बाहुल्य (कतिपय गीत विभक्त है और उसके 3 भाग हैं- कारिका, वृत्ति व उदाहरण । प्राकृत में), संगीत द्वारा भावी घटना की सूचना। लम्बी कारिका व वृत्ति की रचना स्वयं कुंतक ने की है, और एकोक्तियां। परिष्कृत हास्य गालीगलौज, धीवरों का प्राकृत उदाहरण विभिन्न पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं से लिये गये समूहगीत, दूरवीक्षण (दूरबीन) द्वारा युद्ध देखकर नबाब ने हैं। इसमें कारिकाओं की संख्या 165 हैं (58 + 35 + 46 युद्ध का वर्णन करना आदि अन्य विशेषताएं भी हैं। कथासार+ 26)। प्रथम उन्मेष में काव्य के प्रयोजन, काव्य-लक्षण, नवाब शेरखां द्वारा प्रपीडित जनता का पक्षधर शंकर चक्रवर्ती, वक्रोक्ति की कल्पना, उसका स्वरूप व 6 भेदों का वर्णन है। दण्ड से बचने हेतु वन में भागता है। वहां प्रतापादित्य से इसी उन्मेष में ओज, प्रसाद, माधुर्य, लावण्य एवं आभिजात्य भेंट होती है। दोनों देशरक्षण की प्रतिज्ञा करते हैं। यशोर गुणों का निरूपण है। द्वितीय उन्मेष में षड्विध वक्रता का नरपति विक्रमादित्य वृद्धावस्था के कारण राज्य "वसन्त" पर विस्तारपूर्वक वर्णन है। वे हैं - रूढिवक्रता, पर्यायवक्रता, छोड काशीवास करना चाहते हैं। वसन्त उन्हें बताता है कि उपचारवक्रता, विशेषणवक्रता, संवृतिवक्रता एवं वृत्तिवैचित्र्यवक्रता । कुमार प्रतापादित्य शंकर चक्रवर्ती के साथ बिगडता जा रहा इन वक्रताओं के अनेक अवांतर भेद भी इसी उन्मेष में वर्णित है। अत एव प्रतापादित्य को दिल्ली भेजने की योजना द्वितीय हैं। इस उन्मेष में वर्णविन्यासवक्रता, पदपूर्वार्धवक्रता एवं ___अंक में बनती है। तृतीय अंक में नवाब अपने सेनापति प्रत्ययवक्रता का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए इनके अवांतर सुरेन्द्रनाथ घोषाल को शंकर को सपरिवार पकडने का आदेश भेद भी वर्णित हैं। कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के मुख्य 6 देता है। शंकर, सूर्यकान्त गुह पर घर का दायित्व सौंप कर भेद हैं- वर्णविन्यासवक्रता, पदपूर्वार्धवक्रता, पदपरार्धवक्रता, भागता है। सूर्यकान्त प्राणपण से शंकर के घर की रक्षा करता वाक्यवक्रता, प्रकरणवक्रता व प्रबंधवक्रता। इनका निर्देश प्रथम है परन्तु तुमुल युद्ध में शंकर के पक्षधर परास्त होते हैं और उन्मेष में है। तृतीय उन्मेष में वाक्यवक्रता का विवेचन है सुरेन्द्र, शंकर की पत्नी के पास जाता है। वह उसे नवाब के और चतुर्थ उन्मेष में प्रकरणवक्रता व प्रबंधवक्रता का निरूपण अन्तःपुर हेतु पकडने वाला है कि शंकर और प्रतापादित्य किया गया है। "वक्रोक्तिजीवित" में ध्वनिसिद्धान्त का खंडन आकर सुरेन्द्र को मार, कल्याणी (शंकर की पत्नी) को लेकर कर, उसके भेदों को वक्रोक्ति में ही अंतर्भत किया गया है यशोर की ओर चलते हैं। चतुर्थ अंक - सम्राट अकबर की और वक्रोक्ति को ही काव्य की आत्मा के रूप में मान्यता राजसभा दर्शाता है। प्रताप अकबर से मिलकर प्रभाव डालता प्रदान की गई है। इस ग्रंथ का सर्वप्रथम संपादन डॉ. एस. है और अकबर उसे सेना द्वारा सहायता करता है। बाद में के. डे ने किया था जिसका तृतीय संस्करण प्रकाशित हो नवाब यशोर पर आक्रमण करता है। परंतु शंकर उसे बन्दी चुका है। तपश्चात् आचार्य विश्वेश्वर सिद्धांतशिरोमणि ने हिंदी बनाता है। यशोर स्वाधीन होता है। प्रताप का विवाह और भाष्य के साथ, इसें 1955 ई. में प्रकाशित किया। इसका राज्याभिषेक होता है परन्तु राज्य का बंटवारा वसंत तथा प्रताप अन्य हिंदी भाष्य चौखंबा विद्याभवन से निकला है। भाष्यकर्ता में होता है। वसन्त का मंत्री मानसिंह से मिलकर प्रताप के पं. राधेश्याम मिश्र हैं। विरुद्ध षडयंत्र करता है, परन्तु मुंह की खाकर यवनों की वक्षोजशतकम् - ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय। पाटिया (अलमोडा शरण में जाता है। अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर यशोर जिला) ग्राम के निवासी। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। पर धावा बोलता है। भवानन्द और मानसिंह उसका साथ काव्यमाला में प्रकाशित। देते है। अन्त में प्रताप जीतता है। वंगवीरः प्रतापादित्यः - ले.- देवेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय । वचनसारसंग्रह - ले.- श्रीशैल ताताचार्य । सुन्दराचार्य के पुत्र । ऐतिहासिक उपन्यास। . वचनामृतम् - ले.- स्वामी नारायण। वैष्णव धर्म के अंतर्गत वंगिपुरेश्वरकारिका - ले.- वंगिरपुरेश्वर । श्री स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक। इस ग्रंथ में सांख्य, वंगीयदूतकाव्येतिहास - ले.- डॉ. जतीन्द्रविमल चौधरी। योग तथा वेदान्त के सिद्धान्तों का समन्वय है। इस संप्रदाय 1953 में कलकत्ता से प्रकाशित। बंगाल के 25 दूत काव्यों का संबंध विशिष्टाद्वैत मत से है। का परिचय इसमें दिया है। श्री स्वामी नारायण के उपदेशों के संग्रह के रूप में प्रख्यात वङ्गीयप्रताप (नाटक)- ले.- हरिदास सिद्धान्तवागीश। "वचनामृत' में समाविष्ट उपदेशों में से कुछ उपदेश निम्नांकित रचनाकाल सन् 1917। उसी वर्ष उदयन समिती के सदस्यों हैं- मनुष्य को चाहिये कि वह 11 दोषों का सर्वथा परित्याग द्वारा उनशिया ग्राम (कोटालिपाडा) में अभिनीत । कलकत्ता करे। ये दोष हैं-हिंसा, मांस, मदिरा, आत्मघात, विधवा-स्पर्श, 318 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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