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यत्यनुष्ठानपद्धति - ले.-शंकरानंद । यत्यन्तकर्मपद्धति - ले. रघुनाथ । यत्याचारसंग्रहीययतिसंस्कारप्रयोग- ले.-विश्वेश्वर सरस्वती। यथाभिमतम् - मूल शेक्सपियर का 'अॅज यू लाइक इट्' नामक काव्य। अनुवादकर्ता आर. कृष्णमाचार्य । यदुगिरिभूषणचम्पू - ले.- अप्पलाचार्य। यदुनाथकाव्यम् - ले.- यदुनाथ । यदुवृद्धसौहार्दम् - ले.- ए. गोपालाचार्य । श्लोक 600। इंग्लैंड के युवराज अष्टम एववर्ड ने अपनी प्रेयसी के लिए राज्यत्याग किया, इस घटना का वर्णन प्रस्तुत काव्य का विषय है। यंत्रचिंतामणि - ले.-दामोदर गंगाधर पंडित। विषय- मन्त्र शास्त्र से संबंधित यंत्रों का विवेचन। हिन्दी टीका लेखकपं. कन्हैयालाल तंत्र-वैद्य। यन्त्रचिन्तामणि टीका - ले.-दिनकर । विषय- ज्योतिषशास्त्र । यंत्रभेद - श्लोक- 125 | विषय- विभिन्न तन्त्रों में उक्त विभिन्न यंत्रों का, (जिनसे तान्त्रिक जन अपना मनोवांछित सिद्ध करते हैं), भलीभांति विशद रूप से प्रतिपादन । यंत्रमंत्रसंग्रह - श्लोक- 1600। यंत्रराज (नामान्तर- यंत्रराजागम शास्त्र तथा यंत्रचिंतामणि) - ले.-श्यामाचार्य । श्लोक- 15001 यंत्रराजघटना - ले.-मथुरानाथ। पटनानिवासी। ई. 19 वीं शती। विषय- ज्योतिषशास्त्र । यन्त्रराजवासनाटीका - ले.-यज्ञेश्वर सदाशिव रोडे। विषयज्योतिषशास्त्र। यन्त्रलेखनप्रकाश - श्लोक- 1571 यन्त्रसंग्रह - श्लोक- लगभग 115, विषय- रामयन्त्र, श्यामायंत्र, प्रसवयन्त्र, गोपालयन्त्र, बगलामुखी-यन्त्र, श्मशानकालीयंत्र, भुवनेश्वरीयन्त्र एवं अन्नपूर्णा, बटुकभैरव, गुह्यकाली, तारा, वागीश्वरी तथा गणेश के यन्त्र। यन्त्रसर्वस्वम् - इस ग्रंथ का उल्लेख भारद्वाजविमानशास्त्र नामक ग्रंथ में कई बार हुआ है। इस ग्रंथ के आठ अध्यायों में एक सौ अधिकरण और पांच सौ सत्रों में निम्नलिखित 100 विषयों का विवरण है। अध्याय 1) - मंगलाचरण, विमानशब्दार्थ , यंतृत्व, मार्ग, आवर्त, अंग, वस्त्र, आहार, कर्म, विमान, जाति, वर्ण,। अध्याय 2) - संज्ञा, लोह, संस्कार. दर्पण, शक्ति, यंत्र. तैल, औषधि, वात, भाट, वेग, चक्र। अध्याय 3)- भ्रमणी, काल, विकल्प, संस्कार, प्रकाश, औषध, शैत्य, आंदोलन, तिर्यक्, विश्वतोमुख, धूम, प्राण, संधि। अध्याय 4)- आहार, लग, वग, हग, लहग, लवग, लवहग, वामगमन, अन्तर्लक्ष्य, बहिर्लक्ष्य, बाह्याभ्यन्तरलक्ष्य। अध्याय 5)- तंत्र, विद्युत्प्रसरण, व्याप्ति, स्तम्भन, मोहन, विकाश,
दिनिदर्शन, अदृश्य, तिर्यंच, भारवाहन, घंटारव, शक्रभ्रमण, चक्रगति। अध्याय 6)- वर्गविभजन, नामनिर्णय, शक्त्युद्गम, भूतवाह, धूमयान, शिखोद्गम, अंशवाह, तारामुख मणिवाह, गरुत्सखा, शांतिगर्भ, गरुड। अध्याय 7)- सिंहिका, त्रिपुरा, गूढाचार, कूर्म, वालिनी, मांडलिका, आंदोलिका, ध्वजांग, वृन्यावन, वैरिचिक, जलद। अध्याय 8)- दिनिर्णय, ध्वज, काल विस्तृतक्रिया, अंगोपसंहार, नयःप्रसरण, प्राणकुण्डली, शब्दाकर्षण, रूपाकर्षण, प्रतिबिंबाकर्षण, गमागम आवसस्थान, शोधन, परिच्छेद और रक्षण। इस ग्रंथ पर बोधानंद यतीश्वर की टीका है। तन्त्रसार - श्लोक- 3800। विषय- वैदिक और तान्त्रिक विधि में उपयुक्त विविध यंत्रों के निर्माण के प्रकार। यन्त्रावली - श्लोक- 5001 विषय- विविध यंत्रों के निर्माण के प्रकार। यमकभारतम् - ले.-मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती। (महाभारत विषयक) 89 यमकबद्ध श्लोकों का संग्रह। यम-स्मृति - ले.-यम (एक धर्मशास्त्री)। याज्ञवल्क्य के अनुसार यम धर्मवक्ता है। "वसिष्ठ-धर्मसूत्र में यम के उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं। यहां के 4 श्लोकों में 3 श्लोक "मनुस्मृति' में भी प्राप्त होते हैं। जीवानन्द-संग्रह में "यमस्मृति" के 78 श्लोक तथा आनंदाश्रम संग्रह में 99 श्लोक है। इन श्लोकों में प्रायश्चित्त, शुद्धि, श्राद्ध एवं पवित्रीकरण विषयक मत प्रस्तुत किये गये हैं। इनके अतिरिक्त विश्वरूप, विज्ञानेश्वर, अपरार्क एवं "स्मृतिचंद्रिका" तथा अन्य परवर्ती ग्रंथों में भी "यमस्मृति" के 300 लगभग श्लोक प्राप्त होते हैं। "महाभारत" के अनुशासन पर्व (104,72-74) में भी यम की गाथाएं हैं। यम ने मनुष्यों के लिये कुछ पक्षियों के मांस-भक्षण की सूचना की है, तथा स्त्रियों के लिये संन्यास का निषेध किया है। ययातिचरितम् - ले.-पं. कृष्णप्रसाद शर्मा धिमिरे। काठमांडू (नेपाल) के निवासी। ई. 20 वीं शती। आप कविरत्न एवं विद्यावारिधि इन उपाधियों से विभूषित हैं। आपकी लिखी हुई श्रीकृष्णचरितामृत महाकाव्य आदि 12 रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ययाति-तरुणानन्दम् (रूपक) - ले.-वल्लीसहाय। ई. 19 वीं शती। मद्रास शासकीय संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थागार द्वारा प्रकाशित । विषय- ययाति देवयानी का विवाह तथा ययाति-शर्मिष्ठा का प्रणय। स्त्रियों के असहिष्णुता स्वभाव का वर्णन। लम्बे संवाद तथा एकोक्तियों से भरपूर । प्राकृत का प्रयोग किया गया है। ययाति-देवयानी चरितम (रूपक)- ले.-वल्लीसहाय। ययाति की पत्नी देवयानी तथा प्रिया शर्मिष्ठा के कलह की कथा निबद्ध। प्राकृत का अभाव। शृंगार गीतों का प्रचुर प्रयोग। मैथिली किरतानिया नाटक तथा असमी आंकिया नाट से समानता है। प्रकृति में नायिका का रूप निरूपित। लम्बे संवाद तथा एकोक्तियों की भरमार। आहितुण्डिक की एकोक्ति
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 283
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