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मैत्रायणी, कालापी और तैत्तिरीय शाखाएं उपलब्ध हैं। इनमें तैत्तिरीय शाखा पर ब्राह्मण, आरण्यक, भाष्य आदि विपुल साहित्य पाया जाता है।। ___ आधुनिक विद्वानों के मतानुसार "इषे त्वोर्जे त्वा" से प्रारंभ होने वाली शुक्ल यजुर्वेद संहिता के प्रारंभ के 18 अध्याय ही इसके मूल के हैं। अन्तिम 22 अध्यायों के विषय तैत्तिरीय ब्राह्मण और आरण्यक में भी मिलते है। कात्यायन के अनुसार 26 से 35 तक अध्याय “खिल" हैं। 26-29 “परिशिष्ट" रूपात्मक हैं। 30 से 39 तक अध्याय नवीन पक्षों को प्रस्तुत करते हैं। 30 वें अध्याय में अनेक मिश्रित जातियों का वर्णन है।
भाषा-विज्ञान के आधार पर इस संहिता के तीन स्तर किये जाते हैं। इसके अधिकाधिक अंश तैत्तिरीय के हैं तो कुछ स्थल परिवर्तित संशोधित मालूम पडते हैं। इस दृष्टि से तैत्तिरीय संहिता प्राचीन है। यह संहिता कुछ अंशों को छोडकर तैत्तिरीय से प्रायः समान है। स्वाभाविक है कि इनका मूल एक ही होगा।
माध्यंदिन संहिता के भी पद, क्रम, जटा, धन, पंचसंधि आदि बहुत से विकृतिपाठ प्रसिद्ध हैं। एक दृष्टि से शाकल की अपेक्षा इसका विकृति-पाठ विस्तृत है। इस संहिता में कुछ स्थलों को छोडकर "ष" को "ख" पढा जाता है। इसका "खंडाध्याय" और पुरुषसूक्त तथा “ईशावास्योपनिषद्' सर्वत्र विख्यात है।
कृष्ण यजुर्वेद की 86 शाखाओं के तीन भेद माने गए हैं। इनके प्रथम आचार्य हैं - (1) उदीच्य-श्यामायनि, (2) मध्यदेशीय-आरुणि (या आसुरि) और (3) प्राच्य-आलम्बि।
इन सभी शाखाओं की चरक संज्ञा थी। कृष्णयजुर्वेदीय वैशंपायन की मूल चरक संहिता का यथार्थ स्वरूप अभी तक अज्ञात है। फिर भी चरणव्यूहादि ग्रंथों में पठित निर्देश के अनुसार, "चरक संहिता" और "चरक ब्राह्मण" थे यह अनुमान लगाया जा सकता है। यजुर्वेद ज्योतिषम् - ले. शेष। इसमें कुल 44 श्लोक हैं। ऋग्वेद ज्योतिष के समान यह वेदांग है। यज्ञकर्ताओं को इस वेदांग से दिक्, देश, काल का ज्ञान प्राप्त करने में सुविधा होती है। यजुर्वेदिवृषोत्सर्गतत्त्वम् - ले. रघुनाथ । यजुर्वेदिश्राद्धतत्त्वम् - ले.रघुनाथ। यजुःशाखाभेदतत्त्वनिर्णय - ले.-पांडुरंग टकले। बडोदा के निवासी। लेखक का सिद्धांत यह है कि जहां कहीं "यजुर्वेद" शब्द स्वयं आता है; वहां “तैत्तिरीय शाखा" समझना चाहिये न कि "शक्लयजु" । यज्ञशास्त्रार्थनिर्णय - ले.-वाणी अण्णय्या। तेलगु कवि । यज्ञसिद्धान्तविग्रह - ले.-रामसेवक। यज्ञसिद्धान्तसंग्रह - ले.-रामप्रसाद । यज्ञसूत्रप्रमाणम् - ले.-मातृकाभेदतन्त्र के अन्तर्गत,
चण्डिका-शंकर संवादरूप। यह मातृकाभेद तंत्र का 11 वां पटल है। श्लोक-34 । विषय-यज्ञोपवीत की लंबाई की चर्चा । यज्ञोपवीतपद्धति - ले.-रामदत्त। पिता-गणेश्वर। वाजसनेयी शाखियों के लिए उपयुक्त ग्रंथ।। यतिक्षौरविधि - ले.-मधुसूदनानन्द । यतिखननादिप्रयोग - ले.-श्रीशैलवेदकीटीर लक्ष्मण। इसमें यतिधर्मसमुच्चय का उल्लेख है। यतिधर्म - ले.-पुरुषोत्तमानन्द सरस्वती। गुरु- पूर्णानंद । यतिधर्मप्रकाश - ले.-वासुदेवाश्रम। (2) ले.-विश्वेश्वर। इस ग्रंथ का यतिधर्मसंग्रह (या यतिधर्मसमुच्चय) से अत्यधिक साम्य है। यतिधर्मप्रबोधिनी - ले.-नीलकण्ठ यतीन्द्र। यतिधर्मसमुच्चय (अपरनाम-यतिधर्मसंग्रह) - ले.-विश्वेश्वर सरस्वती। गुरु-सर्वज्ञ विश्वेश। लेखनकाल ई. 1611-12 । यतिनित्यपद्धति - ले.-आनन्दानन्द। यतिपत्नीधर्मनिरूपणम् . ले.-पुरुषोत्तमानंद सरस्वती । गुरु-पूर्णानंद। यति-प्रणव-कल्प - ले.-मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती। द्वैत मत के प्रतिष्ठापक। इसमें 28 अनुष्टभों में संन्यास लेने की विधि एवं संन्यासी के कर्तव्यों का निरूपण किया गया है। यतिराजविजयम् (या वेदांतविलास) नाटक - ले.- अम्मल आचार्य । ई. 17 वीं शती का अंत । पिता- घटित सुदर्शनाचार्य । यतिराजविजयचंपू - ले.-अहोबिल सूरि । इस चंपू का विभाजन 16 उल्लासे में किया गया है, पर अंतिम उल्लास अपूर्ण है। इस काव्य में रामानुजाचार्य के जीवन की घटनाएं वर्णित हैं। विशिष्टाद्वैत संप्रदाय की आचार्य-परंपरा भी अंकित की गई होने से यह ऐतिहासिक दृष्ट्या महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यतिवल्लभा-( या संन्यासपद्धति) - ले.- विश्वकर्मा । विषयसंन्यास, यति के चार प्रकार (कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस) एवं उनके कर्त्तव्य।। यतिसन्ध्यावार्तिकम् - ले.-सुरेश्वराचार्य । श्रीशंकराचार्य के शिष्य । यतिसंस्कार - विषय- पुत्र द्वारा यति की अन्त्येष्टि एवं श्राद्ध।. यतिसंस्कारप्रयोग - ले.-विश्वेश्वर। 2) ले.- रायभट्ट। यतिसिद्धान्तनिर्णय - ले.- सच्चिदानन्द सरस्वती। यतीन्द्रम् (रूपक) - ले.-डॉ. रमा चौधुरी। लेखिका के पति डॉ. यतीन्द्रविमल चौधुरी की मृत्यु के पश्चात् (सन 1964 में) लिखित उनका चरित्र । उनके शिष्यों द्वारा उसी वर्ष अभिनीत हुआ। यतीन्द्रचम्पू - ले.-बकुलाभरण। पिता- शठगोप। विषयरामानुजाचार्य का चरित्रवर्णन। यतीन्द्रजीवनचरितम् - ले.- शिवकुमारशास्त्री। काशीनिवासी। योगी भास्करानन्द का चरित्र काव्य विषय है।
282 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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