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मिताक्षरा 2 ) ले- हरदत्त । ई. 15-16 वीं शती। यह गौतमधर्मसूत्र पर टीका है 3) ले मथुरानाथ याज्ञवल्क्यस्मृति पर टीका। मिताक्षरासार का सारांश ।
ले. मयाराम । विज्ञानेश्वर की प्रसिद्ध टीका
मित्रम् सन 1918 में इस पत्र का प्रकाशन पटना से प्रारंभ हुआ। इसका प्रकाशन संस्कृत संजीवन सभा द्वारा होता था ।
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मित्रगोष्ठी ले. सन् 1904 में वाराणसी से महामहोपाध्याय रामावतार शर्मा और विधुशेखर भट्टाचार्य (शांतिनिकेतन के संस्कृताध्यापक) के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। तीन वर्ष बाद इसके संपादन का भार नीलकमल भट्टाचार्य और ताराचरण भट्टाचार्य पर आया । 24 पृष्ठों वाली इस पत्रिका का वार्षिक मूल्य डेढ रु. था इस पत्रिका में ज्योतिष, धर्म, इतिहास, दर्शन, साहित्य, कृषि विज्ञान, भूगोल आदि विषयों से संबंधित रचनाओं का प्रकाशन किया गया। मिथिलामोद सन 1905 में वाराणसी से मुरलीधर झा के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्र का प्रकाशन हुआ । मिथिलिखितः सुसंवाद ले. बैप्टिस्ट मिशन मुद्रणालय (कलकत्ता) द्वारा सन् 1877 में प्रकाशित बाइबल का अनुवाद । मिथिलेशाह्निकम् ले. रत्नपाणि शर्मा गंगोली संजीवेश्वर शर्मा के पुत्र । मिथिला के राजकुमार छत्रसिंह के आश्रम से प्रणीत । विषय- सामवेद के अनुसार शौचविधि, दन्तधावन, स्नान, संध्याविधि, तर्पण, जपयज्ञ, देवपूजा, भोजन, मांसभक्षण, द्रव्यशुद्धि और गार्हस्थ्यधर्म नामक आह्निक । इस ग्रंथ में मिथिलेशचरित है जिसमें महेश ठक्कुर एवं उनके 9 वंशजों का उल्लेख है, और ऐसा कथन है कि महेश को दिल्ली के राजा से राज्य प्राप्त हुआ था। मिथुनमालामंत्र मिथ्याग्रहणम् ले- लीला राव दयाल दो दृश्यों में विभाजित एकांकी रूपक विषय मुहम्मद के बहुपत्नीत्व से क्षुब्ध उसकी पत्नी अमीना की कथा ।
श्लोक- 1621
मिथ्याज्ञानखण्डनम् - ले. रविदास । मिलिन्दप्रथाः - अनुवादकर्ता विभुशेखर भट्टाचार्य मूल " मिलिन्द पन्हो" नामक पाली ग्रंथ । मिवार प्रताप ( रूपक) ले- हरिदास सिद्धान्तवागीश । ई. 1946 में प्रकाशित। प्रथम अभिनय सन 1945 में कलकत्ता के "स्टार" रंगमंच पर “प्राच्यवाणी प्रतिष्ठान" की ओर से। अंकसंख्या छः । कतिपय अंकों का विभाजन दृश्यों में पुरुषपात्र 40, और स्त्रीपात्र 11, लोकोक्तियों और अन्योक्तियों का प्रचुर प्रयोग । देशप्रेम का सन्देश, नृत्य-गीतों की अधिकता और कतिपय गीत प्राकृत में हैं। विशेषताएं- अश्व का रंगमंच पर प्रवेश, महिला मेले का आयोजन, मंच पर युद्धप्रसंग, वेश्याओं
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का नृत्य, वन्य जीवन की झांकी, सौंदर्य प्रतियोगिता आदि । इस में मेवाड के राणा प्रताप सिंह का जीवन वर्णित है। मीनाक्षीकल्याणचंपू ले कंदकुरी नाथ तेलगु ब्राह्मण। । इस चंपू-काव्य में कवि ने पाण्ड्यदेशीय प्रथम नरेश कुलशेखर (मलयध्वज) की पुत्री मीनाक्षी का शिव के साथ विवाहवर्णन किया है। मीनाक्षी स्वयं पार्वती मानी गई है। इस काव्य की खंडित प्रति प्राप्त हुई है जिसमें केवल दो ही आश्वास हैं । प्रारंभ में गणेश एवं मीनाक्षी की वंदना की गई है। मीनाक्षीपरिणयम् - ले. मलय कवि । पिता- रामनाथ । मीनाक्षीपरिणयचम्पू ले. आदिनारायण ।
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मीनाक्षीशतकम् ले पारिधीयर कृष्ण कवि ई. 19 वीं शती मीमांसाकुसुमांजलि (अपरनाम पूर्वमीमांसा) ले. - विश्वेश्वरभट्ट । अपर नाम- गागाभट्ट काशीकर। ई. 17 वीं शती । मीमांसाकोश संपादक- केवलानंद सरस्वती । वाई (महाराष्ट्र ) के निवासी । ई. 19-20 वीं शती । यह बृहत्कोश सात खंडों में प्रकाशित हुआ है।
मीमांसाचंद्रिका - ले. ब्रह्मानंद सरस्वती । ई. 17 वीं शती । बंगनिवासी विषय- जैमिनिसूत्रों का विवरण। मीमांसान्यायप्रकाश ले- आपदेव । ई. 17 वीं शती । मीमांसापल्लव ले इन्द्रपति । पिता- श्रीपति। माता-रुक्मिणी । विषय- धर्मशास्त्रीय विषयों की मीमांसा ।
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मीमांसाबालप्रकाश ले. शंकरभट्ट । ई. 17 वीं शती । लेखक के पुत्र नीलकंठ ने ग्रंथ पूर्ण किया। मीमांसासर्वस्वम् - ले. हलायुध । पिता- धनंजय । ई. 12 वीं शती ।
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मीमांसा -सूत्रम् - ले. महर्षि जैमिनि । समय ई.पू. 4 थी शती । "मीमांसासूत्र" 16 अध्यायों में विभक्त है। इस मैथ में मीमांसा दर्शन के मूलभूत सिद्धांतों का निरूपण है। इसके प्रारंभिक 12 अध्याय "द्वादशलक्षणी" के नाम से निर्देशित किये जाते हैं। शेष 4 अध्यायों का नाम "संकर्षण कांड" या "देवता कांड" है मीमांसा सूत्रों की कुल संख्या 2644 है, जो 909 अधिकरणों में विभक्त हैं। इसमें 12 अध्यायों में क्रमशः इन विषयों का विवेचन है- धर्मविषयक प्रमाण, एक धर्म का अन्य धर्म से भेद, अंगत्व, प्रयोज्यप्रयोजक, क्रम, यज्ञकर्ता के अधिकार, अतिदेश (7 वें व 8 वें अध्याय में एक ही विषय का वर्णन है) ऊह, बाध, तंत्र व प्रसंग । इस ग्रंथ पर शबरस्वामी का भाष्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। शावरभाष्य पर कुमारिलभट्ट, प्रभाकर मिश्र और मुरारि मिश्र ने व्याख्याएं लिखी हैं। मीमांसा - सूत्र का समय 100 से 200 ई.पू. माना जाता है ।
मीमांसासूत्रवृत्तिले भर्तृहरि । मीमांसासूत्रानुक्रमणी ले. मंडनमिश्र । ई. 7 वीं शती ।
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 271