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अंकावतार है। इस रूपक में 5 अंक हैं, किंतु कथावस्तु के संविधान की दृष्टि से यह कृति "नाटक" न होकर "नाटिका" है, क्योंकि इसमें कथा-वस्तु राजप्रसाद एवं प्रमोदवन के सीमित क्षेत्र में ही घटित होती हैं। इसका मुख्य वर्ण्य-विषय प्रणय-कथा है। शास्त्रीय दृष्टि से शुंगवंशीय राजा अग्निमित्र धीरोदात्त नायक है, पर उसे धीरललित ही माना जावेगा। इसका अंगी रस श्रृंगार है तथा विदूषक की उक्तियों के द्वारा हास्यरस की सृष्टि हुई है। इसमें 5 अंकों को छोड अन्य तत्त्व नाटिका के ही है। (नाटिका में 4 अंक होते हैं) यह नाटक लेशतः ऐतिहासिक है। इसमें कालिदास ने कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का कुशलपूर्वक समावेश किया है। इसकी भाषा मनोहर व चित्ताकर्षक है। बीच-बीच में विनोदपूर्ण श्लेषोक्तियों का समावेश कर, संवादों को अधिक आकर्षक बनाया गया है। टीकाकार- 1. काटयवेम, 2) नीलकण्ठ, 3) वीरराघव, 4) मृत्युंजय निःशंक, 5) तर्कवाचस्पति 6) श्रीकण्ठ, 7) परीक्षित कुंजुत्री राजा। माला- ले.- परमानन्द चक्रवर्ती (ई. 12 वीं शती) अमरकोश पर टीका। माला-भविष्यम् - ले.- स्कन्द शंकर खोत। नागपुर से प्रकाशित । मुंबई के जीवन का परिहासपूर्ण चित्रण इस लघुनाटक का विषय है। मालामन्त्रमणिप्रभा - ले.- कोंकणस्थ रंगनाथ। श्लोकलगभग 500। यह श्रीविद्याविवरणमालामंत्र की व्याख्या है। यह त्रिपुरार्णव के अन्तर्गत माला मंत्रोद्धार नामक 18 वें तरंग के अंतर्गत है। मालिनीविजयम् (नामान्तर-श्रीपूर्वशास्त्र) - मालिनीमत त्रिकशास्त्र का सार है। त्रिकशास्त्र-दश शिवागम, अष्टादश रुद्रागम और चतुःषष्टि भैरवागम का सार है। मालिनीविजयवर्तिकम् - ले.- अभिनवगुप्त। यह मालिनीविजयतंत्र की प्रथम कारिका का व्याख्यान है। मालिनीशतकम् - ले.- पारिथीयुर कृष्ण । ई. 19 वीं शती। मासनिर्णय - ले.- भट्टोजि । मासप्रवेशसारिणी - ले.- दिनकर । मासमीमांसा - ले.- गोकुलदास (या गोकुलनाथ) महामहोपाध्याय ई. 17 वीं शती। चांद्र, सौर, सायन, हवं नाक्षत्र नामक चार प्रकार के मासों एवं वर्ष के प्रत्येक मास में किये जाने वाले धार्मिक कृत्यों का विवरण । मांसपीयूषलता - ले.- रामभद्रशिष्य । मांसभक्षणदीपिका - ले.- वेणीराम शाकद्वीपी। मांसमीमांसा - ले.- नारायणभट्ट। रामेश्वरभट्ट के पुत्र । मांसविवेक - ले.- भट्ट दामोदर। इस में बतलाया गया है कि मांसार्पण के प्रयोग आधुनिक काल में विहित नहीं हैं।
मांसविवेक (या मांसतत्त्वविवेक) - ले.- विश्वनाथ पंचानन । 1634 ई. प्रणीत। सरस्वती भवन सीरीज में प्रकाशित। इसे मांसतत्त्वविचार भी कहा गया है। मासादिनिर्णय - ले.- दुण्डि । मासिकश्राद्धनिर्णय - ले.- रामकृष्णभट्ट। कमलाकरभट्ट के पिता। मासिकश्राद्धपद्धति - ले.- गोपीनाथभट्ट । मासिकश्राद्धप्रयोग (आपस्तंबीय) - ले.- रघुनाथभट्ट सम्राट स्थपति। मासिकश्राद्धमानोपन्यास - ले.-मौनी मल्लारि दीक्षित । माहेश्वरतन्त्रम् - उमा-शिव- संवादरूप। पूर्व और उत्तर खण्डों के रूप में इसके दो भाग हैं। उत्तर खण्ड में 51 पटल हैं, उनमें कृष्णकथा, कृष्ण-महिमा, और कृष्णपूजाविधि का वर्णन है। माहेश्वरीविद्या - इसमें बहुत से इन्द्रजाल या जादुगरी के मंत्र
और नृसिंहसहस्रनाम हैं। मितभाषिणी - ले.- शारदारंजन राय। ई. 19-20 वीं शती। यह पाणिनीय व्याकरण की सुबोध व्याख्या है। मितवृत्यर्थसंग्रह - ले.- उदयन। अष्टाध्यायी की काशिका वृत्ति की यह संक्षिप्त आवृत्ति है। मिताक्षरा (अपरनाम- ऋजुमिताक्षरा) - ले.- विज्ञानेश्वर । 12 वीं शती। यह याज्ञवल्क्यस्मृति की श्रेष्ठ टीका है। मिताक्षरा में आंगिरस, बृहदंगिरस, अत्रि, आपस्तंब, आश्वलायन, उपमन्यु आदि 87 स्मृतिकारों एवं असहाय, मेघातिथि, श्रीकर, भारुचि, विश्वरूप एवं भोजदेव इन पूर्ववर्ती छह भाष्यकारों एवं निबंधकारों का उल्लेख है। मिताक्षरा की रचना सन् 1070 से 1100 के बीच हुई। "मिताक्षरा", याज्ञवल्क्य स्मृति का ऐसा वैशिष्ट्यपूर्ण भाष्य है, जिसमें 2 सहस्र वर्षों से प्रवहमान भारतीय विधि के मतों का सार गुंफित किया गया है। यह "याज्ञवल्क्य स्मृति" का भाष्य मात्र न होकर, स्मृतिविषयक स्वतंत्र निबंध का रूप लिये हुए है। इसमें अनेक स्मृतियों के उद्धरण प्राप्त होते हैं तथा उनके अंतर्विरोध को दूर कर उनकी संश्लिष्ट व्याख्या करने के प्रयास में पूर्वमीमांसा की ही पद्धति अपनायी है। इसमें दाय को दो भागों में विभक्त किया गया है। अप्रतिबंध व सप्रतिबंध और जोर देकर कहा गया है कि वसीयत पर पुत्र, पौत्र तथा प्रपौत्र का जन्म-सिद्ध अधिकार होता है। इसे "जन्मस्वत्ववाद" कहते हैं। मिताक्षरा की प्रमुख टीकाएं - 1) नन्दपंडितकृत प्रमिताक्षरा (या प्रतीताक्षरा), (2) बालंभट्टकृत बालंभट्टी, (3) विश्वेश्वरभट्टकृत-सुबोधिनी, (4) मधुसूदन गोस्वामीकृत-मिताक्षरासार, (5) राधामोहन शर्माकृत-सिद्धान्तसंग्रह, (6) निर्दूरि बसवोपाध्यायकृत व्याख्यान दीपिका, (7) मुकुंदलालकृत, (8) रघुनाथ वाजपेयीकृत, (9) हलायुधकृत।
270 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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