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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माधवचंपू - ले.- रामदेव चिरंजीव भट्टाचार्य। ई. 16 वीं शती। इस चंपू काव्य में 5 उच्छ्वास हैं। इसमें कवि ने माधव व कलावती की प्रणय-गाथा का शृंगारिक वर्णन किया है। इसमें प्रणय की समग्र दशाएं तथा श्रृंगार के संपूर्ण साधन वर्णित हैं। इसके माधव कल्पित न होकर श्रीकृष्ण ही हैं। माधव-निदानम् (रोगविनिश्चय) - ले.- माधव। ई. 7 वीं शती। आधुनिक युग में यह रोग-निदान का अत्यंत लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है- “निदाने माधवः श्रेष्ठ"। ग्रंथकर्ता माधव ने इसका नाम "रोगविनिश्चय" रखा था पर कालांतर में यह "माधवनिदान" के ही नाम से विख्यात हुआ। ग्रंथकार ने ग्रंथारंभ में बताया है कि अनेक शास्त्रों के ज्ञान से रहित व्यक्तियों के लिये इस ग्रंथ की रचना की गई हैं (मा.नि.3)। "माधवनिदान" की दो प्रसिद्ध टीकाएं हैं :1) श्रीविजयरक्षित व उनके शिष्य श्रीकंठ कृत मधुकोश टीका तथा (2) वाचस्पति वैद्य कृत आतंकदर्पण टीका । "माधवनिदान" के 3 हिन्दी अनुवाद प्राप्त होते हैं- 1) माधव निदान-मधुकोष संस्कृत एवं विद्योतिनी हिंदी टीका- सुदर्शन शास्त्री 2) मनोरमा हिंदी व्याख्या 3) सर्वागसुंदरी हिन्दी टीका । माधव-महोत्सवम् - ले.- जीव गोस्वामी (श. 15-16) वैष्णव परम्परा में प्रसिद्ध काव्य। माधव-साधना (नाटक) - ले.- नृत्यगोपाल कविरत्न। ई. 19 वीं शती। माधव-स्वातंत्र्यम् (नाटक) - ले.- गोपीनाथ दाधीच। जयपुरवासी। रचना सन् 1883 ई.में। प्रथम अभिनय जयपुर के रामीलाला मैदान में रामप्रकाश नाट्यशाला में हुआ। अंक संख्या सात। प्राकृत के रूप में हिन्दी तथा व्रजबोली का प्रयोग किया है। भाषा पात्रानुसारी है। विशेषताएं- राजनीतिक उथलपुथल के चित्रण में अंग्रेजी शब्दों के लिए संस्कृत शब्दों का गठन। अंक अनेक दृश्यों में विभाजित। कथासारकान्तिचन्द्र नामक अमात्य की नियुक्ति के पश्चात् जयपुरनरेश रामसिंह की मृत्यु होती है। भूतपूर्व प्रधान अमात्य फतेहसिंह दुष्ट तथा अविश्वसनीय है। वह कान्तिचन्द्र को फंसाना चाहता है, परंतु कान्तिचंद्र भी सतर्क हैं। मृत रामसिंह के बाल्यकाल में शिवसिंह (प्रधान अमात्य) तथा लक्ष्मणसिंह (सेनापति) ने जयपुर में अंग्रेजी का प्रवेश कराकर उसका महत्त्व बढाया है। महारानी उनके पुत्र विजयसिंह तथा गोविंदसिंह को मंत्री बनाना चाहती है, परंतु मुख्य अमात्य पद के कई प्रत्याशी हैं। उनमें से एक रघुनाथसिंह, कान्तिचन्द्र के विरोध में है। महारानी की इच्छानुसार अंग्रेज क्रासफोर्ड जयपुर हथियाने हेतु आया है। फतेहसिंह चाहता है कि क्रासफोर्ड राजकीय सत्ता उसीको सौपे । कान्तिचन्द्र त्यागपत्र देता है, परंतु क्रासफोर्ड उसे अस्वीकार करता है। फतेहसिंह वृन्दावन के ब्रह्मचारी गोपाल की सहायता से कान्तिचन्द्र के विरुद्ध झूठे आरोप मढ कर महाराज माधवसिंह को उसके विरुद्ध खडा करने का षडयंत्र रचता है। गोविन्दसिंह कान्तिचन्द्र की क्षमता से प्रभावित है, परंतु रघुनाथसिंह उसे समझाता है कि कान्तिचन्द्र स्वार्थी है, अतः उसे हटाना चाहिये। तत्पश्चात् फतेहसिंह को भी उखाड कर गोविन्दसिंह मंत्री बन सकता है। फतेहसिंह महाराज माधवसिंह को प्रसन्न कर कान्तिचन्द्र को पदच्युत करने के लिये प्रयत्न करता है। कान्तिचन्द्र गुप्तचरों द्वारा इस षडयन्त्र की सूचना पाता है। वह रघुनाथसिंह को चाराध्यक्ष पद से हटाने हेतु क्रॉसफोर्ड से कह कर किसी उंचे पद पर नियुक्त करने की सोचता है। महारानी विक्टोरिया के शासनादेश से महाराज माधवसिंह सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र बनते हैं परन्तु एजेंट का परामर्श अनिवार्य है। एजेंट शेखावत शिरोमणि अजितसिंह को प्रार्थित सुविधाएं प्रदान करता है, जिसे फतेहसिंह ने उकसाया था। इस अवसर पर गोविंदसिंह की अयोग्यता और कान्तिचन्द्र की योग्यता प्रमाणित होती है, और कान्तिचंद्र को सर्वाधिकार मिलते हैं। वह फतेहसिंह को वश करने की योजना बनाता है। अन्त में कान्तिचन्द्र की योजनाएं सफल होकर, माधवसिंह को स्वतंत्रता और के. जी. सी. एस्. आर. की उपाधि मिलती है। माधवानल (कथा) - ले.- आनन्दधर। 10 वीं शती। माधवीयसारोद्धार - ले.- रामकृष्ण दीक्षित । नारायण के पुत्र । महाराजाधिराज लक्ष्मणचंद्र के लिए लिखित, पराशरमाधवीय का यह एक अंश है। समय - लगभग 1575-1600 ई. माधवी-वसन्तम् (रूपक) - ले.- टी. गणपति शास्त्री (ई. 19 वीं शती)। माधवीया धातुवृत्ति (अथवा धातुवृत्ति) - ले.- सायणाचार्य । ई. 14 वीं शती। ज्येष्ठ भ्राता माधव के गौरवार्थ उनके नाम पर पाणिनीय धातुपाठ पर लेखक ने यह वृत्ति लिखी है। इस वृत्ति में दो स्थानों पर ऐसे कुछ पाठ उपलब्ध होते हैं जिनसे इस वृत्तिग्रंथ के लेखक का नाम यज्ञनारायण प्रतीत होता है। मैत्रेयरक्षित और क्षीरस्वामी की धातुवृत्तियों में प्रत्येक धातु के णिजन्त, सन्नन्त, यङन्त आदि प्रक्रियायों के रूप प्रदर्शित नहीं किए। माधवीया धातुवृत्ति में प्रायः सभी धातुओं के वे रूप प्रदर्शित किए हैं और जिन रूपों के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं, उनके विषय में प्राचीन आचार्यों के विविध मतों को उध्दृत करके, अपना निर्णायात्मक मत लिखा है। अनेक स्थानों पर अतिसूक्ष्म विचारों की चर्चा है। जो लोग आर्षक्रम से ही पाणिनीय तन्त्र का अध्ययन-अध्यापन करना चाहते हैं उनके लिए यह धातुवृत्ति काशिका के समान परम सहायक हैं। माधवोल्लास - ले.- रघुनन्दन। माध्यन्दिनशाखा - इस समय शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा ही सबसे अधिक पढी जाती है। काश्मीर, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश में प्रायः इस शाखा का प्रचार है। इस शाखा की संहिता और ब्राह्मण 266 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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