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यह तंत्र शिवजी से देवी को प्राप्त हुआ। श्लोक- 45801 अध्याय- 1051 महालक्ष्मीव्रतम् (या महालक्ष्मीचरितम्) - ले.-श्रीराम कविराज। अध्याय- 5। महालक्ष्मी-हृदयस्तोत्रम् (महालक्ष्मीहृदयम्) - श्लोक- 107। अथर्वणरहस्य से गृहीत। महालिंगयंत्रविधि - श्लोक- 1001 महालिंगार्चनप्रयोगविधि - शिवरहस्य से गृहीत । महावस्तु (अन्य नाम- महावस्तु-अवदान) - इस की रचना संभवतः ई. पू. 3 री शती में हुई। हीनयान तथा महायान संप्रदायों के लिए यह ग्रंथ आदरणीय है। गद्य-पद्यमयी इस रचना में बुद्धचरित्र का निवेदन प्राचीन ग्रंथों के आधार पर किया है। इसके प्रथम भाग में बोधिसत्त्व की विविध चर्याओं का, द्वितीय. भाग में बोधिसत्त्व के जन्म से बुद्धत्व प्राप्ति तक का और तृतीय भाग में संघ के आरंभ और विकास का उल्लेख है। यह ग्रंथ सर्व प्रथम, सेनार्ट द्वारा मूल संस्कृत, तीन भागों में, पेरिस में सम्पादित हुआ (1882 से 1897 ई.)। जोन्स द्वारा आंग्ल रूपान्तर (1949 से 1956 ई.) हुआ और डा. राधागोविन्द वस्तक ने देवनागरी संस्करण तथा बंगला अनुवाद किया। महावाक्यदर्शनसूत्रम् (कारिकासहित )- सूत्र- 399 । कारिका- 5921 महाविद्या - विषय- दंष्ट्राओंसे भीषण, कृष्णवर्णा, पंचमुखी, त्रिनेत्रा, दशभुजा, लम्बे ओठों वाली, अरुणवस्त्र, खड्ग, मुसल, शूल, माला, बाण आदि अस्त्रों को धारण की हुई काली देवी की पूजाविधि। महाविद्यादीपकल्प - शिव-पार्वती संवादरूप। विषयब्रह्मस्वरूपिणी महाविद्या के लिए प्रज्वलित दीपदान विधि, महाविद्या के जप, पूजन आदि। महाविद्याप्रकरणम् - ले.- नरसिंह। महाविद्यारत्नम् - ले.- हरिप्रसाद माथुर। श्लोक- 969। महाविद्यासारचन्द्रोदय - ले.- महन्त योगीराज राजपुरी। श्लोक20301 महाविद्यासूत्रम् - ले.-वासिष्ठ गणपति मुनि। इ. 19-20 वीं शती। पिता- नरसिंह शास्त्री। माता- नरसांबा । महाविद्यास्तुति - श्लोक- 1001 महाविष्णुपूजापद्धति - ले.- चैतन्यगिरि । (2) ले- अखण्डानन्द । गुरु- अखण्डानुभूति। महावीरचरितम् - महाकवि भवभूति विरचित नाटक। इसके 7 अंक हैं जिनमें रामायण के पूर्वार्ध की कथा वर्णित है। रामचंद्र को साधान्त एक वीर पुरुष के रूप में प्रदर्शित करने
के कारण इसकी अभिधा 'महावीरचरित' है। इस नाटक में भवभूति ने मुख्य घटनाओं की सूचना कथोपकथन के माध्यम से दी है, तथा कथा को नाटकीयता प्रदान करने के लिये मूल कथा में परिवर्तन भी किया है। प्रारंभ से ही रावण को राम का विरोध करते हुए प्रदर्शित किया गया है, तथा उनको नष्ट करने के लिये रावण सदा षडयंत्र करता रहता है। संक्षिप्त कथा- प्रथम अंक - में विश्वामित्र के आश्रम में यज्ञ में भाग लेने के लिए जनकपुत्री सीता और उर्मिला के साथ कुशध्वज का आगमन। वहां राम और लक्ष्मण के पराक्रम को देख कर वे आश्चर्य चकित होते हैं। अहिल्योध्दार, ताटकावध, विश्वामित्र द्वारा राम-लक्ष्मण को जम्भकास्त्रप्राप्ति । राम द्वारा शिवधनुष्य का भंग होने पर कुशध्वज द्वारा दशरथ के चारों पुत्रों के साथ अपनी चारों कन्याओं के विवाह का प्रस्ताव। रावण का दूत सीता की मंगनी करने आता है परंतु निराश होकर लौटता है। द्वितीय अंक - में परशुराम के साथ जनक, उनके पुरोहित शतानंद और दशरथ का रोषपूर्ण संवाद है। परशुराम के साथ युद्ध करने के लिए राम उद्यत होते हैं। चतुर्थ अंक- में राम से पराजित हुये परशुराम वनगमन करते हैं। शूर्पणखा मन्थरा के शरीर में प्रविष्ट होकर दशरथ से कैकेयी के दो वरों के रूप में राम लक्ष्मण सीता को वनवास तथा भरत को राज्य प्राप्ति मांगती है। सीता और लक्ष्मण के साथ राम वन को प्रयाण करते हैं। पंचम अंक में जटायु से सीताहरण का समाचार जानकर राम और लक्ष्मण, सीतान्वेषण करते हुए कबंध तथा वालि वध करते हैं। षष्ठ अंक - में हनुमान् द्वारा लंकादहन, वानरसेना सहित राम का लंकागमन, राक्षसों और वानरों का युद्ध और राम द्वारा रावणवध का वर्णन है। सप्तम अंक - में बिभीषण का लंका में राज्याभिषेक, सीता की अग्निपरीक्षा, राम का अयोध्या लौटना और वहां उनका राज्याभिषेक वर्णित है। महावीरचरित में कुल 32 अर्थोपक्षेपक हैं जिनमें 5 विष्कम्भक, 26 चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। ____ "महावीरचरित" भवभूति की प्रथम रचना है, अतः उसमें नाटकीय कुशलता के दर्शन नहीं होते। फिर भी इस नाटक में संपूर्ण रामचरित का यथोचित नियोजन कर भवभूति ने बहुत बड़ी प्रतिभा प्रदर्शित की है। पद्यों का बाहुल्य, इसके नाटकीय सौंदर्य को गिरा देता है। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह नाटक उत्तम है। भवभूति ने अत्यंत सूक्ष्मता के साथ मानव-जीवन का चित्रण किया है। अंतिम (सप्तम) अंक में पुष्पक-विमानारूढ राम द्वारा विभिन्न प्रदेशों का वर्णन, प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से मनोरम है। इस पर वीरराघव की टीका है। महावीर-पुराणम् - ले.- सकलकीर्ति जैनाचार्य। ई. 17 वीं शती। इसमें जैन तीर्थंकर महावीर का चरित्र वर्णित है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 263
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