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सर्वसिद्धि कथन। पुष्प आदि का माहात्म्यवर्णन। पुष्प-विशेष से पूजा में वैशिष्टय कथन इत्यादि । महामृत्युंजयमंत्र - श्लोक- 100। महामृत्युंजयविधि - विषय- महामृत्युंजय मंत्र की जपविधि रोगों से मुक्ति और दीर्घ जीवन-लाभ के लिए वर्णित । महामोक्षतंत्रम् • शंकरी-शंकर संवादरूप। पटल- 64 पूर्ण । श्लोक- लगभग 30001 विषय- पिण्ड और ब्रह्माण्ड की एकरूपता। अन्तर्यागादि के विषय में दिशाओं का विचार । अठारह महाविद्याओं की उत्पत्ति। अठारह भैरवों की उत्पत्ति । कालिका के शववाहन होने के कारण। शिवलिंग की उत्पत्ति, शिवजी के शवरूप होने के कारण। शिवजी की पृथिवी आदि आठ मूर्तियों की कथा। योनिबीज, लिंगबीज, महाबीज, बं बं कह कर गाल बजाने का माहात्म्य। कालीस्वरूप ककारादि-शतनामस्तोत्र । तारा, एकजटा, नीलसरस्वती के स्वरूप। तकारादि शतनामस्तोत्र इ.। महामोहम् (रूपक) - ले.-पं. कृष्णप्रसाद धिमिरे। काठमांडू (नेपाल) के निवासी। कविरत्न एवं विद्यावारिधि उपाधियों से विभूषित आधुनिक साहित्यिक। आपकी 12 कृतियां प्रकाशित
महायान- उत्तरतंत्रम् - ले.- मैत्रेयनाथ। केवल चीनी तथा तिब्बती अनुवादों से ज्ञात। महायानविंशकम् - ले.- नागार्जुन । एक लघु दार्शनिक रचना । इसमें न संसार न ही निर्वाण पूर्ण सत्य है, प्रत्येक वस्तु केवल भ्रम तथा स्वप्न है, यह निरूपण किया है। महायानसम्परिग्रह - ले.- आर्य असंग। महायान बौद्ध सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण इसका विषय है। मूल संस्कृत अनुपलब्ध। तीन चीनी अनुवाद (1) बुद्धशान्त (531 ई.) (2) परमार्थ (563 ई.) (3) ढेन सांग (650 ई.) द्वारा उपलब्ध हैं, दो टीकाएं भी उपलब्ध हैं जिनमें एक वसुबन्धुकृत है। महायानसूत्रालंकार - ले.- मैत्रेयनाथ और आर्य असंग। मूल संस्कृत में प्रकाशित। 21 परिच्छेद । इसका प्रथम कारिकाभाग मैत्रेयनाथकृत और द्वितीय व्याख्याभाग असंगकृत है। विज्ञानवाद की यह मौलिक रचना है। इसमें महायान सूत्रों का सारांश संग्रहीत है यह प्रख्यात रचना ई. 1909 में पेरिस में सिल्वाँ लेवी द्वारा फ्रेंच में अनूदित हुई है। प्रभाकर मित्र (ई. 7 वीं शती, ह्वेन सांग, ईत्सिंग आदि द्वारा चीनी भाषा में इसके अनुवाद हुए हैं। महारसायनविधि - ले.- महादेव। यह कतिपय तंत्रों से संगृहीत तांत्रिक वैद्यक विषयक ग्रंथ है। महाराणा प्रतापसिंह चरितम् ले.- श्रीपादशास्त्री हसूरकर, इन्दौरनिवासी। भारतरत्नमाला का पुष्प। इस गद्यात्मक चरित्र ग्रंथ पर विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर का उत्कृष्ट अभिप्राय है।
(2) ले- डा. सुभाष वेदालंकार। जयपुरनिवासी। महाराठ्यादिनिर्णय (समयाचारनिर्णययुत) - श्लोक- 304 । महारुद्रपद्धति - ले.- नारायणभट्ट । ई. 16 वीं शती। पितारामेश्वर भट्ट। महारुद्रन्यासपद्धति (महारुद्रपद्धति)- ले.- बलभद्र। महारुद्रपद्धति (गोभिलीय) - ले.- रामचन्द्रार्य । महारुद्रपद्धति (शांखायन के अनुसार) - ले.- अचलदेव द्विवेदी। पिता- वत्सराज। ई. 16 वीं शती। महारुद्रपद्धति - ले.- वेदांगराय। त्रिगलाभट्ट के पुत्र । महारुद्रपद्धति (सामवेदानुसार) - ले.- परशुराम। पिताकर्ण । सन 1459 में लिखित । शूद्रकमलाकर में उल्लिखित । महारुद्रपद्धति (अपरनाम- रुद्रार्चनमंजरी) - ले.- मालजित् (मालजी) पिता- त्रिगलाभट्ट। श्रीस्थल (गुर्जरदेश) के निवासी । लेखक का अपरनाम वेदांगराय। समय ई. 1627-16551 महारुद्र (प्रयोग) पद्धति- ले.- अनंत दीक्षित । इन्हें यज्ञोपवीत उपाधि थी। पिता- विश्वनाथ। समय ई. 16 वीं शती। महारुद्रपद्धति - ले.- काशी दीक्षित । महारुद्रपद्धति (आश्वलायन के अनुसार)- ले.- नारायण । महारुद्रमंजरी - ले.- मालजी (नामान्तर वेदांगराय)। पितात्रिगलाभट्ट । श्लोक- 16001 महार्णव : (कर्मविपाक) - ले.- मान्धाता। मदनपाल के पुत्र। (2) ले- पेदिभट्ट (पोगभट्ट)। पिता- विश्वेश्वर । (प्रस्तुत दोनों लेखकों के ग्रंथों में अत्यधिक साम्य है।) महार्णवकर्मविपाक - श्लोक- 800। महार्थप्रकाश (या महानयप्रकाशः) - ले.- शितिकण्ठ । श्लोक- 11611 महार्थमंजरी (सटीक) - ले.- महेश्वरानन्द । श्लोक- 300 । यह ग्रंथ परिमल टीका के साथ अनन्तशयन संस्कृत ग्रंथावली में प्रकाशित हो चुका है। महार्थमंजरी पर भद्रेश्वर और क्षेमराज कृत टीकाएं हैं। महालक्ष्मी-पद्धति - ले.- प्रकाशान्द। ई. 15 वीं शती। श्लोक- 4501 महालक्ष्मीपूजाकल्पवल्ली - ले.-श्रीगोविंद । श्लोक- 500। प्रकाश-41 महालक्ष्मीपूजापद्धति - श्लोक- 200। महालक्ष्मीमतभट्टारक - उमा-महेश्वर संवादरूप । यह महामंत्रसार नाम के 24000 श्लोकात्मक तांत्रिक ग्रंथ का एक अंश है। प्रस्तुत ग्रंथ में श्लोक- 1800 और 10 आनन्द है। महालक्ष्मीमाहात्म्य-व्याख्यानसमुच्चय - ले.- गालव ऋषि । अध्याय- 161 महालक्ष्मीरत्नकोष - ले.- शंकराचार्य । ब्रह्मा-महेश्वर संवादरूप ।
262 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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