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से पीटे और नदी में फेंके जाने पर भी हरिदास न मरते हैं न संकीर्तन छोडते हैं। बाद में नवद्वीप में वे महाप्रभु चैतन्य से मिलते हैं। वहां दोनों मिलकर चांद काजी का हृदय परिवर्तन करते हैं। अंत में चैतन्य महाप्रभु के चरणों को छाती पर रखकर हरिदास देह छोडते हैं। महाप्रवरभाष्यम् - ले.-पुरुषोत्तम । महाप्रत्यलिंगकल्प - श्लोक- 37001 महाप्रस्थानम् - (महाकाव्य) ले.- अन्नदाचरण तर्कचूडामणि । जन्म सन 1862। महाबलसिद्धांत - ले.- नागेशभट्ट। ई. 12 वीं शती। पितावेंकटेशभट्ट। महाभारतम् - महर्षि वेदव्यास विरचित यह लक्ष श्लोकात्मक संहिता भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ माना जाता है। कुरुकुल के धार्तराष्ट्रों और पांडवों के संघर्ष का इतिहास इसमें काव्यात्मक एवं पौराणिक पद्धति से वर्णन किया गया है। भारतवर्ष के तत्कालीन धर्म-संस्कृति का समस्त ज्ञान इसमें निहित होने को कारण यह "पंचम वेद" माना गया है। स्वयं भगवान् व्यास अपने इस ग्रंथ की श्रेष्ठता प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि धर्म अर्थ, काम और मोक्ष के संबंध में जो इस ग्रंथ में कहा गया है, वही अन्य ग्रंथों में मिलेगा और जो यहां नहीं है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।"
(धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यत्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।) यह विशाल ग्रंथ काव्यात्मक इतिहास के अतिरिक्त प्राचीन भारत के सर्वंकष सांस्कृतिक ज्ञान का अद्भुत कोष है।
इस समय "महाभारत" के दो संस्करण प्राप्त होते हैं- उत्तरीय व दाक्षिणात्य । उत्तर भारत-संस्करण के 5 रूप हैं तथा दक्षिण भारतीय संस्करण के 3 रूप है। इसके दो संस्करण क्रमशः मुंबई एवं एशियाटिक सोसायटी से प्रकाशित हैं। मुंबई वाले संस्करण की श्लोक-संख्या 1 लाख 3 हजार 5 सौ 50 श्लोक है, तथा कलकत्ता वाले संस्करण की श्लोक-संख्या 1 लाख 7 हजार 4 सौ 80 है। उत्तर भारत में गीता प्रेस गोरखपुर का हिंदी अनुवाद सहित संस्करण अधिक लोकप्रिय है। भांडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यट. पणे से प्रकाशित संस्करण अधिक प्रामाणिक माना जाता है। आधुनिक विद्वानों की धारणा है की विकास के तीन सोपान (जय, भारत व महाभारत) चढा हुआ "महाभारत" का वर्तमान रूप, अनेक शताब्दियों के विकास का परिणाम है। यह एक व्यक्ति की रचना न होकर कई व्यक्तियों की कृति है किंतु आंतरिक प्रमाणों एवं भाषा व शैली की एकरूपकता के आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि इसे एकमात्र महर्षि ने (व्यास ने) लिखा है।
"महाभारत" का रचना-काल अभी तक निश्चित नहीं किया
जा सका। 445 ई. के एक शिलालेख में इसका नामोल्लेख है- ("शतसाहनयां संहितायां वेदव्यासेनोक्तम्")। इससे ज्ञात होता है की इसके कम से कम 200 वर्ष पूर्व अवश्य ही "महाभारत" का अस्तित्व रहा होगा। कनिष्क के सभा-पंडित अश्वघोष द्वारा “व्रजसूची-उपनिषद्' में हरिवंश" व "महाभारत" के श्लोक उद्धृत हैं। इससे ज्ञात होता है कि लक्ष श्लोकात्मक "महाभारत", कनिष्क के समय तक प्रचलित हो गया था। इन आधारों पर विद्वानों ने "महाभारत" को ई.पू. 600 वर्ष से भी प्राचीन माना है। बुद्ध के पूर्व अवश्य ही "महाभारत" का निर्माण हो चुका था। (कतिपय आधुनिक विद्वान्, बुद्ध का समय 1900 ई.पू. मानते है) ___"महाभारत" में 18 पर्व (या खंड) हैं - आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रास्थानिक तथा स्वर्गारोहण-पर्व। महाभारत की संपूर्ण कथा (उपाख्यानों सहित) अतिसंक्षेप में प्रस्तुतकोश के प्रास्ताविक खंड में दी है। ___ "महाभारत" में अनेक रोचक एवं बोधक आख्यानों का वर्णन है, जिनमें मुख्य हैं शंकुतलोपाख्यान (आदि पर्व 71 वां अध्याय), मत्स्योपाख्यान (वनपर्व), रामोपाख्यान, शिबि-उपाख्यान (वनपर्व 130 वां अध्याय), सावित्री-उपाख्यान (वन पर्व, 239 वां अध्याय) नलोपाख्यान (वनपर्व, 52 वें से 79 वें अध्याय तक), भीष्मपर्व में प्रतिपादित भगवद्गीता में संपूर्ण ब्रह्मविद्या और योगशास्त्र का प्रतिपादन एवं शांतिपर्व में किया गया राजधर्म का विवेचन जो राजनीतिशास्त्र के विकास की महत्त्वपर्ण कडी है. जिसमें जीवन की समस्याओं के समाधान के नानाविध तत्त्वों का ज्ञान दिया गया है। अतः समस्त हिन्दू जाति के लिये महाभारत धर्म-ग्रंथ के रूप में समादृत है। भारतीय अध्यात्मविद्या का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ "गीता", "विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र, “अनुगीता", भीष्मस्तवराज' व गजेंद्रमोक्ष जैसे आध्यात्मिक भक्तिपूर्ण ग्रंथ, महाभारत के ही भाग हैं। ये 5 ग्रंथ, "पंचरत्न' के ही नाम से अभिहित होते हैं। संप्रति “महाभारत" में एक लाख श्लोक प्राप्त होते है। अतः इसे "शतसाहस्रीसंहिता" कहा जाता है। इसका यह रूप 1500 वर्षों से है। इसकी पुष्टी गुप्तकालीन एक शिलालेख से होती है, जिसमें "महाभारत" के लिए "शतसाहस्री" संहिता का प्रयोग किया गया है। महाभारत की टीकाएं - महाभारत पर 36 टीकाएं लिखी गई हैं1. नीलकण्ठ- महाराष्ट्र में कर्पू (कोपरगांव) के निवासी, 16 वीं शती। 2. अर्जुन सिका, 3. सर्वज्ञ नारायण, 4. यज्ञनारायण, 5. वैशंपायन, 6. वादिराज, 7. श्रीनन्दन, 8. विमलबोध, 9. आनन्दपूर्ण, 10. विद्यासागर, 12. चतुर्भुज, 13. नन्दिकेश्वर, 14. देवबोध, 15. नन्दनाचार्य, 16. परमानन्द भट्टाचार्य, 17. रत्नगर्भ, 18. रामकृष्ण, 19. लक्ष्मणभट्ट, 20. श्रीनिवासाचार्य,
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/259
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