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अनुष्ठानपद्धति - श्लोक- 3200। इसमें विष्णु, शिव, नारायण, अन्वय-बोधिनी - भागवत की केवल "वेदस्तुति' पर रचित दुर्गा, सुब्रह्मण्य, गणपति और शास्ता की मन्त्रबिम्ब में पूजाविधि, एक उत्तम तथा विस्तृत टीका । टीकाकार कविचूडामणि चक्रवर्ती मन्दिरशुद्धि, कलशप्रकार, मन्दिर उत्सवविधि, अभिषेक, भूतबलि वृंदावननिकुंज में निवास करते थे। प्रस्तुत टीका तथा टीकाकार आदि का विवरण है।
के समय का ठीक पता नहीं चलता किन्तु यह कृति बहुत अनूपविवेक - राजा अनूपसिंग के आदेश पर रामभट्ट हौशिंग पुरानी मानी जाती है। प्रथम संस्करण लक्ष्मी वेंकटेश्वर प्रेस, द्वारा लिखित। श्लोक 25561 विषय- शालग्रामप्रशंसा। मुंबई से तथा द्वितीय संस्करण पंडित पुस्तकालय, काशी से अन्नदाकल्प - श्लोक- 700। पटल 17। विषय- अन्नदा प्रकाशित । इसमें श्रुतिस्तुति एवं मूलश्रुति दोनों की व्याख्या है। की प्रशंसा, उनके मन्त्रग्रहण की विधि, मन्त्रोद्धार, मन्त्र का व्याख्या के मूल आधार, श्रीधर स्वामी की प्रख्यात श्रीधरी पुरश्चरण, साधक के स्नानादि की विधि, आचमन से लेकर टीका में है। यह बात टीकाकार ने स्पष्ट शब्दों में प्रकट की पीठन्यास तक का विवरण। मानसपूजा, पूजा की समाप्ति तक ..
है। मूल भागवत के श्लोकों की अन्वयमुखेन व्याख्या होने रहने वाले विशेष अर्घ्य का संस्कार, अन्नदा की पीठपूजा, के साथ ही यह टीका भागवत के आधार-स्थानीय श्रुतिवचनों विशेष मंत्रों से प्रक्षालित कलश का तीर्थजल से पूरण। अठारह
का भी विस्तुत अर्थ-निरूपण है। इस कार्य में शंकराचार्यजी वर्ष की स्वीया अथवा परकीया नारी का विशेष मंत्र से के भाष्य से पर्याप्त सहायता ली गई है। (श्रीशंकरपूज्यपादकत अभिषेक कर, उसके साथ पात्र स्थापन। स्थापित पात्र आदि
भाष्यानुमतेन श्रुतीनां व्याख्या क्रियते')। फलतः टीका-क्षेत्र पर्याप्त के जल से बटुक आदि तथा अन्नदा का तर्पण कर पर्वादि विस्तृत है। इसके अनुशीलन से द्विविध लाभ संपन्न होता है, भागों में बटुक सिद्धि के लिये बलि प्रदान। आवाहन से
भागवत के साथ ही साथ श्रुतियों के भी गंभीरार्थ की प्रतीति लेकर बलिदान तक का विवरण। देवता, गुरु और मंत्रों का
होती है। अभेद से जप। नारियल, केले, पके आम आदि द्रव्यों से अन्वितार्थप्रकाशिका - भागवत की आधुनिक टीकाओं में किये गये होमादि से साधना का उपाय। नायिकासाधन रूप इस टीका का माहात्म्य सर्वमान्य है। टीकाकार है पाटण नामक काम्यविधि का प्रतिपादन एवं अन्नदाकवच ।
स्थान के निवासी गंगासाहाय। इस टीका के उपोद्घात में अन्नपूर्णाकल्पवल्लभ - ले. शिवरामेन्द्र सरस्वती।
उन्होंने अपना पूरा परिचय निबद्ध किया है। इसका प्रणयन
टीकाकार ने अपनी 60 वर्ष की आयु हो जाने के पश्चात् अन्नपूर्णाकल्पलता - ले.- ब्रजराज।।
1955 विक्रमी (- 1898 ई.) में किया। यह एक यथार्थ अन्यापदेशशतकम् (सुभाषित संग्रह) - (1) ले. पं.
टीका है। अन्वयमुखेन सरलार्थ की विवृति, टीका को महत्त्वपूर्ण जगन्नाथ। (2) ले. गीर्वाणेन्द्र। (3) ले. गणपति शास्त्री।
बनाती है। सरल सुबोध टीका के सभी गुण इसमें विद्यमान (4) ले. मधुसूदन। (5) ले. नीलकण्ठ। (6) ले. एकनाथ ।
हैं। गूढ अर्थों को विशद करने के लिये श्रीधरी का सहारा (7) ले. काश्यप। (8) ले. घनश्याम। (9) ले. नीलकण्ठ
लिया गया है। भागवत में प्रयुक्त प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध सभी प्रकार दीक्षित। ई. 17 वीं शती। (10) ले. नीलकण्ठ (अय्या)
के छंदों का लक्षणपूर्वक निर्देश संभवतः सर्वप्रथम इसी टीका दीक्षित। (11) ले. गीर्वाणेन्द्र दीक्षित। ई. 17 वीं शती।
में किया गया है। अन्यापोहविचारकारिका- ले. कल्याणरक्षित । ई. 9 वीं शती। विषय- बौद्धन्याय दर्शन।
अपराजितपृच्छा - विषय- शिल्पशास्त्र । गुजरात में प्रकाशित । अन्यायराज्यप्रध्वंसनम् (अंक नामक रूपक)- ले.
अपराजितवास्तुशास्त्र - संपादक पी.ए. मनकड। गायकवाड रामानुजाचार्य।
ओरिएंटल सिरीज, बडोदा द्वारा प्रकाशित । अन्योक्तिमुक्तावली - कवि- योगी नरहरिनाथ शास्त्री विद्यालंकार ।
अपराधमार्जनम् (स्तोत्र) - लेखक- गंगाधर शास्त्री मंगरूलकर, शार्दूलविक्रीडित छंद में 225 अन्योक्तियों का संग्रह। अन्योक्ति
नागपुर निवासी। के अनेक विषय प्राचीन अन्योक्तियों की अपेक्षा अभिनव हैं।
अपशब्दखण्डनम् - लेखक- कणाद तर्कवागीश। दिल्ली के आर्षविद्या शोध केन्द्र द्वारा सन् 1972 में प्रकाशित । अपूर्वालंकार - लेखक- कुन्तकार्य (10-11 शती)। विषययोगी नरहिरनाथ नेपाल के निवासी एवं महान सांस्कृतिक अलंकारशास्त्र। काव्य-विषयक विशिष्ट भूमिका का प्रतिपादन कार्यकर्ता हैं।
इस ग्रंथ में किया गया है। अन्योक्तिशतकम् - (1) ले. वीरश्वर भट्ट। (2) ले. अपोहप्रकरणम् - लेखक-धर्मोत्तराचार्य। ई. 9 वीं शती। दर्शनविजयगणी। (3) ले. सोमनाथ। (4) ले. मोहन शर्मा। विषय- बौद्धदर्शन। अन्वयबोधिका - ले- प्रेमचन्द्र तर्कवागीश। नैषधीय काव्य अपोहप्रकरणम् - लेखक- ज्ञानश्री (बौद्धाचार्य) ई. 14 वीं शती। की व्याख्या।
अप्रतिम-प्रतिमम् (रूपक) - जग्गु श्री बकुलभूषण (श,
10/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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