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है। फिर नायक क्रौन्चपर्वत पर जाकर कीटराज को मार कर, मणिमाला के साथ उज्जयिनी लौटता है। उज्जयिनी में नायकनायिका विवाहबद्ध होते हैं। मणिमेखला - अनुवादक - श्रीनिवासाचार्य । मूल तमिल कथा का अनुवाद। मणिव्याख्या - ले.-कणाद तर्कवागीश । मणिहरण - ले.- जग्गू श्रीबकुलभूषण (ई. 20 वीं शती) "संस्कृतप्रतिभा' में प्रकाशित एकांकी रूपक। उरुभंग का परवर्ती कथानक। सशक्त चरित्र-चित्रण। कार्य (एक्शन) की प्रचुरता और प्रतिक्रियात्मक एकोक्तियों का प्रयोग इसकी विशेषता है। कथासार - सौप्तित पर्व के बाद प्रक्षुब्ध द्रौपदी को सांत्वना देने हेतु अश्वत्थामा के मस्तक के मणि का हरण करना। मतसार-तंत्र-ले.- 1) इसमें बाला कुब्जिका देवी की पूजाविधि प्रतिपादित है। यह 10 पटलों में पूर्ण है। विषय- कुब्जिकास्तोत्र, भैरवस्तोत्र, अभिषेक, शब्दराशि-फल, दण्ड, काष्ठ आदि पंच अभिषेक, प्रस्तार-दीक्षाविधी, पंच प्रणवोद्धार, ध्यान, पशुपरीक्षा आदि। 2) सवा लाख से भी अधिक श्लोकों की महासंहिता के अन्तर्गत, 12 हजार श्लोकों का यह मतसारतन्त्र है। इसका दूसरा नाम "विद्यापीठ" है। इसमें 23 से अधिक पटल हैं। यह तन्त्र पश्चिमाम्नाय से संबन्ध रखता है। विषय- आज्ञाप्रसाद, ब्रह्मविष्णु-दीक्षा, इन्द्रानुग्रह, न्यासक्रम, शब्दराशि, मालिनी-उद्धार, विद्याप्रकाशोद्धार, शंकरविन्यास, युगनाम, नामोद्धार आदि । मतंगपारमेश्वरतन्त्रम् - मतंग-परमेश्वर संवादरूप यह मौलिक तन्त्र (शैवागम) विद्यापाद, क्रियापाद, योगपाद और चर्यापाद नामक चार पादों में पूर्ण है। विद्यापाद में 15, क्रियापाद में 11, योगपाद में 7 तथा चर्यापाद में 9 पटल हैं। विद्यापाद पर नारायण-पुत्र रामकण्ठ कृत टीका है। मतंगभरतम् - ले.- लक्ष्मण भास्कर। 1000 श्लोक। विषयमतंगमतानुसारी नृत्य कला का विचार। मतंगवृत्ति - ले.- 1) रामकण्ठभट्ट । पिता एवं गुरु- नारायणकण्ठ । श्लोक-84871
2) ले.- सर्वात्मवृत्ति मतोत्सव - ले.- रुद्रयामल के अन्तर्गत, उमा- महेश्वर संवादरूप। श्लोक - 1100। 30 अध्यायों में पूर्ण। विषयमारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण और उनके उपयोगी यन्त्र । उनकी विधि प्रायः हिन्दी में लिखी गई है। मतोद्धार - ले.- शंकर पण्डित। मत्तलहरी - ले.- विद्याधरशास्त्री। मत्तविलासप्रहसनम् - ले.- महेन्द्र विक्रमवर्मा। कापालिक का मदिरा के नशे में मत्त होने से अपने कपाल को कहीं भूल जाना और याद आने पर उसे ढूंढना - इस प्रहसन की कथा है। इसे हास्यरस का पुट देकर प्रस्तुत किया गया है। प्रहसन
में दो चूलिकाएं हैं। मत्स्यपुराणम् - ले.- अठारह पुराणों में से एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ। भगवान् विष्णु ने वैवस्वत मनु को मत्स्यरूप में दर्शन देकर, इस पुराण का कथन किया यह कथा इस पुराण के पंचम अध्याय में है, जो इस प्रकार है :
एक बार मनु आश्रम में पितरों का तर्पण कर रहे थे कि अकस्मात् उनकी अंजुलि में एक मछली आकर गिरी। मनु का हृदय करुणा से भर आया और उन्होंने उसे अपने कमंडलु में रखा। कमंडलु में वह मछली एक दिन में सोलह अंगुल बडी हुई। उसने राजा से उसकी रक्षा करने की प्रार्थना की। राजा ने उसे एक बड़े घडे में रखा परंतु वहां भी उसका शरीर बढा। जैसे-जैसे मछली का शरीर बढता गया राजा उसे क्रमशः कुएं, सरोवर तथा समुद्र में छोडते गये। समुद्र में भी वह मत्स्य बढ़ने लगा। यह मत्स्य कोई अलौकिक जीव है, ऐसा सोचकर मनु ने उसे प्रणाम किया तथा पूछा कि वह कौन है। मत्स्य ने कहा "मैं विष्णु हूं और तुझे भविष्य की सूचना देने आया हूं। शीघ्र ही जलप्रलय होकर संपूर्ण सृष्टि का विनाश होने वाला है। उस समय तुम संपूर्ण जीवसृष्टि के नर-मादी जोडे साथ लेकर एक नौका में बैठे रहो, तथा नौका को मेरे सींग से बांध कर रखो। इस प्रकार में प्रलयकाल में मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा"। मनु ने वैसा ही किया। प्रलय सागर में नौका में बैठकर संचार करते समय मत्स्यरूपी विष्णु ने जो पुराण मनु को सुनाया वही मत्स्य पुराण नाम से प्रसिद्ध हुआ। रचनास्थल - इसके विषय में भी भिन्न-भिन्न मत हैं, दक्षिण भारत (श्री दीक्षितार), आंध्र प्रदेश (पार्गिटर), नाशिक (श्रीहाजरा) तथा नर्मदातट (श्री कांटावाला)। इनमें से अंतिम मत अधिक ग्राह्य माना जाता है। मत्स्यपुराण में नर्मदा की यशोगाथा तथा महत्ता का अत्यंत आत्मीयता से गुणगान हुआ है। प्रलय काल में सभी वस्तुओं का विनाश हुआ, तो भी कुछ वस्तुएं अवशिष्ट रहती हैं, जिनमें नर्मदा नदी एक है। इस संबंध में इस पुराण में कहा है कि हे राजा, सारे देवता दग्ध होने पर भी तुम अकेले बचे रहोगे। उसी प्रकार सूर्य, चतुलॊकसमन्वित ब्रह्मा, पुण्यप्रदा नर्मदा तथा महर्षि मार्कण्डेय बचे रहेंगे। ___ मत्स्यपुराण के रचियता नर्मदातीर के छोटे-छोटे स्थानों का भी वर्णन करते हैं। उसमें एक पूरे अध्याय में नर्मदा-कावेरी (यह कावेरी दक्षिण भारत की नदी नहीं है, तो ओंकारेश्वर के पास नर्मदा को मिलनेवाली एक छोटी सी नदी) संगम का वर्णन किया है। इस संगम को उन्होंने गंगा-यमुना के संगम के समान पवित्र और स्वर्ग तुल्य माना है। इसमें जिस दशाश्वमेघ घाट का वर्णन है, वह भडोच के पास नर्मदा पर स्थित है। भारभूति तीर्थ वर्तमान भांडभूत है।
मत्स्यपुराण के रचना काल के बारे में विभिन्न मत हैं।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /247
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