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नहीं है। प्रवेशक विष्कम्भक का अभाव है। गीतों का प्राचुर्य है। कतिपय एकोक्तियां भी गीतात्मक हैं। भिक्षुकोपनिषद् - यजुर्वेद से संबंधित एक नव्य उपनिषद्।। इसमें संन्यासमार्ग का प्रतिपादन है। भिक्षुकतत्त्वम् - ले.-श्रीकण्ठतीर्थ। महादेवतीर्थ के शिष्य विषय- यतिधर्म एवं अन्य संन्यासग्रहणार्थी लोगों के कर्त्तव्य । भिक्षसूत्रम् - ले.-पाराशर्य ऋषि। इसमें संन्यासदीक्षा ग्रहण करने वाले भिक्षुओं के आचारसंबंधी नियम बताये गये हैं। जैन आचारांगसूत्र तथा बौद्ध विनयपिटक ये दो ग्रंथ पाराशर्य कृत भिक्षुसूत्र पर आधारित माने जाते हैं। भिषागिन्द्रशचीप्रभा - ले.-प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। विदर्भनिवासी। भीमपराक्रम (नाटक)- ले.- अभिनन्द। ई. 9 वीं शती। भुक्तिप्रकरणम् - ले.-भोजराज। विषय- ज्योतिषशास्त्र । शूलपाणिकृत श्राद्धविवेक एवं टोडरानन्द में इस ग्रंथ का उल्लेख है। भुक्ति-मुक्तिविचार - ले.-भावसेन त्रैविध ई. 13 वीं शती। भूपालवल्लभ - ले. परशुराम। धर्म, ज्योतिष, साहित्य आदि शास्त्रों का यह विश्वकोष माना जाता है। भुवन-दीपक - ले.-पद्मप्रभसूरि । ई. 13 वीं शती। ज्योतिष विषयक ग्रंथ। इस ग्रंथ में कुल 170 श्लोक हैं। सिंहतिलक सूरि ने वि.स. 1362 में "विवृत्ति" नामक इसकी टीका लिखी थी। इस ग्रंथ के वर्ण्य विषय है : राशिस्वामी, उच्चनीचत्व, मित्र, शत्रु, राहु, केतु के स्थान, ग्रहों का स्वरूप, विनष्टग्रह, राजयोगों का विवरण लाभालाभ-विचार, लग्नेश की स्थिति का फल, प्रश्न के द्वारा गर्भविचार व प्रसवज्ञान, इष्टकाल-ज्ञान, यमजविचार, मृत्युयोग, चौर्यज्ञान आदि । भुवनाधिपतिमन्त्रकल्प - श्लोक- 1900 । भुवनेशीकल्पलता - ले.-वैद्यनाथ भट्ट। पितामह- राघवभट्ट । पिता- महादेव भट्ट । विषय- भुवनेश्वरी के उपासक द्वारा पालनीय दैनिक कृत्यों का तथा कुमारियों की पूजा, होम, द्रव्य और उनका परिमाण, मालासंस्कार, मन्त्रों के 10 संस्कार इ.। भुवनेश्वरीपद्धति - ले.-महादेव। विषय- भुवनेश्वरी की पूजापद्धति। भुवनेश्वरीप्रकाश - ले.- श्रीवासुदेव रथ। पिता- काशीनाथ रथ। विषय- भुवनेश्वरी देवी की पूजा का विवरण। भुवनेश्वरवैभवम्- ले.-नारायणचन्द्र स्मृतिहर। ई. 19-20 वीं शती। भुवनेश्वरीकल्प - रुद्रयामल से गृहीत श्लोक- 300 । भुवनेश्वरीक्रमचन्द्रिका - ले.-अनन्तदेव। श्लोक 672 । भुवनेश्वरीदीपदानम् - रुद्रयामलान्तर्गत। शिवपार्वती संवादरूप। विषय- भुवनेश्वरी देवी के निमित्त दीपप्रदानविधि ।
भुवनेश्वरी-पंचागम् - श्लोक- 6000। विषय- 1) भुवनेश्वरी पटल जो रुद्रयामलान्तर्गत दशमहाविद्यारहस्य में उमा-महेश्वर संवादरूरूप में वर्णित है, 2) भुवनेश्वरी पूजापद्धति, 3) भुवनेश्वरीसहस्रनाम, 4) भुवनेश्वरीस्तोत्र, 5) भुवनेश्वरीकवच आदि। भुवनेश्वरीपद्धति- ले.- परमानन्दनाथ। श्लोक- 960 । भुवनेश्वरी-मंत्रपद्धति - ले.-वासुदेव। श्लोक- 765 । भुवनेश्वरी रहस्यम्- ले.-कृष्णचंद्र।
2) रुद्रयामल से गृहीत । श्लोक- 2500। भुवनेश्वरीसपर्या - ले.-उमानन्द। श्लोक 430। भुवनेश्वरी-सहस्रनामस्तोत्रम्- ले.-मेरुविहारतन्त्रांतर्गत । शिव-पार्वती संवादरूप। भुवनेश्वरीस्तवटीका - ले.-उपेन्द्रभट्ट वंशोद्भव श्रीगौरमोहन विद्यालंकार भट्टाचार्य । विषय- भुवनेश्वरीस्तव का व्याख्यान । भुवनेश्वरीस्तोत्रम् - ले.-पृथ्वीधराचार्य । गुरु- शम्भुनाथ । श्लोक1301 टीकाकार- पद्मनाभदत्त। श्रीदत्तपौत्र, दामोदरदत्त-पुत्र । टीकानाम-सिद्धान्तसरस्वती। भुवनेश्वरी-वरिवस्या-रहस्यम् - ले.- मथुरानाथ शुक्ल । भुवनेश्वरीअर्चन पद्धति- ले.-पृथ्वीधराचार्य । श्लोक - 178 । भुशुण्डिरामायणम् - वैष्णवों के रामभक्ति परक रसिक संप्रदाय का यह उपजीव्य ग्रंथ है। आदि रामायण, महारामायण, बृहद्ामायण एवं काकभुशुण्डि रामायण के नामों से भी इस ग्रंथ को जाना जाता है, परंतु इसका लोकप्रिय नाम, "भुशुण्डि-रामायण" ही प्रतीत होता है। इसके रचयिता का नाम विस्मृत हो चुका है। यह उस काल की कृति है, जब एक ओर राम-भक्ति मधुरा भक्ति का रूप धारण कर, जनमानस को अपनी और आकृष्ट कर रही थी। निर्माण काल- 14 वीं शती के आसपास। इसकी 3 पांडुलिपियां प्राप्त होती हैं जिनके आधार पर डॉ. भगवतीप्रसाद सिंह ने इसका संपादन किया है। 1) मथुराप्रति, लिपिकाल सं. 1779, 2) रीवांप्रति, लिपिकाल सं. 1899 और 3) अयोध्याप्रति, लिपिकाल 1921 वि.सं.।
इस रामायण की कथा, ब्रह्मा-भुशुण्डि के संवाद रूप में कही गई है। इसके 4 खंड हैं : पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण। पूर्व खंड में 146 अध्याय हैं। इनमें ब्रह्मा के यज्ञ में ऋषियों के रामकथा विषयक विविध प्रश्न तथा राजा दशरथ की तीर्थयात्रा का वर्णन है। पश्चिम खंड में 42 अध्याय हैं, तथा भरत-राम संवाद में सीता जन्म से लेकर स्वयंवर तक की कथा वर्णित है। दक्षिण खंड में 242 अध्याय हैं, जिनमें राम-राज्याभिषेक की तैयारी, वनगमन, सीताहरण, रावणवध व लंका से लौटते समय भारद्वाज मुनि के आश्रम मे राम-भरत मिलन तक की कथा है। उत्तर खंड में 53 अध्याय हैं और देवताओं द्वारा रामचरित की महिमा का गान है। इसकी संपूर्ण
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संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 241
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