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बालापूजापद्धति - ले.- अमृतानन्द । गुरु- ईश्वरानन्द । श्लोक
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हुआ। बालकों में संस्कृत का प्रचार इसका प्रमुख उद्देश्य था। अतः इसकी भाषा सरल और इसमें प्रकाशित विषय बालकों में संस्कृत के प्रति रुचि बढाने वाले हैं। यह पत्र बालसंस्कृत कार्यालय, आगरा रोड, घाटकोपर, मुम्बई -77 से प्रकाशित होता था। इसका वार्षिक मूल्य पांच रुपये था। बालहरिवंशम् - कवि- शंकर नारायण । बालावबोध - ले.-कश्यप । सिंहलद्वीप का प्रसिद्ध व्याकरणग्रंथ । यह चान्द्र व्याकरण का संक्षिप्त रूप है। बार्हस्पत्यसंहिता- विषय गर्भाधान, पुंसवन, उपनयन एवं अन्य संस्कारों के मुहूर्त । वीरमित्रोदय ने हाथियों के विषय में इसका उद्धरण दिया है। बाष्कलमन्त्रोपनिषद् - एक गौण उपनिषद् । इसमें त्रिष्टुभ् छंद में 25 श्लोक हैं। इस उपनिषद् की कतिपय पंक्तियां ऋग्वेद में पायी जाती हैं। ऋग्वेद में उल्लेखित मेधातिथि और इंद्र की कथा (8-2-40) इसमें भी है। इसमें प्रारंभ में मेघातिथि तथा इंद्र का तात्त्विक तथा काव्यमय संवाद दिया गया है। इसका प्रतिपाद्य इंद्र-ब्रह्म का एकत्व है। बाष्कलशाखाएं (ऋग्वेद की) - शाकल्य संहिता के समान बाष्कलों का ब्राह्मण भी पृथक् होगा ऐसा अभ्यासकों का तर्क है। बाष्कलों का अंतिम सूक्त- "तच्छयोरावृणीमहे" यह है। शाकलों का अंतिम सूक्त- “समानी व आकूतिः" यह है। शाकल पाठ में 1117 सूक्त हैं किन्तु बाष्कल पाठ में 1125 सूक्त हैं। बाह्यमातृकान्यास (महाषोढान्यास) - ऊध्वाम्नायान्तर्गत । यह विरूपाक्ष परमहंस परिव्राजक द्वारा सिद्ध किया हुआ है। इसमें
अकार आदि 30 वर्गों से शरीरस्थित मुख आदि स्थानों में न्यास का विधान है। श्लोक - 1501 बाह्यार्थसिद्धिकारिका - ले.-कल्याणरक्षित। ई. 9 वीं शती। विषय- बौद्धदर्शन। इसका तिब्बती अनुवाद उपलब्ध है। बालाकल्प - ले.-दामोदर त्रिपाठी। बालत्रिपुरापंचांगम् - श्लोक 1154।। बालात्रिपुरापद्धति - ज्ञानार्णव से गृहीत । श्लोक 200। बालात्रिपुरापूजनपद्धति - श्लोक- 1000। बालात्रिपुरापूजाप्रकार - ले.-शिवभट्ट-सुत। श्लोक 200। बालात्रिपुरसुन्दरी-पंचागम् - श्लोक- 3001 बालादित्य • त्रिपुरापूजा की पद्धति के निदेशक 9 मयूख इस ग्रंथ में हैं। अन्तिम मयूख में त्रिपुरा का स्तोत्र है। बालापंचागम् - रुद्रयामलतन्त्रान्तर्गत। श्लोक 852। । बालापद्धति - 1) ले.-चैतन्यगिरि। श्लोक 960। 2) ले. दामोदर त्रिपाठी। श्लोक- 311।
बालापूजाविधानम् - महात्रिपुरासिद्धान्त के अन्तर्गत, उमा-महेश्वर -संवादरूप। विषय- दस दिक्पाल तथा द्वारपालों की पूजा कर एकाग्रचित्त से भूतशुद्धि करना, यन्त्र लिखना, यन्त्र के मध्य में बिंदु लिखना, त्रिकोण तथा षट्कोण लिखना । बालार्चनचन्द्रिका - ले.-लालचन्द्र। श्लोक- 9261 बालिकार्चनदीपिका - ले.-शिवरामाचार्य । बालार्चाकल्पवल्लरी- ले.- दामोदर त्रिपाठी। श्लोक 158 । बालार्चाक्रमदीपिका - श्लोक- 700। बिम्बप्रतिबिम्बवाद - ले.-अभिनवगुप्त । बिल्वोपनिषद् - एक नव्य उपनिषद् । यह सदाशिव (शंकर) द्वारा वामदेव को बतलाया गया है। विषय- बेल के त्रिदल से भगवान् शंकर की अर्चना का महत्त्व । बीजकोष - दक्षिणामूर्ति प्रोक्त । ऋषिवृन्द के प्रश्न पर दक्षिणामूर्ति ने इस बीजकोष का प्रतिपादन किया है। विषय- अकार से लेकर क्षकार पर्यन्त मातृकावर्गों में मन्त्रबीजत्व का निरूपण। बीजचिन्तामणि - हर-गौरी संवादरूप। श्लोक 280। पटल9। विषय- वर्णो की प्रशंसा, वर्णतत्त्व, बीजमन्त्र, मन्त्रों के उद्धार, वासना, मन्त्र, चैतन्य आदि । बीजवर्णाभिधान-टीका - ले.-गौरमोहन भट्ट। बीजव्याकरण-महातन्त्रम् (सटीक) - शिव-पार्वतीसंवादरूप। अध्याय-छह । विषय-चक्र-विचार, मास आदि का निर्णय, दीक्षाविधि, पुरश्चरण, जपमाला-संस्कार, कालीपूजा, नित्यहोमविधि कालीकवच, दक्षिणकालीकवच, कुमारीपूजा, कालिकासहस्रनाम, तारामन्त्रप्रकरण, तारावासना, ताराष्टक, नीलसरस्वती-कवच, कुलसर्वस्वनामस्तोत्र आदि। इस पर उपलब्ध टीकाएं :
1) महातन्त्रभवार्थदीपिका ले. खिरिदेश-निवासी रामानन्ददेव शर्मा वाचस्पति भट्टाचार्य (चैतन्यसिंह मल्ल-महीन्द्रपुत्र) के समकालीन।
2) शैवव्याकरणीयसंग्रह भावार्थ टीका-टिपण्णी। ले. रामतनुशर्मा रामानन्द वाचस्पति भट्टाचार्य के शिष्य । बुधभूषणम् - ले.-शम्भुराज (संभाजी महाराज) छत्रपति शिवाजी के पुत्र। राज्य समय 1680-1689 ई.। राजनीति विषयक सुभाषितों का संग्रह। पुणे में 1926 में प्रकाशित । बुद्ध-चरितम् (महाकाव्य) - ले.-बौद्ध कवि अश्वघोष । संप्रति मूल ग्रंथ 17 सर्गों तक ही उपलब्ध है। उनमें अंतिम 3 सर्गों के रचयिता हैं अमृतानंद। मूलतः इसके 28 सर्ग थे जो इसके चीनी व तिब्बती अनुवादों में प्राप्त होते हैं। इसका प्रथम सर्ग अधूरा ही मिलता है, तथा 14 वें सर्ग के 31 वें श्लोक तक के ही अंश अश्वघोषकृत माने जाते हैं। प्रथम
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /217
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