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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रपंच-मिथ्यात्वानुमान-खंडनम् - ले. मध्वाचार्य। द्वैतमत के प्रवर्तक। “दश-प्रकरण" के अंतर्गत संकलित निबंधों में से एक। 29 पंक्तियों के प्रस्तुत निबंध में अद्वैत-मत का खंडन है। प्रपंचसार - ले. श्रीशंकराचार्य। 36 पटलों में पूर्ण । विषय-तांत्रिक अर्चना-पूजा। प्रपंचसार की टीकाएं- 1) प्रपंचसारसंबंधदीपिका-उत्तम प्रकाश के शिष्य उत्तमबोधकृत। 2) प्रपंचसार-व्याख्या-विज्ञानोद्योतिनी, श्लोक 6800। यह शंकराचार्य विरचित सर्वागमसारभूत प्रपंचसार की व्याख्या 30 पटलों तक है। 3) प्रपंचसारविवरण, विज्ञानेश्वर-विरचित । 4) प्रपंचसारविवरण, पद्मपादाचार्य-विरचित, श्लोक-2900। प्रपंचसारविवरण, नारायणकृत। प्रपंचसारविवरण, देवदेवकृत। तत्त्वप्रदीपिका-नागस्वामी कृत, श्लोक- 1400 । प्रपंचसारटीका, सारस्वतीतीर्थ कृत, श्लोक 28941 प्रपंचसारविवरण, प्रेमानन्द भट्टाचार्य शिरोमणि विरचित। प्रपंचसार - तंत्रशास्त्रविषयक ग्रंथ। ई. 1450 से पूर्व की रचना । इस पर गीर्वाणयोगीन्द्र की और ज्ञानस्वरूप की व्याख्या है। प्रपंचसारविवेक (या भवसारविवेक) - ले. गंगाधर महाडकर। सदाशिव के पुत्र। आठ उल्लासों में आह्निक, भगवत्पूजा, भागवतधर्म आदि विषय वर्णित हैं। प्रपंचसारसंग्रह - ले. गीर्वाणेन्द्र सरस्वती। गुरु- विश्वेश्वर सरस्वती। श्लोक 132001 प्रपंचामृतसार - ले. तंजौर के राजा एकराज (एकोजी) ई. 1676 से 16841 प्रपंचामृतसार - ले. महादेव। विशिष्टाद्वैत तथा द्वैतमत का खण्डन और अद्वैत मत की स्थापना । मराठी अनुवाद उपलब्ध है। प्रपन्नकल्पवली - ले. निंबाकाचार्य। निंबार्क-संप्रदाय में 1) श्रीमुकुंदशरण-मंत्र (नारद-पंचरात्रानुमोदित ) की तथा 2) अष्टादशाक्षर गोपाल-मंत्र की दीक्षा की पद्धति प्रचलित है। आचार्य निंबार्क ने दोनों मंत्रों का उपदेश गुरुदेव नारद से प्राप्त किया और उनकी व्याख्या के निमित्त दो ग्रंथों की रचना की- 1) मंत्र-रहस्य-षोडषी और 2) प्रस्तुत प्रपन्न-कल्पवल्ली। प्रथम ग्रंथ में गोपाल-मंत्र की विस्तृत व्याख्या है और प्रस्तुत प्रपन्न-कल्पवल्ली में मुकुंद-शरण-मंत्र के रहस्य का उद्घाटन किया गया है। प्रपन्नकल्पवल्ली पर सुंदर भट्टाचार्य ने "प्रपन्नसुरतरुमंजरी' नामक विस्तृत भाष्य लिखा है और वह हिन्दी अनुवाद के साथ मुद्रित भी हो चुका है। प्रपन्नगतिदीपिका - ले. तातादास। इसमें विज्ञानेश्वर, चंद्रिका, हेमान्द्रि माधव, सार्वभौम और वैद्यनाथ दीक्षित का उल्लेख है। प्रपन्नदिनचर्या - रामानुज सम्प्रदाय के अनुसार। प्रपन्न-सपिण्डीकरण-निरास - ले. घट्टशेषाचार्य । प्रपन्नामृतम् - कवि अनन्ताचार्य। अलवार संप्रदाय के कतिपय वैष्णव साधुओं का चरित्र इस काव्य में वर्णित है। प्रभा - ले. वैद्यनाथ पायगुंडे। ई. 18 वीं शती। शास्त्रदीपिका की व्याख्या। प्रभाकरविजय - ले. नन्दीश्वर । ई. 12 वीं शती। प्रभाकराह्निक - ले. प्रभाकरभट्ट। विषय धर्मशास्त्र । प्रभातवेला - अनुवादक महालिङ्गशास्त्री। मूल है वर्डस्वर्थ का अंग्रेजी काव्य। प्रभावती (नाटक)- ले. अनादि मिश्र। ई. 18 वीं शती। प्रभावती-परिणयम् (नाटक) - ले. हरिहरोपाध्याय। ई. 17 वीं शती। (पूर्वार्ध) कवि ने अपने छोटे भाई नीलकण्ठ के पढने के लिए यह छह अंकों का नाटक लिखा। वीररस तथा शृंगार रस का मिला जुला प्रवाह। पुरुष-चरित्रों की अपेक्षा स्त्री चरित्रों की प्रधानता। प्रस्तावना में ऐतिहासिक महत्त्व की कुछ सूचनाएं हैं। चौखम्भा संस्कृत सीरीज् (वाराणसी) से सन 1969 में प्रकाशित । कथासार- वज्रनाभ की कन्या प्रभावती पर मोहित नायक प्रद्युम्न चोरी छिपे वज्रनाभपुरी पहुंचता है। वहां एक नाटक में वह नायक का अभिनय करता है, जिसे देख प्रभावती भी आकृष्ट होती है। अन्त में वह अपने असली रूप में प्रकट होता है परन्तु शरीरतः दिखाई नहीं देता। वज्रनाभ उसके साथ युद्ध करता है परन्तु इन्द्र तथा श्रीकृष्ण की सहायता प्रद्युम्न को मिलती है। अन्त में वज्रनाभ तथा अन्य दानव भी मारे जाते है और नायक-नायिका का विवाह सम्पन्न होता है। प्रबन्धप्रकाश - ले. डा.मंगलदेव शास्त्री । वाराणसी निवासी। प्रबन्धमंजरी - ले. पं. हृषीकेश भट्टाचार्य। काशीनाथ शर्मा द्वारा प्रकाशित। विद्योदय मासिक पत्रिका में प्रथम क्रमशः प्रकाशित। प्रबुद्धरौहिण्यम् (प्रकरण) - ले. रामभद्र मुनि ई. 13 वीं शती । इसमें जैन धर्म के एक प्रसिद्ध आख्यान का अंकन है। प्रबुद्धहिमाचलम् (नाटक)- ले. विश्वेश्वर विद्याभूषण (श. 20) "प्रणवपारिजात" पत्रिका में प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित। उमामहेश्वर की यात्रा के अवसर पर अभिनीत । अंकसंख्या- छः । जीवन के संस्कृतिक आदर्शों का प्रस्तुतीकरण। कथासार- विशालपुर के राष्ट्रपाल का आदेश है कि समूची भूमि और मठ-मन्दिरादि राष्ट्रायत्त होंगी और जनता कृषि, शिल्प आदि से उपजीविका करे। राष्ट्रपति विक्रमवर्धन बढ़ती जनसंख्या हेतु समीपवर्ती देवस्थान पर आक्रमण करने की ठानता है। देवस्थान के राजा विजयकेतु के प्रेमवश सभी पुरजन राष्ट्ररक्षा हेतु कटिबद्ध होते हैं। इस बीच विजयकेतु का विवाह गन्धर्वराजकन्या मधुच्छन्दा के साथ होता है, अतः गन्धर्वराज से भी विजयकेतु सहायता पाता है। भारत को गौरव प्राप्त होता है। प्रबोधचन्द्रोदय | (लाक्षणिक नाटक) - ले. अद्वैतवादी यति कृष्णमिश्र । ई. 12 वीं शती। भागवत के पुरंजन उपाख्यान संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 203 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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