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3) कपिजलसंहिता - (तेलगु) मद्रास । 4) जयाख्या संहिता- (नागरी) - गायकवाड ओरियंटल सीरीज, नं. 54 बडौदा, 1931।। 5) परमसंहिता- (नागरी) वही, बडौदा, 19401 6) पारणाशरसंहिता (तेलगु) बंगलोर, 1898 । 7) पद्मतंत्र- (तेलगु) मैसूर, 1924 । 8) बृहद्ब्रह्मीसंहिता- (तेलगु) तिरुपति 1909। (नागरी) आनंदाश्रम संस्कृत सीरीज, पुणे 19261 9) भारद्वाजसंहिता- (तेलगु)- मैसूर । 10) लक्ष्मीतंत्र- (तेलगु)- मैसूर 1888 | 11) विष्णुतिलक- (तेलगु) 1896 । 12) विष्णुसंहिता- (नागरी)-अनंतशयन-ग्रंथमाला, त्रिवेंद्रम, 19261 13) शांडिल्यसंहिता- (नागरी) सरस्वती भवन टेक्स्ट सीरीज,
काशी
14) श्रीप्रश्नसंहिता- (तेलगु)- कुंभकोणम् 1904 । 15) सात्वतसंहिता- (नागरी) सुदर्शन प्रेस, कांची, 1902 । 16) नारदपांचरात्र (नागरी) कलकत्ता। 1890 ।
इन संहिताओं के निर्देश तथा उद्धरण श्रीवैष्णव मत के आचार्यों ने अपने ग्रंथों मे बडे आदर के साथ अपनाए हैं। पांचाली स्वयंवरचम्पू - ले. नारायण भट्टपाद । केरलवासी। पाटलश्री - पटना से प्रकाशित होने वाली इस शोधप्रधान पत्रिका में साहित्य, धर्म, आदि विषयों के निबन्ध प्रकाशित होते हैं। पांडवचरितम् (महाकाव्य)- ले. देवप्रभ सूरि । जैनकवि। ई. 13 वीं शती। इस महाकाव्य की रचना 18 सों में हुई है जिसमें अनुष्टुप् छेद में महाभारत की कथा का संक्षेप में वर्णन है। पाण्डवचरितम् - ले. लक्ष्मीदत्त। श्रीलक्ष्मीनारायण राय के
आश्रित राजपण्डित। सर्ग संख्या-211 विषयानुक्रम सर्ग। 1) पाण्डवोत्पत्ति। 2) शस्त्रशिक्षा। 3) एकचक्रानिवास। 4-5) द्रौपदीपरिणय। 6-7) निसर्गवर्णन (खाण्डववनदाह) 8) राजसूयवर्णन। 9) द्यूतक्रीडा। 10) अर्जुनविद्यालाभ। 11) स्वर्गवर्णन। 12) निवातकवचसंहार। 13) तीर्थपर्यटन। 14) भीम अलकापुरी से कृष्ण के लिए सुवर्ण सौगंधिका लाता है।15-16) विराट नगरवास। 16) विराट-गोग्रहण। 18) युद्धोद्योग। 19) अभिमन्यु-वध। 20) पाण्डवविजय। 21) हिमालय-प्रस्थान। संपूर्ण महाकाव्य की श्लोकसंख्या 17151 दशमसर्ग की पुष्पिका में कवि का नाम लक्ष्मीनाथ लिखा है। प्रयाग के गंगानाथ झा केंद्रीय विद्यापीठ के शोधछात्र राधेश्याम ने प्रस्तुत महाकाव्य पर शोध प्रबंध लिखा है।
2) ले, म.म. दिवाकर। 14 सगों का महाकाव्य। इसमें पाणिनीय सूत्रों के उदाहरण विशेषतः दिए गए हैं। पाण्डवपुराणम् - ले. शुभचन्द्र । जैनाचार्य । ई. 16-17 वीं शती।
2) ले. वादिचंद्र सूरि । गुजरात निवासी । ई. 16 वीं शती। पाण्डवविजयम् (काव्य) - ले. हेमचंद्राचार्य( हेमचंद्र राय) कविभूषण। जन्म - 1882 । पांडवाभ्युदयम् - ले, चित्रभानु । पाणिग्रहणम् - ले. आर. कृष्णम्माचार्य। पिता- रंगाचार्य । पाणिग्रहणादिकृत्यविवेक - ले. मथुरानाथ (रघुनाथवागीश) विषय- धर्मशास्त्र। पाण्डित्य-ताण्डवितम् (रूपक)- ले. प्र. बटुकनाथ शर्मा । प्रथम प्रकाशन “वल्लरी" में, तदनंतर काशी की "सूर्योदय" पत्रिका के अगस्त 1972 के अंक में। शृंगारविरहितप्रहसन । पात्रों के नाम गुणानुसार दण्डधर, हलधर, कैयट-कैरव, साहित्यसैरिभ, कृदन्तदत्त, तद्धितदत्त, प्रचण्डस्फोट आदि। शब्दप्रयोगों द्वारा हास्योत्पादकता इसमें है। कथासार- हलधर मिश्र का शिष्य दण्डधर सभी मूर्ख पण्डितों को पराजित करता है। उसे काशी में कतिपय शिष्य मिलते हैं। पाणिनिप्रभा - ले. देवेन्द्र बंद्योपाध्याय। ई. 19 वीं शती। यह पाणिनीय व्याकरण की व्याख्या है। पाणिनीय-शिक्षा - शब्दोच्चारण के यथार्थ ज्ञान के लिये रचित सूत्रात्मक ग्रंथ । अर्वाचीन श्लोकात्मक शिक्षा का रचयिता अन्य व्यक्ति है, पर इसका आधार यह पाणिनीय शिक्षासूत्र है। मूल पाणिनिरचित शिक्षासूत्रों का पुनरुद्धार महर्षि दयानन्द सरस्वती ने बड़े परिश्रम से किया, तथा वर्णोच्चार शिक्षा के नाम से ई. 1879 में हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित किया। पाणिनीय श्लोकात्मक शिक्षा पर दो टीकाएं लिखी हैं- 1) शिक्षाप्रकाश 2) शिक्षा पंजिका। शिक्षाप्रकाशकार के अनुसार वर्तमान श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा का रचयिता पाणिनि का कनिष्ठ भ्राता पिङ्गल है। इस शिक्षा के दो पाठ हैं। लघु या याजुष पाठ- 35 श्लोक। बृहत् या आर्षपाठ- 60 श्लोक। उपरि निर्दिष्ट दोनों टीकाएं लघुपाठ पर हैं। पातसारिणीटीका - ले. दिनकर। विषय- ज्योतिषशास्त्र । पाताण्डनीय - कृष्ण यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा। पातिव्रत्यम् - ले. आर. कृष्णम्माचार्य । पिता- परवस्तु रंगाचार्य । पात्रकेसरीस्तोत्रम् (जिनेद्रगुणसंस्तुति)- ले. पात्रकेसरी। ई. 6-7 वीं शती। पात्रशुद्धि - ले. हरिहर। पादपदूतम् - ले. गोपेन्द्रनाथ गोस्वामी। पादांकदूतम् - ले. श्रीकृष्णसार्वभौम। ई. 17 वीं शती। बंगाल के राजा रघुनाथ की आज्ञा से रचित भक्तिपर दूतकाव्य । पादुकाविजयम् - ले. पं.सुदर्शनपति। उत्कल के इतिहास पर आधारित नाटक। पादुकासहस्त्रावतार-कथासंग्रह - ले, रंगनाथाचार्य ।
188 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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