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शैवतंत्र। परमार्थसारसंग्रह-विवृत्ति - मूलकार-अभिनवगुप्त तथा । विवृत्तिकार- क्षेमराज। परमावटिक -यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा । परमेशस्तोत्रावली - ले- उत्पलदेव। इस पर क्षेमराज कृत अद्वयस्तुतिसृक्ति नामक व्याख्या है। विषय- शैवतंत्र।। परमेश्वर-संहिता - ले- पाचरात्र-साहित्य के अंतर्गत निर्मित 215 संहिताओं में से एक प्रमुख संहिता। इसमें सात्त्वत-विधि का वर्णन है। यह संहिता द्वापर युग के अंत में संकर्षण द्वारा प्रवृत्त हुई ऐसा कहा गया है। परमेश्वरीदासाब्धि - (या स्मृतिसंग्रह) ले- होरिलमिश्र । परलोकसिद्धि - ले- धोत्तराचार्य। ई. 9 वीं शती । परशुरामकल्पसूत्रम् - श्लोक- 600। परशुरामकल्पसूत्रवृत्ति - (अपर नाम सौभाग्योदय) लेरामेश्वर । श्लोक- 50001 परशुरामचरितकाव्यम् - ले-हेमचंद्र राय कविभूषण। जन्म 1882। परशुरामप्रकाश - ले- खंडेराय । पिता-वाराणसी के धर्माधिकारी नारायण पण्डित। यह दो उल्लासों में आचार एवं श्राद्ध पर निबंध है। गोमती पर यमुनापुरी में संग्रहीत। शाकद्वीपीय कुलावतंस होरिलमिश्र के पुत्र परशुराम की आज्ञा से प्रणीत आचारार्क एवं स्मृत्यर्थसागर में वर्णित । माधवीय एवं मदनपाल का इसमें उल्लेख है। समय- सन् 1400-1600 के बीच । परशुरामप्रताप - ले- सांबाजी प्रतापराज। पिता- पण्डित पद्मनाभ। ये भट्ट कूर्म के शिष्य एवं निजामशाह के आश्रित थे। इस में कम से कम आह्निक जातिविवेक, दान, प्रायश्चित्त, संस्कार, राजनीति एवं श्राद्ध का विवेचन है। इस पर बोपदेवकृत श्राद्धकाण्डदीपिका (या श्राद्धदीपकलिका) नामक टीका है। पराख्यतंत्रम् - श्लोक- 2000। शतरत्नसमुच्चय में निर्दिष्ट । परातंत्र - पार्वती-ईश्वर संवादरूप। पटल 4। विषय- पूर्वाम्नाय, दक्षिणाम्नाय, उत्तराम्नाय, ऊर्ध्वाम्नाय आदि छह आम्नायों का प्रतिपादन। परात्रिंशिका - ले-अभिनवगुप्त । विषय- शैवतंत्र। इस पर सोमेश्वर विरचित व्याख्या है। परानन्दमतम् - विषय- तंत्रमार्ग के परानंद- सम्प्रदाय के दृष्टिकोण का प्रतिपादन। पराप्रसादपद्धति - (नामान्तर-क्रमोत्तम): ले- निजात्मप्रकाशानन्द । श्लोक- 5001 पराशर-स्मृति - ले- पराशर । गरुडपुराण में (अध्याय 107) इस स्मृति के 39 श्लोक समाविष्ट हैं, जिससे इसकी प्राचीनता का पता चलता है। कौटिल्य ने भी पराशर के मत का 6
बार उल्लेख किया है। इसका प्रकाशन कई स्थानों से हुआ है पर माधव की टीका के साथ मुंबई संस्कृत माला का संस्करण अधिक प्रामाणिक है। इसमें 12 अध्याय व 592 श्लोक हैं। संक्षेपतः इसकी विषयसूची इस प्रकार है- (1) पराशर द्वारा ऋषियों को धर्म-ज्ञान देना, युगधर्म व चारों युगों का विविध दृष्टिकोण से अंतर्भेद, स्नान, संध्या, जप, होम, वैदिक अध्ययन, देवपूजा, वैश्वदेव तथा अतिथि-सत्कार, क्षत्रिय वैश्य व शूद्र की जीविकावृत्ति के साधन । (2) गृहस्थधर्म । (3) जन्म व मरण से उत्पन्न अशुद्धि का पवित्रीकरण (4) आत्महत्या दरिद्र मूर्ख या रोगी पति को त्यागने पर स्त्री को दंड, स्त्री का पुनर्विवाह । पतिव्रता नारियों के पुरस्कार। (5) कुत्ता काटने पर शुद्धि (6) पशु-पक्षियों, शूद्रों, शिल्पकारों, स्त्रियों, वैश्यों व क्षत्रियों को मारने पर शुद्धीकरण, पापी ब्राह्मण-स्तुति। (7) धातु काष्ठ आदि के बर्तनों की शुद्धि। (8) रजोदर्शन के समय नारी। (9) गाय बैल को मारने के लिये छडी की मोटाई। (10) वर्जित नारियों से संभोग करने पर चांद्रायण या अन्य व्रत से शुद्धि। (11) चाण्डाल का अन्न खाने पर शुद्धि व खाद्याखाद्य के नियम (12) दुःस्वप्न देखने, वमन करने, बाल बनवाने आदि पर पवित्रीकरण तथा पांच स्नान।
पराशरस्मृति पर माधवाचार्य, गोविंदभट्ट (ई. 1500 से पूर्व) नन्दपंडित (विद्वन्मनोहरा), वैद्यनाथ पायगुंडे, कामेश्वरयज्वा
और भार्गवराय की टीकाएं हैं। पराशरोदितम् - ले- पराशर । ई. 8 वीं शती। पराशरोदित-केवलसार - ले-पराशर । पराशरोदित- वास्तुशास्त्रम् - ले- पराशर । पराशरोपपुराणम् - ले- पराशर । परिणयमीमांसा - ले-के.जी. नटेशशास्त्री। परिणाम (रूपक) - ले- चूडामणि भट्टाचार्य। श. 20 काठमाण्डू में 1954 में प्रकाशित। अंकसंख्या- सात। विषययुरोपीय सभ्यता में पली युवा पीढी की पतनोन्मुखता का चित्रण। परिभाषामण्डलम् (नामान्तर- ललितासहस्रनाम)- लेनृसिंहयज्वा। श्लोक- 300। परिभाषाविवेक - ले- वर्धमान । पिता- बिल्वपंचक कुल के भवेश। समय- 1460-1500 ई। विषय- नित्य नैमित्तिक एवं काम्य कर्म, कर्माधिकारी, प्रवृत्त एवं निवृत्त कर्म, आचमन, स्नान, पूजा, श्राद्ध, मधुपर्क, दान आदि। परिभाषावृत्ति (ललितावृत्ति) - ले-पुरुषोत्तम देव। समय ई. 11 वीं शती से 13 वीं शती। (2) ले- सीरदेव। ई. 13 वीं शती का प्रथम चरण) पाणिनीय पारिभाषिक शब्दावली पर वृत्ति । इस पर गोविन्द शर्मा द्वारा लिखित भाष्य खण्डशः उपलब्ध है। (3) ले- रामचन्द्र विद्याभूषण। ई. 17 वीं शती ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 185
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