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के आरंभ में दिये श्लोकों से भी इसी निश्चय की पुष्टि होती है।
(2) ईश्वर-पार्वती संवाद रूप योग की चर्चा के अनुसार इस तंत्र का सब वर्ण और आश्रमों द्वारा अनुष्ठान किया जा सकता है। 10 पटलों में पूर्ण
(3) नारद-शिव संवादरूप - (श्लोक 1000) विषययोग, ज्ञान, कर्म, अकर्म आदि का निरूपण, बिन्दुनिर्धारण, वह्निमार्ग, धूममार्ग आदि का स्वरूप, तीन गुणों के विभाग स्थूल, सूक्ष्म आदि का निरूपण, षट्चक्र दीक्षा शब्द की व्युत्पत्ति और दीक्षा-माहात्य। अक्षरमालिका - विषय-तंत्रशास्त्र के अनुसार अकारादि वर्गों के आध्यात्मिक स्वरूप का रहस्य । अक्षमालिकोपनिषद् - 108 उपनिषदों में से 67 वां उपनिषद। विषय- संस्कृत भाषा के 50 वर्गों का विचार, अक्षमाला के अनुसार किया है। इसमें प्रजापति तथा गुह के संवादरूप में अक्षमाला की जानकारी दी गई है। अक्षयपत्र (व्यायोग) - ले.- दामोदरन् नम्बुद्री । ई. 19 वीं शती। अक्षरकोश - ले.- पुरुषोत्तम देव। ई. 12 वीं शती। अक्षरगुम्फ - ले.- सामराज दीक्षित। मथुरा के निवासी। ई. 17 वीं शती। अक्षयनिधिकथा - ले.- श्रुतसागरसूरि (जैनाचार्य) ई. 16 वीं शती। अगस्त्यरामायणम् - परंपरा के अनुसार इसकी रचना अगस्त्य द्वारा स्वारोचिष मन्वन्तर के द्वितीय कृतयुग में हुई। श्लोक संख्या सोलह हजार । विभिन्न प्रकार की कथाएं इस ग्रंथ में है। अगस्त्यसंहिता - अगस्त्य के नाम पर 33 अध्यायों की इस संहिता में श्लोक संख्या है 7953। अगस्त्य-सुतीक्ष्ण संवाद से ग्रन्थ-विस्तार हुआ है। इसमें राममंत्र की उपासना का रहस्य एवं विधि और ब्रह्मविद्या का निरूपण है। सीताराम की आलिंगित युगलमूर्ति का ध्यान एवं वर्णन है। रामभक्ति शाखा के वैष्णवों का यह परम आदरणीय ग्रन्थ है। अग्निजा - स्वातंत्र्यवीर सावरकर के चुने हुए 12 मराठी काव्यों का अनुवाद। अनुवादक- डा. गजानन बालकृष्ण पळसुले। पुणेनिवासी। अग्निपुराण - 18 पुराणों के पारंपरिक क्रमानुसार 8 वां पुराण। यह पुराण भारतीय विद्या का महाकोश है। शताब्दियों से प्रवाहित भारतीय वाङ्मय में व्याप्त व्याकरण, तत्त्वज्ञान सुश्रुत का औषध-ज्ञान, शब्दकोश, काव्यशास्त्र एवं ज्योतिष आदि अनेक विषयों का समावेश इस पुराण में किया गया है। अधिकांश विद्वान इसे 7 वीं से 9 वीं शती के बीच की रचना मानते हैं। डा. हाजरा और पार्जिटर के अनुसार इसका समय 9 वीं शती का है। इस पुराण में 383 अध्याय और 11,457 श्लोक हैं। इसमें अग्निरुवाच, ईश्वर उवाच
पुष्कर उवाच आदि वक्ताओं के नाम हैं जिनसे प्रतीत होता है कि तीन-चार वक्ताओं ने मिलकर यह बनाया है। इस पुराण का विस्तार परा एवं अपरा विद्या के आधार पर है। वेद, उसके षडंग, मीमांसादि दर्शन आदि का निर्देश अपरा विद्या के रूप में है। ब्रह्मज्ञान जिससे होता है, उस अध्यात्मविद्या का गौरव परा विद्या में किया है। अवतार, चरित्र, राजवंश, विश्व की उत्पत्ति, तत्त्वज्ञान, व्यवहार, नीति आदि विविध ग्रंथों का इसमें विवेचन है। अध्यात्म का विवेचन अल्प होने से, इसे तामसकोटी का माना गया है। शैव धर्म की ओर इस पुराण का झुकाव है। अवतारमालिका में कूर्मावतार का उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि रामायण की रामकथा संक्षिप्तरूप में दी है। "रामरावणयोयुद्धं रामरावणयोरिव' यह सुप्रसिद्ध वचन अग्निपुराण में ही मिलता है। प्राचीन काल में दैत्य वैदिक कर्मों का आचरण करते थे। परिणामतः वे बलवान थे। देव-दैत्य संग्राम में उनकी विजय के पश्चात् सारे देव विष्णु के पास पहुंचे। दैत्यों को धर्मभ्रष्ट कर उनका नाश करने हेतु विष्णु ने बुद्धावतार लिया। ___ अवतारवर्णन के पश्चात् सर्ग-प्रतिसर्ग का वर्णन है। अव्यक्त ब्रह्म से क्रमशः सृष्टि की उत्पत्ति, देवोपासना, मंत्र वास्तुशास्त्र, देवालय, देवताओं की मूर्तियां, देव-प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार की भी चर्चा है। देवप्रतिष्ठा के लिये मध्यदेश का ब्राह्मण ही पात्र माना है। कच्छ, कावेरी, कोंकण, कलिंग के ब्राह्मण अपात्र बताये गये हैं।
सप्तद्वीप एवं सागर के नाम अगले अध्याय में है। आदर्श राजा का लक्षण, “राजा स्यात् जनरंजनात्" यह बताया है। राजा, प्रजा का प्रेम संपादन करे- "अरक्षिताः प्रजा यस्य नरकस्तस्य मन्दिरम्” (जिसकी प्रजा अरक्षित है, उस राजा का भवन नरकतुल्य है।
जनानुरागप्रभवा राज्ञो राज्यमहीश्रिय = राजा का राज्य, पृथ्वी और सम्पमत्ति प्रजा के अनुराग से ही निर्माण होते हैं। इस पुराण में विशेष उल्लेखनीय भाग गीतसार का है।
एक श्लोक में या श्लोकार्थ में उस अध्याय का तात्पर्य आ जाता है। दान के बारे में अग्निपुराण में कहा गया है, "देशे काले च पात्रे च दानं कोटिगुणं भवेत्” देश, काल और पात्र का विचार कर किया गया दान कोटिगुणयुत होता है। गाय की महत्ता इस श्लोक में बताई है :
"गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्ययनं परम्।
अन्नमेव परं गावो देवानां हविरुत्तमम्।।" ___अर्थात् गाय इस प्राणिमात्र का आधार है। गाय परम
मंगल है। गोरसपदार्थ परम अन्न एवं देवताओं का उत्तम हविर्द्रव्य है।
इस पुराण को समस्त भारतीय विद्या का विश्वकोश कहना
2 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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