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उपनयन, ला था। यह ग्रंशय के पूर्व इन्होंने
निर्णयदर्पण - (1) ले. गणेशाचार्य। विषय - धर्मशास्त्र।
(2) ले. शिवानन्द । तारापति ठक्कुर के पुत्र । विषय- श्राद्ध एवं अन्य कृत्य। निर्णयदीपक - ले. अचल द्विवेदी। पिता- वत्सराज। गुरु - भट्टविनायक। ये वृद्धपुर के नागर ब्राह्मणों की मोड शाखा के थे। इनका बीरुद था भागवतेय। इस ग्रंथ के पूर्व इन्होंने ऋग्वेदोक्त-महारुद्राविधान लिखा था। यह ग्रंथ श्राद्ध, आशौच, ग्रहण, तिथिनिर्णय, उपनयन, विवाह, प्रतिष्ठा का विवेचन करता है। इसकी समाप्ति सं. 1575 की ज्येष्ठ कृष्णद्वादशी (1518 ई.) को हुई। विश्वरूपनिबन्ध, दीपिका-विवरण, निर्णयामृत, कालादर्श, पुराणसमुच्चय, आचारतिलक के उद्धरण इसमें दिए हैं। निर्णयदीपिका - ले. वत्सराज । निर्णयबिन्दु - ले. वक्कण। निर्णयसंग्रह - (1) ले. मधुसूदन। (2) ले. प्रतापरुद्र निर्णयरत्नाकर - ले. गोपीनाथभट्ट निर्णयबृहस्पति - ले. बृहस्पति मिश्र "रायकूट", ई. 15 वीं । • शती। यह “शिशुपालवध" की व्याख्या है। निर्णयभास्कर - ले. नीलकण्ठ। निर्णयमंजरी - ले. गंगाधर । निर्णयसार- 1) ले. नन्दराम मिश्र। दीपचन्द्र मिश्र के पुत्र । तिथि, शाद्ध आदि विषय - छः परिच्छेदों मे वर्णित। वि. सं. 1836 (1780 ई.) में प्रणीत। 2) ले. भट्टराघव। ई. 17 वीं शती। 3) ले. क्षेमंकर। 4) ले. रामभट्टाचार्य। 5) ले. लालमणि। निर्णयसिद्धान्त - ले. महादेव। विषय - कालनिर्णय। (2)
ले. रघुराम। विषय- कालनिर्णय । निर्णयसिन्धु - ले. कमलाकरभट्ट। पिता- शंकरभट्ट। रचना काल- 1612 ई.। इस ग्रन्थ में 100 स्मृतियों तथा 300 से अधिक निबन्धकारों के नाम सहित उनके उध्दरण भी दिये गये हैं। ग्रन्थ के कुल तीन परिच्छेद हैं। इनमें धार्मिक-कृत्यों के विषय में कालनिर्णय', चान्द्र-सौर वर्ष, अधिक व क्षय मास, व्रत, पर्व, शुद्धा व विध्दा तिथियां, श्राद्ध, उत्तरक्रिया, सहगमन, संन्यास, मूर्तिप्रतिष्ठा आदि विविध कार्यों के लिये शुभ मुहूर्तो का विवरण है। यह ग्रन्थ न्यायालयों में भी प्रमाण माना जाता है। इस ग्रंथ पर कृष्णभट्ट आर्डे की 'दीपिका', नामक टीका है। निर्णयामृतम् - ले. अल्लाड (नाथसूरि)। सिद्धलक्ष्मण के पुत्र। युमना पर एकचक्रपुर के राजकुमार सूर्यसेन की आज्ञा से विरचित। इसमें एकचक्रपुर के बाहूबाणों (चाहुवाणों) के राजाओं की तालिका दी हुई है। आरम्भ में मिताक्षरा, अपरार्क, अर्णव, स्मृतिचंद्रिका, धवल, पुराणसमुच्चय, अनन्तभट्टीय गृह्यपरिशिष्ट, रामकौतुक, संवत्सरप्रदीप, देवदासीय, रूपनारायणीय,
विद्याभट्टपद्धति, विश्वरूपनिबन्ध पर ग्रंथ की निर्भरता की घोषणा की गई है। यह ग्रंथ निर्णयदीपिका, श्राद्धक्रियाकौमुदी में उल्लेखित है, अतः तिथि 1500 ई. को पूर्व किन्तु 1250 के पश्चात् की है। व्रत, तिथिनिर्णय, श्राद्ध, द्रव्यशुद्धि एवं आशौच पर चार प्रकरण हैं। वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित । (2) ले. रामचंद्र। (3) ले. गोपीनारायण। पिता-लक्ष्मण। निर्णयार्णव - ले. बालकृष्ण दीक्षित । निर्णयोद्धार - (तीर्थनिर्णयोद्धार) ले. राघवभट्ट। ई. 17 वीं शती। विषय- धर्मशास्त्र। निर्णयोद्धार-खण्डनमण्डनम् - ले. यज्ञेश। विषय - राधवभट्ट कृत निर्णयोद्धार के विषय में उठाये गये सन्देहों का निवारण। निर्दुःखसप्तमीकथा - ले. श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16
वीं शती। निर्वाणगुह्यकालीसहस्रनाम - बालागुह्यकालिका-तंत्ररहस्य प्रकरणान्तर्गत। निर्वाणतन्त्रम् - चण्डी-शंकर संवाददरूप। श्लोक - 524 । पटल - 18| विषय - जगत् की उत्पत्ति का और संक्षेप में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का वर्णन, ब्रह्मा, विष्णु आदि की उत्पत्ति, क्रम से सावित्री और लक्ष्मी के साथ उनका विवाह । भुवनसुन्दरी के साथ सदाशिव का विवाह । अनादि पुरुष के अंश रूप . जीव का चौरासी लाख जन्मों के उपरान्त मानव-जन्म लाभ । गायत्री के जप का माहात्म्य, गायत्रीपुरश्चरणविधि। संन्यासी आदि के लक्षण। गोलोक वर्णन। राधास्वरूप का वर्णन । साकार द्विभुज महाविष्णुविधि। मन्त्रप्रकरण, अष्टादश उपचारों का निर्देश, समयाचारवर्णन आदि । निर्वाणोपनिषद् - ऋग्वेद से संबध्द नव्य उपनिषद् । वर्ण्य विषय है अवधूत संन्यासी। इस उपनिषद् में “निर्वाण' शब्द का अर्थ वासुदेव बताया है और अवधूत संन्यासी को उनकी पूजा करनी चाहिये ऐसा कहा गया है। कर्मनिर्मूलन है उस अवधूत की कथा, (गुदडी) काठिण्य है उसकी कौपीन, ब्रह्म है उसका विवेक और ज्ञान ही उसका रक्षण है। अवधूत को चाहिये कि वह काशी में वास करे, एकांतवास में रहे
और-भिक्षा का सेवन करे तथा सत्य ज्ञान से भाव व अभाव इन दोनों को जला डाले। ऐसा करने से वह निरालंब-पद पर विराजमान होता है। निवेदित-निवेदतम् - लेखिका- डॉ. रमा चौधुरी। विषयभगिनी निवेदिता का 12 दृश्यों में नाट्यात्मक चरित्र । निशाचरपूजा - श्लोक - 501 विषय - देवी की रात्रिपूजापद्धति । निःश्वासतत्त्वसंहिता - मतंग- ऋचीक संवादरूप। इसका प्रथम भाग श्रौतसूत्र और द्वितीय भाग गृह्यसूत्र कहलाता है। आरंभ में 4 लौकिक पटल हैं। मूल सूत्र में 8 पटल, उत्तर सूत्र में 5 पटल, नयसूत्र में 4 पटल, गृह्यसूत्र में 18 पटल है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/165
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