________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उचित नहीं है। अतः आचार्य भरत ही नाट्यशास्त्र के प्रणेता सिद्ध होते हैं।
नाट्यशास्त्र में मूलतः 36 अध्याय थे- (षट्त्रिंशकं भरतसूत्रमिदम्) परंतु अभिनवगुप्त ने 37 अध्यायों का विवरण किया है। अध्याय की संख्या काश्मीरी शैवदर्शन के 36 तत्त्वों की संख्या के अनुरूप है तथा 37 वां अध्याय उत्पलदेव के अनुत्तर के सिद्धान्त का निदर्शक है ऐसा आचार्य अभिनव गुप्त का प्रतिपादन हैं। इस समय नाट्यशास्त्र के विभिन्न संस्करण विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध हैं। हिन्दी में श्री बाबलाल शुक्ल शास्त्री का आलोचनात्मक संस्करण अद्यतन अध्ययन को समाहित करता हुआ स्वतंत्र व्याख्यान ग्रंथ बन गया है।
समय- अनेक विद्वानों के द्वारा गहन तथा विशद अध्ययन तथा अनुसंधान करने के पश्चात् भी नाट्यशास्त्र को किसी निश्चित काल विशेष में निर्धान्त स्थिर करना कठिन है। वस्तु विषय की दृष्टि से इसके कुछ अंश पांचवी अथवा छठवी शताब्दी ई. पूर्व के हो सकते है जब कि कुछ अंश द्वितीय शताब्दी के प्रतीत होते हैं। महाकवि कालिदास नाट्यशास्त्र के मूल रूप से परिचित थे यह तो निर्विवाद है। ग्रन्थपरिमाण - वर्तमान नाट्यशास्त्र प्रायः 6,000 श्लोकों का ग्रंथ है अतः उसे "षट्साहस्री' संहिता भी कहा जाता है। परंतु भावप्रकाशन के अनुसार नाट्यशास्त्र के बाद साहस्री संहिता की रचना आदि भरत या वृद्धभरत ने की थी। इसके कुछ गंद्याश भी उसमें उद्धृत किये गये हैं और एक 'अष्टादशसाहस्त्री संहिता" मानी गई है। भोज के अतिरिक्त दशरूपक के टीकाकार बहुरूप मिश्र ने भी द्वादशसाहस्री संहिता का उल्लेख किया है। धनंजय, भोज तथा आचार्य अभिनवगुप्त के समय तक नाट्यशास्त्र के दो पाठों की परम्परा अवश्य विद्यमान थी। श्री शुक्ल का मत है कि आदि भरत की रचना, भरत की उत्तरवर्ती है (जैसे मनुस्मृति के पश्चात् वृद्ध-मनु की रचना) जिनमें भरत शब्द का विशेषण लगा कर नाट्यशास्त्रीय ग्रंथों को निदर्शित किया गया है। व्याख्यानशैली - इस ग्रंथ में प्रधान रूप से पद्यात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। प्रायः अनुष्टुप् वृत्त में रचित ये पद्य सूत्र अथवा कारिका के रूप में माने जाते है परंतु मुनि ने यथाप्रसंग आनुवंश्य श्लोक, आर्याओं तथा सूत्रानुविद्ध आर्याओं का भी प्रयोग किया। गद्य का प्रयोग भी सिद्धान्त निरूपण, व्याख्यान तथा निर्वचन के लिए किया गया है। इस प्रकार नाट्यशास्त्र में सूत्र, भाष्य, संग्रहकारिका एवं निरुक्त जैसी सभी प्राचीन शास्त्रीय पद्धतियों का दर्शन होता है। भोज ने 'गद्यपद्यव्यायोगि मिश्रम्" कह कर उदाहरणस्वरूप नाट्यशास्त्र का ही उल्लेख किया है।
ग्रंथ के बृहत् कलेवर, विषयविस्तार, नाट्य के सहयोगी कलारूपों के विवरण, अनेक आचार्यों के उल्लेख तथा विविध
विवेचन शैलियों के प्रयोग के कारण, नाट्यशास्त्र एक सतत विकासमान परम्परा का ग्रंथ बन गया है और यही कारण है कि डा. बलदेव उपाध्याय, डा. गो.के. भट आदि कई विद्वान् इसे एक ही आचार्य की कृति के रूप में स्वीकार नहीं कर पाते। परंतु आचार्य भरत ने अपने समय तक उपलब्ध समस्त नाट्यशास्त्रीय परंपरा, प्रयोग तथा सिद्धान्त चिन्तन को व्यवस्थित कर अपनी विलक्षण अर्थप्रतिभा से इस आकरग्रंथ की रचना की है इससे संदेह नहीं है। इसमें अन्य आचार्य प्रयोक्ता तथा शिष्यपरिवार का सहयोग लेकर इतने बहदाकार ग्रंथ का प्रणयन हुआ होगा ऐसा अनुमान किया जा सकता है। वार्तालाप तथा उपदेश शैली भी सजीव व्याख्यान एवं लेखन की ओर ही इंगित करती है। आचार्य भरत ने नाट्य की एक व्यापक अवधारणा दी है और यही कारण है कि परवर्ती-शास्त्रकार उनकी प्रतिपादित धारणाओं तथा सिद्धान्तों का ही व्याख्यान, विवेचन तथा उपबंहण करते रहे। इतने सर्वस्पर्शी तथा महनीय शास्त्रग्रंथ का प्रणयन करने के पश्चात् भी आचार्य भरत ने स्वयं इस शास्त्र के प्रस्तार को दुस्तर माना है।
पूर्ववर्ती नाट्याचार्य - नाट्यशास्त्र में नाट्य के विविध विषयों के अनेक आचार्यों का उल्लेख हुआ है। नाट्योत्पत्ति एवं नाट्यावतार के वर्णन प्रसंग में भरताचार्य के सौ शिष्यों का उल्लेख मिलता है। इनमें से कुछ नाट्यशास्त्र के प्रयोक्ता एवं प्रणेता थे जिनका विवरण भरत ने स्वयं उपस्थित किया है। इनमें से कुछ आचार्य नाट्यशास्त्रीय परम्परा में उल्लेखों तथा उद्धरणों के माध्यम से भी प्रसिद्ध हए है।
नाट्यशास्त्र-व्याख्याकार- शाङ्गदेव ने "संगीतरत्नाकर" के एक श्लोक में भरत के नाट्यशास्त्र के व्याख्याकारों का उल्लेख किया है
व्याख्याकारा भारतीये लोल्लटोद्भटशंकुकाः ।
भट्टाभिनवगुप्तश्च श्रीमत्कीर्तिधरोऽपरः ।।। इसके अनुसार- लोल्लट, उद्भट्ट, शंकुक, अभिनवगुप्त तथा कीर्तिधर भरत के व्याख्याकार हैं। इसमें भट्टनायक का नाम नहीं है परंतु अभिनवगुप्त ने इनके नाम का उल्लेख अनेक बार किया है,। इस प्रकार नाट्यशास्त्र पर लिखित व्याख्याओं की सदीर्घ परम्परा का परिचय अभिनवभारती से ही मिलता है। ये व्याख्याकार प्रायः काश्मीर के निवासी हैं। ___ नाट्यशास्त्र के कुछ टीकाकारों के नाम ग्रंथों में उपलब्ध होते हैं :(1) भरतटीका- ले- श्रीपाद शिष्य। (2) हर्षवार्तिक- लेहर्ष। (3) राहुलक (4) नखकुट्ट। (5) मातृगुप्त। (6) कीर्तिधराचार्य। (7) उद्भट (8) लोल्लट। (9) शकलीगर्भ । (10) दत्तिल (भरत के शिष्य) (11) कोहल (भरत के शिष्य)। (12) मतंग। (13) ब्रह्मा। (14) सदाशिवभरतम्ले. सदाशिव। (15) नन्दी। (16) भरतार्थचंद्रिका (यही
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/157
For Private and Personal Use Only