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संस्कृत महाविद्यालय बंगलोर । 108 श्लोकों में 9 गीताएं समाविष्ट - रामगीता, कृष्णगीता, दशावतारगीता, गणेशगीता, सद्गुरुगीता, शिवगीता, वाणीगीता, लक्ष्मीगीता, और गौरीगीता। नवग्रहचरितम् (भाण) । ले घनश्याम । ई. 18 वीं शती । नवग्रहचरितम् ले घनश्याम 1700-1750 ई. प्रतीक रूपक । अनूठी पारिभाषिक शब्दावली का इसमें उपयोग हुआ है जैसे "प्रपंच अंक । प्रस्तावना के स्थान पर “सूच्यार्थ " । विष्कम्भक के स्थान पर "काल" इ. दिव्य और भावात्मक पात्रों का संयोजन । चरितनायक देवता । प्रपंचसंख्या तीन । नायक सूर्य का प्रतिनायक राहु गृहाधिपति होकर स्वतंत्र रूप से राशिलाभ चाहता है। अपने और साथी केतु के नाम पर एक एक दिन बनवाना चाहता है। सूर्यपक्ष का सेनापति मंगल है। राहु की ओर से "शनि" को फोडने के प्रयत्न चल रहे हैं। लडाई उनती है। अन्त में शुक्र और बृहस्पत्ति सन्धि करते हैं। शुक्र, राहु को "स्वर्भानु' नाम देकर प्रसन्न करता है।
कथासार
नवग्रहचिन्तामणि श्लोक- 6401
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नवग्रहमंत्र (नवग्रहकारिका) ले बृहस्पति श्लोक- 301 नवग्रहशान्तिपद्धति (सामवेदियों के लिए) ले शिवराम । पिता विश्राम।
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नवग्रह सिद्धमंत्र पूजाविस्तार (रुद्रयामलोक्त) कृष्ण युधिष्ठिर संवादरूप। इसमें नवग्रह यंत्र के निर्माण और पूजन की विधि वर्णित है।
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नव्यधर्मप्रदीपिकाले कृपाराम तर्कवागीश, वारेन हेस्टिंग्ज की समिति के सदस्य ।
नवरात्रकल्प
ले- शिव-पार्वती संवादरूप विषय- शारद नवरात्र के पुरश्चरण आदि । नवरात्रनिर्णय ले-गोपाल व्यास ।
नवदुर्गापूजारहस्यम् (रुद्रयामलन्तर्गत) पार्वती महादेव नवरात्रपूजाविधानम् - ले-विषय- शारद नवरात्र में भगवती संवादरूप पटल- 11 प्रारंभिक 2 पटल प्रस्तावना के रूप शक्ति की पूजा, पुरश्चरण आदि का तांत्रिक प्रतिपादन । में हैं। शेष 9 पटलों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विवरण है। नवरात्रप्रदीप ले- (1) ले- विनायक पंडित । श्लोक- 1000 1 नवदुर्गापूजाविधि (रुद्रयामलान्तर्गत)। (2) ले नन्दपण्डित । देवदूतीपूजाविधि। श्लोक- 2951 नवरात्रविधि नव्यधर्मप्रदीप नवविवेकदीपिका ले- कृपाराम गुरु जयराम । आश्रयदाता त्रिलोकचंद्र एवं कृष्णचंद्र 18 वीं शती के उत्तरार्ध में बंगाल के जमीनदार थे।
नामान्तर
नवमालिका (नाटिका) ले- विश्वेश्वर पाण्डेय। समयअठारहवीं शती । पटिया (जिल्हा अल्मोडा उ. प्र.) के निवासी । कथासार- नायिका नवमालिका का कोई राक्षस अपहरण करता है। प्रभाकर नामक तपस्वी उसे मुक्त करा कर अवस् के राजा विजयसेन को सौंपता है। दोनों में प्रीति होती है। प्रतिनायिका महारानी चंद्रलेखा क्रुद्ध होकर नवमालिका को उसकी सखी चंद्रिका के साथ कारागार में डालती है। कुछ दिन पश्चात् अनंगराज हिरण्यवर्मा का मंत्री आकर बताता है कि उनकी राजकन्या अपहृत हो गयी थी। बाद में ज्ञात होता
154 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
है कि नवमालिका ही वह राजकुमारी थी। ज्योतिषियों के मतानुसार उसका पति सार्वभौम सम्राट होने वाला है। तब महारानी चंद्रलेखा स्वयं उसका विवाह नायक से कराती है। - प्रह्लादभट्ट । शैवधर्मशास्त्र से संगृहीत 900
नवरत्नमाला
श्लोक | नवरत्नरसविलास ले- श्रीनिवास । नवरसमंजरी ले- नरहरि । बीजापुर के सुलतान इब्राहिम (ई. 16-17 वीं शती) के आश्रय में नरहरि ने इस साहित्य शास्त्रीय ग्रंथ की रचना की। नरहरि ने प्रथम अध्याय के 172 श्लोकों में अपने विद्याप्रेमी तथा संगीतज्ञ आश्रयदाता की स्तुति की है। नायक-नायिका के प्रकार, रस-भाव आदि विषयों का प्रतिपादन इस ग्रंथ के छह उल्लासों में किया हुआ है उस्मानिया विश्वविद्यालय (हैदराबाद) के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. प्रमोद गणेश लाले ने इस ग्रंथ की एकमात्र पांडुलिपि का संशोधन कर, सन 1979 में इसका प्रकाशन किया है। नवरससामंजस्यम् ले रूपलाल कपूर । प्रस्तुत महाकाव्य शास्त्रीय लक्षणानुसार नहीं है। इसमें एक प्रधान नायक नहीं है। लेखक ने संस्कृत हिंदी उर्दू पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में भी रचनाएं की हैं। प्रस्तुत काव्य में कुछ अप्रसिद्ध छंदों का भी प्रयोग किया है। ई. 1981 में मुद्रित ।
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हरिदीक्षित - पुत्र कृत । श्लोक - 150
ले- वरदराज ।
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नवसाहसाङ्क-चरितम्- कवि- पद्मगुप्त "परिमल" । एक ऐतिहासिक महाकाव्य । इसकी रचना 1005 ई. के आसपास हुई थी। इस महाकाव्य में धारा- नरेश भोजराज के पिता सिंधुराज या नवसाहसाङ्क का शशिप्रभा नामक राजकुमारी से विवाह 18 सगों में वर्णित है। इसके 12 वे सर्ग में सिंधुराज के समस्त पूर्वपुरुषों (परमारवंशी राजाओं) का काल-क्रम से वर्णन है, जिसकी सत्यता की पुष्टि शिलालेखों से होती है। इसमें कालिदास की रससिद्ध सुकुमार मार्ग की पद्धति अपनायी गयी है। यह इतिहास व काव्य दोनों ही दृष्टियों से समान रूप से उपयोगी ग्रंथ है। इसका हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन चौखंया विद्याभवन से हो चुका है।
नवात्रभाष्यनिर्णयम्ले गौरीनाथ चक्रवर्ती।
नवार्णचण्डीपंचांगम् ले रुद्रयामल तंत्रातंर्गत । श्लोक - 892 ।
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