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देवीशतकम् - कवि- विठ्ठलदेवुनि सुंदरशर्मा। हैदराबाद, पीठाचार्य चन्द्रशेखर सरस्वती की स्तुत्यर्थ 5 स्तोत्र काव्य 1) आंध्र के निवासी।
देशिकेन्द्रस्तवांजलि (29 श्लोक) 2) विजयवादित्रम् (18 2) ले. आनंदवर्धनाचार्य। ई. 9 वीं शती। पिता- नोण । श्लोक) 3) धर्मचक्रानुशासनम् (24 श्लोक) 4) आचार्य (सुप्रसिद्ध साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ- ध्वन्यालोक के लेखक) पंचरत्नम् और गुरुराजाष्टकम् समाविष्ट हैं। देवी-सप्तपारायणकम् - देवी- ईश्वर संवादरूप। इसमें देवी देशोपदेश - ले. क्षेमेन्द्र। यह एक व्यंग काव्य है। इसमें के सप्तपारायण स्तोत्र का अथवा देवी के स्तोत्र पारायण के कवि ने काश्मीरी समाज व शासक वर्ग का रंगीला व सात प्रकारों का प्रतिपादन है।
प्रभावशाली व्यंग चित्र प्रस्तुत किया है। इसका प्रकाशन 1924 देवीस्तव - ले. वाक्तोलनारायण मेनन । केरलनिवासी।
ई. में काश्मीर संस्कृत सीरीज (संख्या 40) में श्रीनगर से देव्यागमनम् (काव्य) - ले. गोलोकनाथ वंद्योपाध्याय। ई.
हो चुका है। इसमें 8 उपदेश हैं। प्रथम में दुर्जन व द्वितीय 20 वीं शती।
में कदर्य (कृपण ) का तथ्यपूर्ण वर्णन है। तृतीय परिच्छेद
में वेश्या के विचित्र चरित्र का वर्णन व चतुर्थ में कुट्टनी की देव्यायशतकम् - ले. रमापति ।
काली करतूतों की चर्चा की गई है। पंचम में विट व षष्ट देशदीपम् (रूपक) - ले. डॉ. रमा चौधुरी। लेखिका के
में गौडदेशीय छात्रों का भंडाफोड किया गया है। सप्तम पति डॉ. यतीन्द्रविमल चौधुरी के जन्मोत्सव पर अभिनीत ।
उपदेश में किसी वृद्ध सेठ की युवती स्त्री का वर्णन कर, नेता, कार्यस्थली तथा कथावस्तु नूतन प्रवृत्ति की संगीत बहुल
मनोरंजन के साधन जुटाए गए हैं। अंतिम उपदेश में वैद्य, है। दृश्य. (अंक) संख्या नौ। कतिपय पात्रों के नाम पशुपक्षियों
भट्ट, कवि,बनिया, गुरु, कायस्थ, आदि पात्रों का व्यंग चित्र के नाम जैसे हैं। कतिपय पात्र विदूषक समान हैं। इसमें
उपस्थित किया गया है। इसका द्वितीय प्रकाशन हिंदी अनुवाद देश-रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग करने वाले वीरों का चरित्र चित्रित
सहित चौखंबा प्रकाशन द्वारा हो चुका है। हुआ है। कथासार - ब्रह्मबल तथा आगधना नामक
देहली-महोत्सव - कवि श्रीनिवास विद्यालंकार । विषय- ई. ब्राह्मणदम्पती का पुत्र चम्पकवदन अपने मित्र अभ्रप्रतिम के
1912 में दिल्ली में पंचम जॉर्ज के सन्मानार्थ संपन्न महोत्सव साथ देशरक्षा का व्रत लेता है चम्पकवदन पदाति तथा
का वर्णन। अभ्रप्रतिम वायुसेना में सैनिक है। चम्पकवदन की बहन
दैवज्ञबांधव - ले. हरपति । ई. 15 वीं शती । पिता- विद्यापति । पंकजनयना भी घायल सैनिकों की शुश्रूषा करने युद्धक्षेत्र जाती
दैवज्ञमनोहर - ले. लक्ष्मीधर । विषय- ज्योतिषशास्त्र । रचना है। चम्पकवदन घायल होता है। पंकजनयना तथा अभ्रप्रतिम
1500 ई. के पूर्व। सेवा करते हैं परंतु वह देशहितार्थ हुतात्मा होता है।
दैववल्लभा - ले. नीलकंठ (श्रीपति) ई. 16 वीं शती। देशबन्धुःदेशप्रियः (नाटक) - ले. यतीन्द्रविमल चौधरी।
विषय- ज्योतिषशास्त्र । विषय- देशबन्धु चित्तरंजन दास की गौरव गाथा । अंकसंख्या नौ।
दैवतब्राह्मणम् - सामवेद का पांचवां ब्राह्मण। मन्त्रों के ध्रुवपद देशस्वातंत्र्य समरकाले राष्ट्रधर्मः - ले. का.र. वैशम्पायन ।
पर से सामों का दैवतानुसार वर्गीकरण करना इस ब्राह्मण का सन 1970 में "शारदा' में प्रकाशित । दृश्यसंख्या दो। कथानक
प्रमुख विषय है। इसके तीन खंड तथा 62 कंडिकाएं हैं। शिक्षाप्रद है। कथासार - ब्राह्मण देवालय जाते समय किसी
प्रथम खंड की 26 कंडिकाओं में विभिन्न देवताओं के वर्णन राष्ट्रसेवक के छू जाने से क्रोधित होता है क्यों कि वह काँग्रेस
हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक देवता के साम के ध्रुवपद किस भक्तों को भ्रष्टाचारी मानता है। राष्ट्रसेवक उसे समझाकर उसके
किस प्रकार के होते हैं, इसका विवेचन भी है। दूसरे खंड साथ देवालय जाता है। दूसरे दृश्य में गोसेवक, चाय-निषेधक,
में ग्यारह कंडिकाएं हैं जिनमें देवता और उनके वर्णों का भाषा-शुद्धिप्रचारक, समाजसुधारक, साम्यवादी और
विशेष वर्णन है। तीसरे खंड मे पच्चीस कंडिकाएं हैं। उनमे स्त्री-स्वातन्त्रवादी एकत्रित होकर कोलाहल करते हैं। देवालय
वैदिक छंदों की काल्पनिक व्युत्पत्ति दी गई है। यास्क ने यह से ब्राह्मण तथा राष्ट्रसेवक आकर सभी को राष्ट्रधर्म-पालन हेतु
भाग निरुक्त में उद्धृत किया है। भाषा- शास्त्र की दृष्टि से प्रोत्साहित करते हैं।
यह भाग महत्त्वपूर्ण है। अंत में गायत्री मंत्र का गान साम देशावलिविवृति - ले. जगमोहन। ई. 17 वीं शती। चौहान
में कैसा होना चाहिये इसका विवेचन है। इसका संपादन वंशीय बेजल राजा के आदेश पर कवि ने यह रचना की।
जीवानंद विद्यासागर द्वारा, सन 1881 में कलकत्ता मे हुआ। इसके समकालीन 56 राजाओं का वर्णन, संक्षिप्त ऐतिहासिक
देवोपालम्भ - ले. मुडुम्बी नरसिंहाचार्य । पार्श्वभूमि के साथ होने से तत्कालीन इतिहास का प्रामाणिक
दोलागीतानि - ले. प्रा. सुब्रह्मण्य सूरि । संदर्भ ग्रंथ माना जा सकता है।
दोलापंचीककम् - ले. एस.के, रामनाथ शास्त्री। हास्यप्रधान देशिकेन्द्रस्तवांजलि - ले. महालिंगशास्त्री । इसमें कांची कामकोटी
नाटक।
144 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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