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ज्ञानामृतरसायनम् - ले. गोरक्षणाथ। इस शाक्ततन्त्र विषयक ग्रंथ पर सदानन्द कृत टीका है। ज्ञानामृतसारसंहिता - 1) नारद पंचरात्र पर आधारित ग्रंथ।। इस ग्रंथ में यह बताया गया है कि श्रीकृष्ण की महत्ता तथा उनकी पूजाविधि जानने के लिये नारदजी भगवान् शंकर के पास जाते हैं। कैलास पर्वत पर सात द्वारों वाले शंकर भवन में वे प्रवेश करते हैं। इन द्वारों पर वृंदावन, यमुना, गोपियों के वस्त्र लेकर कदंब वृक्ष पर बैठे श्रीकृष्ण, नग्नावस्था में जल में स्नान कर बाहर निकली गोपियाँ, कालियादमन, गोवर्धन धारण, श्रीकृष्ण का मथुरागमन, गोपियों का विलाप आदि चित्र अंकित थे। इस संहिता में कृष्ण के निवासस्थान गोलोक के वर्णन के साथ ही कछ मंत्र भी दिये गये हैं जिनका जप करने से स्वर्गप्राप्ति होने की बात कही गयी है। इस ग्रंथ के सिद्धान्त आचार्य वल्लभ के पुष्टिमार्गी सिद्धान्तों से मिलते जुलते हैं अतः यह अनुमान निकाला गया है कि इसकी रचना ई. 16 वीं शताब्दी के पूर्व नहीं हुई होगी।
2) नारद-पंचरात्र का एक भाग। विषय- कृष्णस्तवराज, कृष्णस्त्रोत्र, कृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, गोपालस्तोत्र, त्रैलोक्यमंगलकवच, राधाकवच इ. ज्ञानार्णव (नित्यातन्त्र) - (1) देवी-ईश्वर संवादरूप। पटल23 | विषय- पटल 1 से 5 तक बाला के न्यास, ध्यान, पूजन, यजन ई., 6 से 8 तक पूर्व, द्वितीय तथा पश्चिम सिंहासन का विधान, 9 में पंचम सिंहासन का विधान, 10 से 14 वें तक त्रिपुरसुन्दरी के द्वादश भेद, षोडशी श्रीविद्या के न्यास, मुद्रा, पूजनप्रयोग इ. 15 वें से 23 वें पटल तक रत्नपुष्पा बीज सन्धान, त्रिपुरा के जप, होम, द्वितीय योगज्ञान, द्वितीय यागदीक्षा इ.। (2) ले. शुभचन्द्र। जैनाचार्य। ई. 11 वीं शती। ज्ञानेश्वरचरितम्- ले.- क्षमादेवी राव। सन्त ज्ञानेश्वर का चरित्र वर्णन क्षमादेवीकृत अंग्रेजी अनुवादसहित प्रकाशन । ज्ञानोदय - महेश्वर-विनायक संवादरूप। पटल 8। श्लोक500। विषय- हरिहर-पूजाप्रकार। ज्ञापकसमुच्चय - ले. पुरुषोत्तम देव। ई. 12 वीं अथवा 13 वीं शती। विषय- पाणिनीय अष्टाध्यायी के ज्ञापक सत्रों का विवेचन। ज्युबिलीगानम् (संकलित)- महारानी व्हिक्टोरिया के हीरक महोत्सव प्रसंग पर उत्तर कनाडा जिले के कवियों की रचनाओं का यह संग्रह है। ज्येष्ठ जिनवरकथा - ले.- श्रुतसागरसूरि । जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। ज्येष्ठजिनवरपूजा - ले. ब्रह्मजिनदास। जैनाचार्य। ई. 15-16 वीं शती।
ज्योत्स्रा - 1) गोपीनाथ भट्टकृत हिरण्यकेशि श्रौतसूत्र की टीका। 2) ब्रह्मानंद कृत हठयोग-प्रदीपिका की टीका। जोतिषसिद्धान्तसार - ले. मथुरानाथ । ज्योतिषाचार्याशयवर्णनम् - ले-नृसिंह (बापूदेव) ई. 19 वीं शती। ज्योतिर्गणितम् - ले-व्यंकटेश बापूजी केतकर । ज्योतिष्मती - (1) सन् 1939 में वाराणसी से महादेवशास्त्री तथा बलदेवप्रसाद मिश्र के सम्पादकत्व में इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह हास्यरस प्रधान पत्रिका थी। इसके कुछ अंकों में अश्लील रचनाएं भी प्रकाशित हुईं। इसके राजनीति विषयक निबन्धों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यह पत्रिका लगभग ढाई वर्ष तक प्रकाशित हो सकी। (2) ले-ईश्वरोपाध्याय । ई.8 वीं शती। ज्योतिःसारोद्धार - ले-हर्षकीर्ति। ई. 17 वीं शती। ज्योतिःसारसमुच्चय - ले-नंदपंडित। ई. 16-17 वीं शती। ज्योतिःसिद्धांतसार - ले-मथुरानाथ। पटना (बिहार) निवासी । ई. 19 वीं शती। ज्वरशान्ति - गर्गसंहिता में उक्त । श्लोक-38 | विषय-शरीरोत्पन्न, आमज्वर, पित्तज्वर, श्लेष्मज्वर इ. सब ज्वरों से निवृत्तिपूर्वक शीघ्र आरोग्य लाभ के लिए ज्वर के अधिपति महारुद्र के प्रीत्यर्थ गर्गसंहिता में उक्त नवग्रहयाग सहित ज्वरशान्ति । ज्वालमालिनीकल्प - ले-इन्द्रनन्दि । जैनाचार्य । विषय-मंत्रशास्त्र। ई. 10 वीं शती। 10 परिच्छेद और 372 पद्म । ज्वालापटल - रुद्रयामलान्तर्गत। विषय-ज्वालामुखी देवी के पूजा की पद्धति। ज्वालामुखीपंचांग - रूद्रयामलान्तर्गत । श्लोक-232 । ज्वालासहस्रनाम - रूद्रयामलान्तर्गत शिव-पार्वती संवादरूप । विषय-देवी ज्वालामुखी के एक हजार नाम। ज्वालिनीकल्पः - ले-मल्लिषेण । जैनाचार्य । ई. 11 वीं शती। झंकारकरवीरतन्त्रम् - श्लोक-80001 विषय-चण्डकपालिनी की पूजा। झंझावृत्त - ले-वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य (श. 20)। शेक्स्पीयर लिखित टेम्पेस्ट पर आधारित रूपक। टीकासर्वस्वम् - ले-सर्वानन्द वंद्यघटीय । रचनाकाल सन् 1159 ईसवी। यह अमरकोश की टीका है। टिप्पणी (अनर्धराघव पर टीका) - ले-पूर्णसरस्वती। ई. 14 वीं शती। टिप्पणी (विवृति) - ले-विट्ठलनाथजी । भागवत की शुद्धाद्वैती व्याख्याओं की परंपरा, वल्लभाचार्यजी द्वारा "सुबोधिनी' नामक टीका से प्रारंभ होती है। उसके पश्चात् रचित व्याख्याओं में कुछ तो स्वतंत्ररूपेण टीकायें हैं और कुछ सुबोधिनी के गूढ
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 117
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