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ज्ञानदीपविमर्शिनी रची। पटल- 25 | विषय- गुरुध्यान, मन्त्रध्यान, स्नानादि, द्वारपालार्चन, चक्रोद्धार, अर्कसाधन, याग, मन्त्रोद्धार, न्यास, अन्तास, पीठार्चन, सामान्यार्घपात्रविधि, ध्यानपद्धति, चक्रार्चन, पूजा, जप, होम, स्तोत्र, उशनारोपण, काम्यसाधन, दीक्षा और पारम्पर्यचर्या । इस ग्रन्थ का मुध्य आधार वामकेश्वरतन्त्र
जैमिनीसूत्रभाष्यम् - ले. कुमारिल भट्ट। ई. 7 वीं शती। विषय- मीमांसादर्शन। जैमिनीय शाखा (सामवेदीय) - जैमिनीय शाखा के संहिता, ब्राह्मण, श्रौत सूत्र और गृह्य सूत्र सभी अंश मिलते हैं। जैमिनीय गानों की सामसंख्या निम्नलिखित है : ग्रामगेय-गान1232। आरण्यगान- 291 । ऊहगान- 1802। ऊह्य रहस्यगान356। जैमिनीय सामगानों की कुलसंख्या 3681 है। अर्थात् कौथुम शाखा की अपेक्षा जैमिनीय शाखा के गानों में 959 साम अधिक हैं। जैमिनी ब्राह्मण को तलवकार ब्राह्मण भी कहा जाता है। जैमिनी शाखा का ब्राह्मण वर्ग तामिलनाडू के तिन्नेवल्ली जिला में एवं कर्नाटक में भी मिलता है। जोगविहारकल्पद्रुम - ले. राधाकृष्णजी। ज्ञानकलिका - ले. मत्स्येन्द्रनाथ। कौलमत का ग्रंथ । ज्ञानकारिका - पटल-3, श्लोक- 225 । यह शैव तन्त्र है। ज्ञानचन्द्रोदय - ले. गोवर्धन तांत्रिक। श्लोक 1600। यह शाक्त तन्त्र है। ज्ञानचन्द्रोदयम् (लाक्षणिक नाटक) - ले. पद्मसुन्दर। ई. 16 वीं शती। ज्ञानतन्त्रम् - 1) महादेव-नारद संवादरूप। परिच्छेदों के अनुसार इसमें प्रतिपादित विषय- 1) गुरुपरीक्षा, 2) चराचर विषयों के ज्ञान का उपाय, 3) मुक्ति और नर्क के अधिकारी, 4) पूजा, होम, बलिदान इ. प्रतिपादन, 5) मन्त्रों की उत्पत्ति का निरूपण, 6) मन्त्र-शोधन की विधि, 7) मन्त्रशापोद्धार, पूजाप्रकार ई. 8) किस मन्त्र के प्रभाव से नागराज शेष पृथ्वी धारण करते हैं, इस प्रश्न का उत्तर, और 9) मन्त्रों का गन्धर्वशापमोचन।
2) यह पार्वती-ईश्वर संवादरूप। विषय- तत्त्वज्ञान का स्वरूप और उसकी प्राप्ति के उपाय, एकाक्षर आदि मन्त्रों का कथन, मन्त्रोद्धार साधन, महाविद्याओं के स्वरूप, उनके अंगसंस्थानों का कथन, बाल मन्त्र के अंगों का निर्णय, भुवनेश्वरी विद्या का निरूपण, उनके मन्त्रों के अंगों का निरूपण, त्रिवर्गसाधनी-विद्या का निर्देश त्रिपुराविद्या का प्रतिपादन, अन्नपूर्णा, महात्रिपुरसुन्दरी तथा काली के मंत्रांगों का निर्णय, गुरु-निरूपण, मंत्रसिद्धि के उपाय इ. ज्ञानतिलक (नामान्तर- कालज्ञानतिलक) - शिव-कार्तिकेय संवादरूप पटल- 8। श्लोक 199 | विषय- परम ज्ञान का प्रतिपादन। ज्ञानदीपक - 1) ले. विद्यानन्दनाथ (देव) । ज्ञानदीप-विमर्शिनी का एक अंश। विषय- त्रिपुरसुन्दरी की पूजाविधि। ज्ञानदीपक - 2) ब्रह्मदेव। जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। ज्ञानदीपविमर्शिनी - ले. परमहंस विद्यानन्दनाथ देव। उन्होंने वामकेश्वरानाय उड्डीशरूप महासागर के आधार पर यह
ज्ञानमार्जनतन्त्रम्- उमा-महेश्वर संवादरूप। विषय- ब्रह्मज्ञान का उपाय, अठारह विद्याओं का वर्णन, और शांकरी विद्या की गुप्तता का प्रतिपादन, अध्यात्मविद्या का स्वरूप निर्देश, त्रिदण्डी आदि का सिद्धान्त कथन, शारीर तत्त्व-वर्णन, शरीर में चंद्र, सूर्य इ. का क्रमशः स्थान निरूपण, आहार, निद्रा सुषुप्ति के कारणों में शिव और शक्ति के स्वरूप का निर्देश, षट्चक्र, निरूपण, त्रिगुण, त्रिदेव इत्यादि का तत्त्व कथन। ज्ञानयज्ञ • तैत्तिरीय संहिता पर भाष्य। ले.- भास्कर भट्ट। ई. 15 वीं शती। ज्ञानयाथार्थ्यवाद - ले. अनंतार्य। ई. 16 वीं शती। ज्ञानवर्धिनी - सन 1959 में लखनऊ विश्वविद्यालय की ज्ञानवर्धिनी सभा द्वारा डॉ. सत्यव्रतसिंह के सम्पादकत्व में यह पत्रिका प्रकाशित हुई। इसमें विश्वविद्यालय के छात्रों एवं प्राध्यापकों की रचनाएं ही प्रकाशित हुई हैं। ज्ञानसंकुली (या ज्ञानसंकुलतन्त्रम्) - शाम्भवीतन्त्रान्तर्गत । उमा-महेश्वर संवादरूप। वेदान्तसार सर्वस्व का उपदेश। प्रणव की प्रशंसा, स्थूल देहादि के लक्षण ई. ज्ञानसिद्धान्तचन्द्रिका - मूल बर्कले का "प्रिन्सिपल्स ऑफ ह्यूमन नॉलेज" नामक ग्रंथ। उसका यह अनुवाद काशी के किसी अप्रसिद्ध पण्डित ने किया है। ज्ञानसिद्धि - ले. इन्द्रभूति । बौद्ध पंडित। ज्ञानसूर्योदयम् (नाटक) - ले. वादिचन्द्रसूरि । ई. 16 वीं शती । गुजरात के कधूक नगर में सन 1582 ई. में रचना। कृष्णमिश्र के "प्रबोधचन्द्रोदय' तथा वेङ्कटनाथ के "संकल्पसूर्योदय" की परवर्ती कडी। बौद्धों तथा श्वेताम्बर जैनों का उपहास इस लाक्षणिक नाटक में किया है। प्रारंभ में प्रस्तावना के स्थान पर "उत्थानिका है। ज्ञानसेनस्य चित्रापीड महोदयं प्रति लेख:- मूल "डॉ. जॉनसन्स लेटर दू लॉर्ड चेस्टर फील्ड " नामक ग्रंथ का अनुवाद महालिंगशास्त्री ने किया है। ज्ञानाङ्कुरचम्पू - ले. लक्ष्मीनृसिंह । ज्ञानानन्दतरंगिणी - ले. शिरोमणि। श्लोक 2000। परिच्छेद - 8। विषय- गुरुशिष्यलक्षण, अकडमचक्र, आसनों के भेद, मालासंस्कार, पुरश्चरणविधि, योनिमुद्राविधान, महाविद्याओं का विवेचन, भगवतीतत्त्व-निर्णय तथा दुर्गोत्सव में प्रमाण, सर्वतोभद्र, मण्डल, दीक्षाविधि, सामान्यपूजाविधि, गायत्री आदि की पूजाविधि, मन्त्रोद्धार इ.
116/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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