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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भाषा प्रवाहपूर्ण व प्रसादमयी है और श्रृंगार के स्थान पर शांत रस व धार्मिकता का वातावरण निर्माण किया गया है । गुरु की कृपा दृष्टि को ही कवि सर्वस्व मानता है। चैतन्यगिरिपद्धति ले चैतन्यगिरि । श्लोक www.kobatirth.org - विषय- धर्मशास्त्र । चैतन्यकल्प ब्रह्मयामलान्तर्गत पार्वती ईश्वर संवादरूप । श्लोक 157 | अध्याय - 7 | विषय -गौरांगदेव का जन्म, गौरांगदेव का माहाल्य, गौरांगदेव मंत्रोद्धार यमुना स्तुति, गौरांग पूजा वर्णन इत्यादि । 300 I - चैतन्यचरितम् ले- कालीहरदास बसु । ई. 1928 - 29 में संस्कृत साहित्य पत्रिका में प्रकाशित चैतन्यचरितामृतम् (महाकाव्य)ले कवि कर्णपूर। कांचनपाडा (बंगाल) के निवासी। 16 वीं शती । चैतन्य महाप्रभु की जीवनी पर रचित महाकाव्य । चैतन्यचन्द्रामृतम् (1 ) ले प्रबोधानन्द सरस्वती । श. 16 मध्य । विषय- महाप्रभु चैतन्य की स्तुति । (2) ले म.म. कृष्णकाल विद्यावागीश। सन् 1810। चैतन्य चन्द्रोदयले कवि कर्णपूर रचनाकाल सन् 1572 । महानाटक। अंकसंख्या दस । ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण । महाप्रभु चैतन्य का चरित्र वर्णित है। उडीसा के महाराजा गजपति प्रतापरुद्र की प्रेरणा से इस नाटक का अभिनय हुआ था । चैतन्यचन्द्रोदयम् - एक प्रतीक नाटक । लेखक - श्री. परमानंद । ई. 16 वीं शती। नाटक का प्रतिज्ञात विषय है चैतन्य महाप्रभु का चरित्र, किंतु इसमें भक्ति, वैराग्य, कलि, अधर्म आदि अमूर्त पात्रों के साथ, चैतन्य व उनके शिष्यों के रूप में मूर्त पात्र भी प्रस्तुत किये गए हैं। चैतन्य - चैतन्यम् - ले. रमा चौधुरी। डॉ. यतीन्द्रविमल चौधुरी की धर्मपत्नी । चैतन्य महाप्रभु का पांच दृश्यों में चरित्र वर्णन । वैयज्ञ ( रूपक) ले- वैद्यनाथ वाचस्पति भट्टाचार्य ई. 19 वीं शती । चौलचंपू ले विरूपाक्ष कवि समय संभवतः 17 वीं शती । । । इस चंपू का प्रकाशन मद्रास गवर्नमेंट ओरियंटल सीरीज व सरस्वती महल सीरीज तंजौर से हो चुका है। इस चंपू के वर्ण्य विषय इस प्रकार हैं: खर्वट ग्राम वर्णन, कुलोत्तुङ्गवर्णन, कुलोत्तुङ् की शिवभक्ति, वर्षागम, शिवदर्शन, शिव द्वारा कुलोलुङ्ग को राज्यदान, कुबेरागमन, तंजासुर की कथा, कुबेर की प्रेरणा से कुलोत्तुङ्ग का राज्यग्रहण, राज्य का वर्णन, पुत्रजन्म- महोत्सव, राजकुमार को अनुशासन, कुमार चोलदेव का विवाह, पट्टाभिषेक, अनेक वर्ष तक कुलोत्तुङ्ग का राज्य करने के पश्चात् सायुज्यप्राप्ति व देवचोल के शासन करने की सूचना । इस चंपू में मुख्यतः शिवभक्ति का वर्णन है। चोलभाण - ले-अम्मल आचार्य। ई. 17 वीं शती । पिता घटित सुदर्शनाचार्य । चोरचत्वारिशी कथा अलिबाबा और चालीस चोर इस प्रसिद्ध अरबी कथा का अनुवाद। अनुवादक गोविन्द कृष्ण मोडक, पुणे- निवासी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोर-चातुरीयम् (प्रहसन ) - ले-जीव न्यायतीर्थ । जन्म-1894 । 1 संस्कृत साहित्य परिषत् पत्रिका में सन् 1951 में प्रकाशित। चौर्य कला के विविध पक्षों का हास्योत्पादक परिचय | चौरपंचाशती ले भारतचन्द्र व ई. 18 वीं शती सौरपंचाशिका 50 श्लोकों का लघु काव्य । ले-बिल्हण । काश्मीरी कवि । उत्कृष्ट काव्य का उदाहरण । कुछ पाण्डुलिपियों की प्रस्तुति में यह कथा मिलती है कि वैरसिंह राजा की कन्या चन्द्रलेखा (शशिकला) कवि की शिष्या तथा प्रेयसी थी । गुप्त रूप से प्रेम प्रकरण बढता रहा। अन्त में राजा को पता चलने पर कवि को मृत्युदण्ड घोषित होता है । राजकन्या के साथ व्यतीत क्षण तथा उपर्युक्त आनन्द की स्मृति में यह रचना हुई । राजा को ज्ञात होने पर राजकन्या से विवाह संपन्न । इस कथा में ऐतिह्य का अंश नहीं है। प्रत्येक श्लोक "अद्यापि तां" से प्रारम्भ तथा "स्मरामि" से अन्त होता है। इस काव्य पर गणपति शर्मा, रामोपाध्याय और बसवेश्वर की टीकाएं है। छत्रपति शिवराजः ले- श्रीराम भिकाजी वेलणकर । "देववाणीमन्दिर" तथा भारतीय विद्याभवन से प्रकाशित रचना सन् 1974 में। अंकसंख्या- पांच। सन् 1662 की विजापुर की विजय से लेकर शिवाजी के राज्याभिषेक (1674) तक की घटनाएं प्रस्तुत । कुल पात्र 25 सन्त रामदास, शे मुहम्मद आदि के गीतों का संस्कृतीकरण किया है । कतिपय नये छन्दों का प्रयोग इसमें हुआ है। है । छत्रपति शिवाजी महाराज चरित ले श्रीपादशास्त्री हसूरकर । इंदौर निवासी । भारतरत्नमाला का द्वितीय पुष्प । प्रासादिक गद्य शैली में शिवाजी महाराज का यह चरित्र लिखा हुआ छत्रपति साम्राज्यम् (नाटक) से मूलशंकर माणिकलाल याज्ञिक 1886 1965 ई. । लेखक की अंतिम रचना । अंकसंख्या दस | छत्रपति शिवाजी के सन् 1646-1674 तक के शासनकाल की घटनाओं पर आधारित। अंतिम अंक में राज्याभिषेक महोत्सव | - For Private and Personal Use Only संक्षिप्त कथा इस नाटक में छत्रपति शिवाजी के शौर्यपूर्ण कार्यों का मुगलों के विरुद्ध संघर्ष और स्वराज्य की स्थापना करने की घटनाओं का वर्णन है। नाटक के प्रथम अंक में शिवाजी भारत में धर्मराज्य की स्थापना करने का प्रण करते हैं। तोरण दुर्ग का दुर्गपाल तोरणदुर्ग शिवाजी को सौंप दोता है। शिवाजी चाकण और कोंडाना दुर्ग पर अधिकार करने के लिए अपनी सेना को भेजते हैं और स्वयं पुरंदर दुर्गं को अधीन करने के लिए जाते हैं द्वितीय अंक में शिवाजी राजमाची दुर्ग के जीर्णमन्दिर की खुदाई से प्राप्त धन के द्वारा संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 109 -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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