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चिन्तामणि - ले-यज्ञवर्मा । शाकटायन व्याकरण की लघुवृत्ति। काशी में प्रकाशित लगभग-6000 श्लोक। यह अमोघा वृत्ति का संक्षेप है। प्रस्तुत चिन्तामणि वृत्ति पर मणिप्रकाशिका नाम की वृत्ति अजित सेनाचार्य ने लिखी है। चिन्तामणिकल्प - ले-दामोदर पण्डित। श्लोक-500। विषय-तंत्रशास्त्र। चिन्तामणितन्त्रम् - (1) हर-पार्वती संवाद रूप। विषय-योनिबीजरहस्य, कुण्डलिनीध्यान, योनिकवच, आधारचक्र के क्रम से कवच-पाठ का फल, योनिकवच धारण का फल षट्चक्रों के क्रम से मन्त्रार्थ कथन, षड्दलों का वर्णन, मुद्रामन्त्रार्थ निरूपण और चैतन्यरहस्य। (2) श्लोक-264 ।
अध्याय 71 विषय-षट्चक्रों में स्थित योनिरूप के चिन्तन की विधि, त्रैलोक्यमंगल कवच, योनिमुद्रा, मन्त्रार्थनिरूपण इत्यादि । चिंतामणि-प्रकाशिका - ले-अजितसेनाचार्य। विषय-यक्षसेन (यक्षवर्मा) रचित चिंतामणि नामक ग्रंथ पर टीका। चिन्तामणिविजयचम्पू - ले-शेष कवि। चिदानन्दकेलिविलास - ले-गौडपाद । देवीमाहात्म्य की टीका। चिदानन्दमन्दाकिनी - ले-कृष्णदेव । तांत्रिक दर्शन का प्रतिपादक ग्रंथ । विषय-महामोक्ष, जपानुष्ठान, भावनिरूपण, शारीर योगसाधन इत्यादि। चिद्गणचन्द्रिका - ले-कालिदास। चिदद्वैतक - ले-प्रधान वेंकप्पा। श्रीरामपुर के निवासी। चित्सुखी (अपरनाम-तत्त्वप्रदीपिका) - ले-चित्सुखाचार्य । ई. 12 वीं शती। अद्वैत वेदान्त का एक प्रमाणभूत ग्रंथ। चित्सूर्यालोकम् - (1) ले-मुडुम्बी वेङ्कटराम नरसिंहाचार्य । ई. 1848 से 1926 | विषय-सूर्यग्रहण की कथा। (2) ले-चिन्ना नरसिंह चालूँ। ई. 19 वीं शती।। चिल्ली - ले-नटमानव। ई. 17 वीं शती। श्लोक-3751 कामकलाविलास नामक ग्रंथ की व्याख्या। चिदविलास - (1) ले-संपूर्णानन्द, उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री। दर्शनविषयक लेखों का संस्कृत अनुवाद। (2) ले-पुण्यानन्द योगी। श्लोक-37। चिद्विलासस्तुति - ले-अमृतानन्दनाथ । चित्रकाव्यकौतुकम् - ले-रामरूप पाठक। इस ग्रंथ को 1967 का साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है।। चित्रचंपू - ले-विद्यालंकार बाणेश्वर भट्टाचार्य। काव्य निर्मिति 1744 ई. में। यह काव्य वर्धमाननरेश महाराज चित्रसेन के आदेश से लिखा गया था। इसमें यात्रा-प्रबंध व भक्ति-भावना का मिला हुआ रूप है। इसमें 294 पद्य व 131 गद्य चूर्णक हैं। इसमें कवि ने राजा के आदेश से मनोरम वन का वर्णन किया है। प्रस्तुत चंपूकाव्य का प्रकाशन कलकत्ता से हो चुका है।
चित्रबन्धरामायणम् - कवि-वेङ्कटमखी । ई. 17 वीं शती। चित्रमंजूषा - ले-गंगाधर शास्त्री मंगरूळकर । नागपुर निवासी। चित्रयज्ञम् (निवेदनप्रधान नाटक) - ले-बैद्यनाथ वाचस्पति भट्टाचार्य। 18 वीं शती उत्तरार्ध। गोविन्द देव की यात्रा के अवसर पर प्रथम अभिनय। अंकसंख्या- पांच। किरतनिया तत्त्व से युक्त। श्लेषात्मक पदों का प्रयोग। संरभात्मक वातावरण में संवाद की चटुलता। निवेदन प्रायः पद्यात्मक। प्रथम अंक में रंगमंच पर एकसाथ बीस पात्र आते हैं। कथासार - प्रजापति दक्ष के यज्ञानुष्ठान में शिव को अनुपस्थित देख दधीचि उसकी निर्भर्त्सना करते हैं। दक्ष उन्हें अपमानित कर भगाता है। यह देख देवता और नारदादि ऋषि सभात्याग करते हैं। नारद यह वार्ता शिव को देते हैं। सती पिता के घर से यज्ञ का समाचार सुन निकल गयी। शिव उसके पीछे नन्दी को भेजते हैं। दक्ष शिव की निन्दा करते हैं। यह सुन सती यज्ञकुण्ड में आत्मदाह करती है। उसी समय नारद बताते हैं कि शिव का क्रोध वीरभद्र के रूप में साकार हआ है। अन्त में यज्ञ विध्वस्त होता है। चित्रवाणी - मासिक पत्रिका। काशी से सन 1913 में प्रकाशित। रवीन्द्र काव्य के अनुवाद तथा कालीपद तर्काचार्य का महाकाव्य इसमें क्रमशः प्रकाशित हुए। चित्रभाषिका - ले-बाणेश्वर विद्यालंकार। बरद्वान के बंगाल राजा चित्रसेन की प्रेरणा से लिखित ग्रंथ। चिपिटक-चर्वणम् (प्रहसन) - ले-जीव न्यायतीर्थ । जन्म-1894। “रूपक-चक्रम्" में प्रकाशित । विषय-धनी किन्तु अत्यंत कृपण कपाली का हास्योत्पादक चित्रण । नायक-कपाली नायिका-रंगिणी। चिमनीशतकम् - ले-नीलकण्ठ। 106 श्लोक। विषय-अलीवर्दीखान की स्नुषा चिमनी का दयादेव शर्मा से प्रेमप्रकरण। चेतना क्वास्ते - ले-वंशगोपाल शास्त्री। चेतसिंहकल्पद्रम - ले-भवानीशंकर। विषय-धर्मशास्त्र । चेतोदूतम् - एक संदेशकाव्य। लेखक का नाम व रचनाकाल अज्ञात। इसमें किसी शिष्य द्वारा अपने गुरु के चरणों में उनकी कृपादृष्टि को प्रेयसी मान कर अपने चित्त को दूत बना कर भेजने का वर्णन है। गुरु की वंदना, उनके यश का वर्णन व उनकी नगरी का वर्णन किया गया है। अंत में गुरु की प्रसन्नता व शिष्य के संतोष का वर्णन है। इसमें कुल 129 श्लोक हैं और मंदाक्रांता वृत्त का प्रयोग किया गया है। चित्त को दूत बनाने के कारण इसका नाम "चेतोदूत" रखा गया है। इसकी रचना मेघदूत के श्लोकों की समस्यापूर्ति के रूप में की गई है। प्रस्तुत ग्रंथ का प्रकाशन ई. 1922 में जैन आत्माराम सभा भावनगर से हो चुका है। इसकी
108 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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