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स्त्री-धन, द्वादश प्रकार के पुत्र तथा वसीयत आदि ।
सर्वप्रथम डॉ. स्टेज्लर द्वारा 1876 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित। अंग्रेजी "सेक्रेड बुक्स ऑफ ईस्ट" भाग 2 में डॉ. बूल्हर द्वारा प्रकाशित। गौतमशाखा (सामवेदीय) - गौतमों की स्वतंत्र संहिता थी या नहीं इस विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। इस शाखा के गौतम धर्मसूत्र, गौतम पितृमेध सूत्र और गौतम शिक्षा ये ग्रन्थ उपलब्ध हैं। गौतमीतन्त्र (नामान्तर गौतमीयतन्त्र या गौतमीयमहातन्त्र) - यह वैष्णव तन्त्र होने पर भी इसमें शाक्त आचार के अनुसार पूजा आदि का प्रतिपादन है। पटलसंख्या-33 । गौर-गणेशोद्दीपिका - ले-कवि कर्णपूर। ई. 16 वीं शती। चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों के जन्मपूर्व अस्तित्व का कथानक इसमें है। गौरचन्द्र - ले-इन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय। ऐतिहासिक उपन्यास। गौरांगचम्पू - ले-रघुनन्दन गोस्वामी। (श. 18) चैतन्य महाप्रभु . की जीवनी पर आधारित बृहद् रचना । गौरांगलीलामृतम् - ले-विश्वनाथ चक्रवर्ती । ई. 17 वीं शती। गौरीकंचूलिका - श्लोक सं. 3301 विषय :- जडी-बूटियों के खोदने और उखाडने की तिथि, वार, नक्षत्र आदि के नियम, विशिष्ट नक्षत्रों में रोग होने पर उसके भोगकाल, साध्य, असाध्य आदि का वर्णन। दाद, प्रमेह, गण्डमाला आदि रोगों की विशेष चिकित्सा। शरीर से जरा को हटाने के लिए शेमर, चित्रक, निर्गुण्डी आदि का कल्प कहा गया है। गौरीकल्याणम् - ले-गोविन्दनाथ । गौरीचरित - कवि-वृन्दावन शुक्ल। गौरीडामरम् - पार्वती-ईश्वर संवादरूप। विषय-आकर्षण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि तांत्रिक कर्मों का वर्णन । गौरीदिगंबरम् (प्रहसन) - ले-शंकर मिश्र । ई. 15 वीं शती। गौरीपरिणय-चम्पू - (1) ले-चिन्न वेंकटसूरि ।
(2) ले-चक्रकवि। पिता-अम्बालोकनाथ । गौरीमायूरमाहात्म्य-चंपू - ले-अप्पा दीक्षित। मयूरवरम् के किल्लपुर के निवासी। समय-17-18 वीं शताब्दी। यह चंपू 5 तरंगों में विभक्त है और सूत तथा ऋषियों के वार्तालाप के रूप में रचित है। ग्रंथप्रदर्शिनी - सन् 1901 में विशाखापट्टम से इस पत्रिका का प्रकाशन पं.एस.पी.व्ही. रंगनाथ स्वामी के सम्पादकत्व में प्रारंभ हुआ। यह मासिक पत्रिका दो वर्षों तक चल पायी। इसमें कुछ प्राचीन और आधुनिक प्रबंध प्रकाशित हुए। ग्रन्थरत्नमाला - सन् 1887 में मुंबई से प्रकाशित इस मासिक पत्रिका में कुछ अर्वाचीन संस्कृत ग्रंथ प्रकाशित किये गये
जिनमें प्रकाशित उदारराघवम्, कुवलयाविलासम्, राघवपाण्डवीयम् काव्य और रतिमन्मथ नाटक आदि महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं। ग्रहयामलतन्त्रम् - हर-पार्वती संवादरूप। 18 पटल । नवग्रहपूजा विषयक तान्त्रिक ग्रंथ। विषय-क्षेत्रादि षड्वर्गदृष्टिफल, राशियों के शील, अष्टादश-विध अशनादि, पथ्यापथ्य, प्राणायाम, दश महामुद्रादि, समाधि, वास्तुग्रह, ग्रहचरितादि निर्णय, अक्षय कवच इत्यादि। ग्रहगणितचिन्तामणि - ले-मणिराम । ग्रहणाङ्कजालम् - ले-दिनकर । ग्रहलाघवम् - ले-गणेश दैवज्ञ । ई. 15 वीं शती। ग्रहविज्ञानसारिणी - ले-दिनकर। ग्रामगीतामृतम् - विदर्भ (महाराष्ट्र) के लोकप्रिय राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज (20 वीं शती) का ग्रामगीता नामक मराठी पद्य ग्रंथ महाराष्ट्र की ग्रामीण जनता का प्रिय धर्मग्रंथ है। हजारों लोग इस ग्रंथ का नित्य पारायण करते हैं। राष्ट्रसंत के अमृतोत्सव निमित्त सन् 1984 (अक्तूबर) में डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर ने इस 5 हजार पद्यों के मराठी ग्रंथ का 1870 अनुष्टुप् श्लोकों में सारानुवाद किया। ग्रामोद्धार के विषय में प्रायः सभी प्रकार के आवश्यक देशकालोचित विचार इस ग्रंथ में प्रतिपादित हुए हैं। ग्रामगीतामृत द्वारा समाजसुधार की आधुनिक विचारप्रणाली संस्कृत वाङ्मय में सविस्तर प्रविष्ट हुई है। प्रकाशक-अध्यात्मकेंद्र अड्याल टेकडी, जिला-चंद्रपुर, महाराष्ट्र। ग्रामज्योति - लेखिका-पंडिता क्षमाराव। विषय-आधुनिक सामाजिक कथाएं। ये कथाएं पद्यबद्ध हैं। ग्वालियर-संस्कृतग्रंथमाला - सन् 1936 में ग्वालियर से इस वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। इसमें कुल तीन सौ पृष्ठों में वेद, वेदांग, धर्म और दर्शन से संबंधित लेख और अप्रकाशित ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है। सदाशिव शास्त्री मुसलगांवकर इसके संपादक थे। घटकपर - कवि घटकर्पर के नाम से यह लघुकाव्य, यमकयुक्त शृंगारिक उत्कृष्ट रचना के कारण प्रसिद्ध है। विरहिणी नायिका प्रातःकालीन बादलों को अपनी अवस्था की सूचना दूर स्थित नायक को देने की बिनती करती है। यमक युक्त रहते हुये भी रचना बडी प्रासादिक तथा मधुर तथा रसिकों में आदृत है। घटकर्पर के टीकाकार - (1) अभिनवगुप्त, (2) भरतमल्लिक, (3) शंकर, (4) ताराचन्द्र, (5) जीवानन्द, (6) गोवर्धन, (7) कमलाकर, (8) कुचेलकवि, (9) बैद्यनाथ, (10) विन्ध्येश्वरीप्रसाद इत्यादि। मदन कवि कृत कृष्णलीला काव्य में घटकर्पर काव्य की श्लोक पंक्ति का समस्या रूप में प्रयोग है। घटकर्पर के एक श्लोक से मदन के चार श्लोक हुए और उनमें घटकर्पर का प्रत्येक पाद समस्या के रूप में आता
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 101
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