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हजार अनुष्टुभ श्लोक थे। गन्धहस्तिमहाभाष्य - ले- समन्तभद्र । जैनाचार्य । ई. प्रथम शती। गंधोत्तमनिर्णय - ले- गुरुसेवक। श्लोक 4001 गरुडपुराण - 18 पुराणों के क्रम में 17 वां पुराण। यह वैष्णव पुराण है, जिसका नामकरण विष्णु भगवान के वाहन गरुड के नाम पर किया गया है। इसमें स्वयं विष्णु ने गरुड को विश्व की सृष्टि का उपदेश दिया है। उक्त नामकरण का यही आधार है। यह हिन्दुओं का अत्यंत लोकप्रिय व पवित्र पुराण है, क्यों कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् श्राद्धकर्म के अवसर पर इसका श्रवण आवश्यक माना गया है। इसमें अनेक विषयों का समावेश है, अतः यह भी "अग्नि-पुराण" की भांति पौराणिक महाकोश माना जाता है। इसके दो विभाग हैं- पूर्व खंड व उत्तर खंड पूर्व खंड में अध्यायों की संख्या 229 और उत्तर खंड में 35 है। इसकी श्लोक संख्या 18 हजार मानी गई है पर मत्स्य पुराण, नारद पुराण व रिवा- माहात्म्य' में संख्या 19 हजार मानी गयी है किन्तु आज उपलब्ध पुराण में 7 हजार से कम श्लोकसंख्या है। कलकत्ता में प्रकाशित गरुड पुराण में 8800 श्लोक हैं। वैष्णव पुराण होने के कारण इसका मुख्य ध्यान विष्णुपूजा, वैष्णवव्रत, प्रायश्चित्त तथा तीर्थों के माहात्म्यवर्णन पर केंद्रित रहा है। इसमें पुराण विषयक सभी तथ्यों का समावेश है।
और शक्ति-पूजा के अतिरिक्त पंचदेवोपासना (विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य व गणेश) की विधि का भी उल्लेख है। इसमें रामायण, महाभारत व हरिवंश के प्रतिपाद्य विषयों की सूची है तथा सृष्टि- कर्म, ज्योतिष, शकुनविचार, सामूहिक शस्त्र, आयुर्वेद, छंद, व्याकरण, रत्नपरीक्षा व नीति के संबंध में भी विभिन्न अध्यायों में तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं। 'गरुड पुराण' में याज्ञवल्क्य धर्मशास्त्र के एक बडे भाग का भी समावेश है तथा एक अध्याय में पशु-चिकित्सा की विधि व नाना प्रकार के रोगों को हटाने के लिये विभिन्न प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है। इस पुराण में छंद-शास्त्र का 6 अध्यायों में विवेचन है और एक अध्याय में भगवद्गीता का भी सारांश दिया गया है। अध्याय 108 से 115 में राजनीति का विस्तार से विवेचन है तथा एक अध्याय में सांख्ययोग का निरूपण किया गया है। इसके 144 वें अध्याय में कृष्णलीला कही गई है तथा आचारकांड में श्रीकृष्ण की रुक्मिणी प्रभृति 8 पत्नियों का उल्लेख है, किन्तु उनमें राधा का नाम नहीं है। इसके उत्तर खंड में, (जिसे प्रेतकल्प कहा जाता है) मृत्यु के उपरान्त जीव की विविध गतियों का विस्तारपूर्वक उल्लेख है। व्रतकल्प में गर्भावस्था, नरक, यम, यम-नगर का मार्ग, प्रेतगणों का वासस्थान प्रेतलक्षण प्रेतयोनि से प्रेतों का स्वरूप, मनुष्यों की आयु, यमलोक का विस्तार, सपिंडीकरण का विधान, वृषोत्सर्ग विधान आदि विविध
पारलौकिक विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पुराण में गया- श्राद्ध का विशेष रूप से महत्त्व प्रदर्शित किया गया है। आधुनिक शोध-पण्डितों ने इस पुराण की रचना का समय नवम शती के लगभग माना है परंतु इसका संकलन जनमेजय के काल में माना जाता है। डॉ. हाजरा के अनुसार इसका उद्भव-स्थान मिथिला है। इसमें याज्ञवल्क्य स्मृति के अनेक कथन, कतिपय परिवर्तन व पाठांतर के साथ संग्रहीत हैं। इसमें 107 वें अध्याय में 'पराशर-स्मृति' का सार 381 श्लोंको में दिया गया है। गर्वपरिणति (नाटक) - ले. नंदलाल विद्याविनोद (सन् 1885 में संस्कृत चन्द्रिका में प्रकाशित)। अंक दृश्यों में विभाजित। नान्दी प्रस्तावना, अर्थोपक्षेपकादि का अभाव । भरतवाक्य छोड पूरा नाटक गद्य में। छोटे छोटे वाक्य । अलंकारों का विरल प्रयोग। नायक का चरित्र क्रमशः विकसित । नूतन संविधान यूरोपीय संस्कृति की विषमयता का दर्शन । पारिवारिक संबन्धों की सुंदरता का सफल संवर्धन। करुण तथा हास्य रस का संमिश्रण। कथासार- रामचन्द्र और कमला का पुत्र सुरेश, मेधावी किन्तु कठोर है। अग्रज कृष्णदास को वह हेय समझता है, क्यों कि वह आधुनिक सभ्यता से दूर है। माता-पिता सुरेश के आचरण से दुखी हैं। बाद में सुरेश वन में खो जाता है। पुस्तकी ज्ञान वहां काम नहीं आता। वह हताश है, इतने में कृष्णदास उसे ढूंढता हुआ पहुंचता है। उसकी सहायता से सुरेश बचता है और उसका स्वभाव परिवर्तित होता है। गर्भकुलार्णव - पार्वती-परमेश्वर- संवादरूप। 34 पटल। विषय कौलागम का सारभूत रहस्य । सौभाग्यदेवी की सविस्तर अर्चनाविधि का वर्णन है। गर्भकौलागम - शिवपार्वती संवाद रूप। विषय- ध्यान, जप, स्मरण और क्रिया के बिना पार्वती का अष्टोत्तर शत नामस्तोत्र ही सिद्धि देता है। गर्भपुष्टिव्रतम् - ले- श्रीनारायण। श्लोक- 25। श्रीरामडामरमन्त्रानुसार इसकी रचना हुई है। गांडीवम् - 1964 में वाराणसी से रामबालक शास्त्री के सम्पादकत्व में इस पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसमें सभी प्रकार के समाचारों का प्रकाशन होता था। श्री रामबालक शास्त्री के निधन के कारण कुछ वर्षों तक इसका प्रकाशन बंद रहा। बाद में श्री गोपालशास्त्री के संपादकत्व में यह पत्र संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित किया जाने लगा। गाथाकादंबरी (बाणभट्ट की कादम्बरी का पद्यमय रूप) - ले- वरकर कृष्ण मेनन। चित्तूर (कोचीन) के निवासी। केरल की लोकप्रिय गीत-पद्धति से प्रस्तुत गाथाओं की रचना
92 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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