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का काफी साम्य है । यथा
" नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः । । भगवद्गीता।
“अच्छेद्यं शस्त्रसङ्घातैरदाह्यमनलेन च । अक्लेद्यं भूप सलिलैरशोष्यं मारुतेन च । । गणेशगीता....... गणेशगीता टीका ले नीलकंठ चतुर्धर पिता गोविंद। । माता - फुल्लांबिका । ई. 17 वीं शती ।
लेखिका लीला राव दयाल । गणेशचतुर्थी (रूपक) गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रदर्शन कुफलदायी होता है- इस विश्वास पर आधारित कथानक ।
गणेशचरितम् - ले- घनश्याम आर्यक ।
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गणेशपंचविंशतिका
निवासी ।
गणेशपंचांगम् (1) रुद्रयामलान्तर्गत पांच ग्रंथ (1) गणपति मंत्रोद्धारविधि, महागणपति-पूजापद्धति (2) (3) महागणपतिपूजाकवच (4) महागणपति पूजासहस्रनामस्तव और (5) महागणपतिपूजास्तोत्र ।
गणेशपद्धति ले- उमानन्दनाथ । श्लोक- 500। गणेश- परिणयम् (नाटक) ले- वैद्यनाथशर्मा व्यास । इण्डियन प्रेस, प्रयाग से सन 1904 में प्रकाशित। मिथिला राजवंश के जनेश्वर सिंह द्वारा पुरस्कृत । अंकसंख्या सात । कथासार शिव के पास, ब्रह्मा अपनी पुत्रियां सिद्धि और बुद्धि के गणेश के साथ विवाह का प्रस्ताव भेजते हैं। गणेश का दूत नंदी सिंधुराज के पास इन्द्रादि देवताओं को मुक्त करने का सन्देश ले जाता है। सिंधुराज के न मानने पर युद्ध होता है और गणेश देवताओं को मुक्त कराते हैं। गणेश के विवाह में वे देवता सम्मिलित होते हैं।
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गणेशलीला ले. गंगाधरशास्त्री मंगरुळकर, नागपुर निवासी। 19 वीं शती ।
गणेशसहस्त्रनामव्याख्या - ले. गोपालभट्ट । गणेशशक्तिकम् ले. पं. अम्बिकादत्त व्यास । गणेशाचंनचन्द्रिका ले (1) ले मुकुन्दलाल (2) ले. । सदानन्द | 450 श्लोक । (3) ले- काशीनाथ। (4) ले - वृन्दावन । गणेशाचारचन्द्रिका - ले. दामोदर पटल- 7। विषय- संध्या, जप, बाह्यपूजा, ब्राह्मणभोजन, काम्यकर्म, मंत्रवैगुण्य होने पर प्रायश्चित्त, दक्षिणा, दान आदि ।
गद्यकथाकोश - ले- प्रभाचन्द्र जैनाचार्य । समय- दो मान्यताएं ई. 8 वीं शती । (2) ई. 11 वीं शती । गद्यकर्णामृतम् ले विद्याचक्रवर्ती ई. 13 वीं शती गद्यचिन्तामणि ले- वादीभसिंह | जैनाचार्य ।
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ले- विमलकुमार जैन । कलकत्ता
ले रामानुजाचार्य 1017-1137 ई. विषय
गद्यत्रयम् प्रपत्तियोग । गदनिग्रह ले सौद्दल गुजरात के निवासी तथा जोशी थे। समय- 13 वीं शताब्दी का मध्य गद-निग्रह 10 खंडों में विभक्त है प्रथम खंड में चूर्ण, गुटिका, अवलेह, आसव, घृत व तैल विषयक 6 अधिकार हैं। इसमें 585 के लगभग आयुर्वेदिक योगों का संग्रह भी है तथा अवशिष्ट 9 खंडों में कायचिकित्सा, शालाक्य, शल्य, भूततंत्र, बालतंत्र, विषतंत्र, वाजीकरण, रसायन व पंचकर्माधिकार नामक प्रकरण हैं। इसमें सुवर्णकल्प, कुंकुमकल्प, अम्लवेतसकल्प आदि अनेक कल्पों का भी वर्णन है। इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद सहित, दो भागों में प्रकाशन, चौखंबा विद्याभवन से हो चुका है। गद्यभारतम् - दो भाग । कवि पं. शिवदत्त त्रिपाठी । गद्यरामायणम् कवि- पं. शिवदत्त त्रिपाठी । गद्यवल्लरीले निजात्मप्रकाशान्दनाथ (मल्लिकार्जुनयोगीन्द्र) । श्रीविद्यापद्धतिरूप प्रथम खण्ड । श्लोक 2016| विषय - गुरुपरम्परावर्णन, सम्पदायप्रवृत्ति, प्रातः कृत्य, तांत्रिक संध्या, अर्द्धरात्रि में तुरीय संध्या तर्पण, श्रीविद्यापूजाविधि, प्राणप्रतिष्ठा, प्रपंचमार्ग, बालासम्पुटित, मातृकान्यास, लक्ष्मीसंपुटित, कामसंपुटित, श्रीविद्यासम्पुटित, श्रीकण्ठ, केशव, काम, रति, प्रणव, उत्थानकला आदि के मातृकान्यास, मालिनी कामसंकर्षिणी आदि के न्यास, परा, वैखरी, सूर्यकला, योग पीठ, ग्रह, नक्षत्रादि के न्यास, जपविधि, मण्डपध्यान, तथा श्रीविद्यामाहात्म्य आदि । गन्धर्वतंत्रम् दत्तात्रेय विश्वामित्र संवादरूप पटलसंख्या 42 विषय- तंत्र की प्रस्तावना विविध विद्याभेदों का उद्धार, पंचमी विद्या की उद्धारविधि, राजराजेश्वरी कवच, मन्त्रोद्धार आदि अंग और आवरण पूजा, कर्मयोगादि का क्रम । भूतशुद्धि, करशुद्धि, मातृकान्यास, पोढान्यासक्रम, नित्यन्यास आदि अन्तर्यागविधि। मानसपूजा, ध्यायनयोगक्रम, बहिर्यागक्रम, विशेषार्ध्यविधि, बहिहोंम प्रकार, पूजोपचार, प्रकटाप्रकट योगिनी पूजनक्रम, जपादिविधि बटुक आदि के लिए बलि पूजासम्पूरणादि उपासविधि, समयाचारविधि । कुमारी पूजन-क्रम, कुमारीपूजा का माहात्म्य, पुण्यपीठ कथन, आपत्कालीन पूजा आदि की विधि। गुरु, शिष्य और दीक्षा के लक्षण, दीक्षाविधि, पुरश्चरणविधि, विद्यासंकेतनिर्णय, त्रिकूट- साधनविधि, होमद्रव्यप्रयोग, मुद्राधारणविधि, चक्रराजप्रतिष्ठा, कुलाचार आदि । गन्धर्वराजमन्त्रविधि विषय- गन्धर्वराज विश्वावसु की पूजापद्धति, एवं सुन्दर पुत्रियों की कामना के लिये जपपद्धति ।
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गंधर्ववेद सामवेद का उपवेद । संगीत विद्या के सहारे आजीविका चलाने वाले गंधर्व का यह वेद है, इसलिये इसे गंधर्ववेद कहा गया। यह ग्रंथ अब उपलब्ध नहीं है, तथापि तांत्रिक ग्रंथ के अनुसार संगीत पर रचे गये इस वेद में 36
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 91