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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 छन्दः शास्त्र वेदमंत्रों का यथोचित उच्चारण छंदों के ज्ञान के बिना असंभव है। प्रत्येक सूक्त की देवता, ऋषि, और छंद के ज्ञान हुए बिना वेदों का अध्यापन या जप करने वाला पापी माना जाता है। सर्वांनुक्रमणीकार कात्यायन कहते हैं कि "मन्त्र का ऋषि, छंद, देवता और विनियोग न जानते हुए, उस मंत्र से जो यजन करवाता है अथवा उसका अध्यापन करता है, वह खंभे से टकराता है, गढ्ढे में जा पड़ता है अथवा महापाप का धनी होता है।" भास्कराचार्य ने छंदस् शब्द की निरुक्ति "छंदासि छादनात्' वेदों का आच्छादन या आवरण होने के कारण छंदस् संज्ञा हुई। छद् छादने अथवा चद् आह्लादने इन धातुओं से छंदस् शब्द की व्युत्पत्ति मानी जाती है। पाणिनीय शिक्षा में छंद को वेद पुरुष का चरण कहा है। ("छंदः पादौ तु वेदस्य") मानव जिस प्रकार चरणों के आधार पर खड़ा होता है, उसी प्रकार वेदों को छंदों का आधार है। संहिता तथा ब्राह्मण ग्रंथों में गायत्री, उष्णिक, अनुष्टभ, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुभ, और जगती इन प्रमुख सात वैदिक छंदों का नामनिर्देश हुआ है। वेदांगभूत छंदःशास्त्र की दृष्टि से पिंगलकृत छंदःसूत्र नामक ग्रंथ प्रमाणभूत माना गया है। पिंगलाचार्य अथवा पिंगलनाग कृत छन्दःसूत्रों को ही छंदःशास्त्र कहते हैं। इस शास्त्र का निर्देश "छंदोविचिती' नाम से भी होता है। तदनन्तर उत्तरकालीन छंदों का विवेचन पिंगलसूत्रों में मिलता है। अतः पिंगलाचार्य के काल के विषय में मतभेद हुए हैं। __ वैदिक छंदों का सर्वप्रथम विवेचन सांख्यायन श्रौतसूत्रों में मिलता है। उसके बाद निदान सूत्रों के प्रारंभिक पटलों में ऋक्प्रतिशाख्य के अंतिम तीन पटलों में और छन्दोनुक्रमणी में हुआ है। शुक्लयजुर्वेद में भी छंदों का निर्देश मिलता है। पिंगलाचार्य का छन्दःसूत्र इनसे उत्तरकालीन है और उसमें भी कतिपय पूर्वकालीन छन्दःशास्त्रज्ञों का निर्देश हुआ है। महर्षि पिंगलकृत 'छन्दःसूत्र" ग्रन्थ आठ अध्यायों का है जिन में वैदिक एवं लौकिक छंदों का स्वरूप बताया है। इस ग्रंथ में वर्णवत्तों की संख्या अपार (1 कोटि, 61 लाख, ७७ हजार, दो सौ सोलह) बताई है। इनमें से केवल पचास छंदों का संस्कृत साहित्य में उपयोग हुआ है। वैदिक यज्ञ के प्रातःसवन में गायत्री, माध्यंदिन सवन में त्रिष्टुभ् और तृतीय सवन में जगती छंद का प्रयोग होता है। गायत्री छंद के 24 अक्षर और तीन चरण होते हैं। उष्णिक के 28, अनुष्टुभ् के 32, बृहती के 36 पंक्ति के 40, त्रिष्टुभ् के 44 और जगती 48 अक्षर होते हैं। कात्यायन की सर्वानुक्रमणी में ऋग्वेद के सभी मंत्रों की संख्या का निर्देश छंदों के अनुसार किया है। तदनुसार : गायत्री में 2467 मंत्र। पंक्ति में 312 मंत्र। उष्णिक में 341 मंत्र। त्रिष्टुभ् में 4253 मंत्र। अनुष्टुभ् में 855 मंत्र। जगती में 1350 मंत्र। बृहती में 181 मंत्र। इनके अतिरिक्त तीन सौ मंत्र अतिजगती, शक्वरी, अतिशक्वरी, अष्टी, प्रत्यष्टी, इत्यादि अवांतर छन्दों में रचित हैं। एकपदा ऋचाओं की संख्या छह और नित्यद्विपदा ऋचाओं की संख्या सतरह है। इसी सूची के अनुसार ऋग्वेद में त्रिष्टुभ् छंद का प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है। बाद में गायत्री और जगती का क्रम आता है। अनुष्टुप् छंद संस्कृत के विदग्ध वाङ्मय में उपयोजित छंदों का मूल वैदिक छंदों में ही माना जाता है। रामायण की कथा के अनुसार अनुष्टुभ् का लौकिक आविष्कार वाल्मीकि के मुख से क्रौंचवध का करुण दृश्य देखते ही हुआ। प्रायः सभी पुराणों एवं महाकाव्यों में अनुष्टुभ् छंद का ही प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है। छन्दःशास्त्र विषयक ग्रन्थों में अनुष्टुभ् छंद का लक्षण : 1 पंचमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः। गुरु षष्ठं च पादानां शेषेष्वनियमो मतः ।। 2 श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम् द्विचतुःपादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ।। 3 अष्टाक्षर समायुक्तं सर्वलोकमनोहरम्। तदनुष्टुभ् समाख्यातं न यत्र नियमो गणे।। 4 पंचमं लघु सर्वत्र गुरु षष्ठमुदीरितम्। समे लघु विजानीयात् विषमे गुरु सप्तमम् ।। इन श्लोकों में बताया गया है और प्रायः वह प्रमाणभूत माना जाता है। परंतु इन कारिकाओं में निर्दिष्ट लक्षणों का यथायोग्य पालन कालिदास माघ जैसे श्रेष्ठ कवियों ने भी सर्वत्र नहीं किया है। अतः महाकवियों द्वारा प्रयुक्त अनुष्टुभ् छंदों का स्वरूप ध्यान में लेते हुए एक सुधारित लक्षण बताया गया है। वह है : अष्टाक्षरसमायुक्तं विषमेऽनियतंच यत्। षष्ठं गुरु समे पादे पंचमं सप्तमं लघु।। तदनुष्टुभिति ज्ञेयं छंदः सत्कविसम्मतम्।। 56/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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