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हरिहरोपाध्याय - ई. 17 वीं शती। मिथिला-निवासी। माता- के आधार पर डा. लेवी को अनुवाद उपलब्ध है। इन्होंने 3 लक्ष्मी। पिता- राघव। कृतियां- प्रभावती- परिणय (नाटक) नाटक भी लिखे हैं- रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानंद। और हरिहर- सुभाषित अथवा सूक्ति-मुक्तावली।
हर्षवर्धन के रत्नावली नामक नाटक पर कालिदास के नाटक हर्याचार्य - श्रीजानकी-गीत काव्य के रचयिता। गालवाश्रम मालविकाग्निमित्र का प्रभाव दिखता है। चित्रों का रेखांकन (गलता-गद्दी) के पीठाधीश्वर। रामभक्ति शाखा में हर्याचार्य सुव्यवस्थित है। उनके नागानंद नामक नाटक पर बौद्धधर्म की । के श्रीजानकी-गीत को मान्यता प्राप्त है।
गहरी छाप अंकित है। हर्षकीर्ति - ई. 17 वीं शती में आप नागपुरीय तपागच्छ हसूरकर श्रीपाद शास्त्री - इन्दौर के संस्कृत महाविद्यालय में शाखा के अध्यक्ष थे। गुरु- चन्द्रकीर्ति । इन्होंने अमरकोश के प्रधानाचार्य। सिक्खगुरु- चरितामृत नामक प्रबंध में नानक, आधार पर 'शारदीयाख्यान-माला' नामक शब्दकोश की रचना
अंगद, अमरदास, रामदास, अर्जुनसिंह, हरगोविन्द, हरराय, की है। इस कोश के 5 सर्ग हैं। श्लोक 465 है, जो सभी हरकिसन, तेजबहादुर तथा गुरु गोविंदसिंह इन 10 सिक्ख अनुष्टुप् छन्द में हैं। उक्त कोश के अतिरिक्त इन्होंने बृहच्छान्तिस्तोत्र, गुरुओं का चरित्र उत्कृष्ट गद्य में वर्णन किया है। अन्य रचनाएं - कल्याणमन्दिर-स्तोत्र, सारस्वत- दीपिका, धातुपाठतरंगिणि, (1) छत्रपति शिवाजी-महाराज चरितम्, (2) योगचिंतामणि, वैद्यकसारोद्धार और ज्योतिःसारोद्धार नामक ग्रंथों
महाराणा प्रतापसिंह-चरितम्, (3) श्रीमद्वल्लभाचार्य-चरितम्, का प्रणयन किया है।
(4) श्रीरामदास-स्वामि-चरितम्, (5) पृथ्वीराज चौहान-चरितम्। हलायुध- (1) ई. 8 वीं शती। ये राजा कृष्ण (प्रथम) ये ग्रंथ "भारत नररत्नमाला" के पुष्प है। इनके अतिरिक्त १ राष्ट्रकुल की सभा में थे। इन्होंने अमरकोश के आधार पर
काव्य अमुद्रित है। (6) मोक्षमन्दिरस्य द्वादशदर्शन-सोपानावलि 'अभिधान- रत्नमाला' नामक शब्दकोश लिखा है जो नामक गद्य प्रबंध सर्वदर्शन-संग्रह की योग्यता का ग्रंथ यह है। 'हलायुध-कोश' के नाम से विख्यात है। इन्होंने कविरहस्य व मृतसंजीवनी नामक ग्रंथ भी लिखे हैं।
हस्तामलक - ई. 7 वीं शती। पिता-प्रभाकर मिश्र ।
शाखा-आश्वलायन । संभवतः ऋग्भाष्य के रचयिता। भाष्य-ग्रंथ (2) ई. 12 वीं शती। पिता- धनंजय। ये लक्ष्मण सेन
अनुपलब्ध है। हस्तामलक आद्य शंकराचार्य के चार प्रमुख नामक राजा की सभा में थे तथा इन्हें बाल्यावस्था में ही
शिष्यों में से एक थे। श्वेतछत्र धारण करने का अधिकार प्राप्त था। इन्होंने सायणाचार्य के पूर्व शुक्ल यजुर्वेद की काण्व संहिता पर ब्राह्मणसर्वस्व
हरिणचन्द्र चक्रवर्ती - ई. 19 वीं शती। कलकत्ता-निवासी। नामक भाष्य लिखा। मीमांसा-सर्वस्व, वैष्णव-सर्वस्व और
प्रख्यात वैद्य । आपने "सुश्रुत संहिता" पर व्याख्या लिखी है। पंडित-सर्वस्व नामक ग्रंथ भी इन्होंने लिखे हैं।
हारीत - धर्मशास्त्र के एक सूत्रकार। ये ई.स. 400 से 700 (3) ई. 12 वीं शती। संकर्षण के पुत्र। इन्होंने कात्यायन
के बीच हुए होंगे क्यों कि बोधायन, आपस्तंब व वसिष्ठ ने के श्राद्धकल्पसूत्र पर 'प्रकाश' नामक भाष्य लिखा है।
इनके धर्मसूत्रों के उद्धरण दिये हैं। हारीत का धर्मसूत्र, अन्य
धर्मसूत्र से विशाल ग्रंथ है क्यों कि इसमें उन्होंने वेद, वेदांग, हस्तिमल्ल - समय- ई. 13 वीं शती। दिगम्बर पंथी जैन
धर्मशास्त्र, अध्यात्म-विद्या और ज्ञान की अन्य शाखाओं का ग्रंथकार । वत्स्य गोत्रीय ब्राह्मण । जन्मस्थान- दीपनगुडि (तंजौर)।
विचार किया है। इसमें विवाह के आठ प्रकार बताये हैं, मूलनाम- मल्लिषेण। पिता- गोदिभट्ट। इनके नाम को लेकर
नट-व्यवसाय निंद्य माना है और ब्रह्मवादिनी कन्याओं को एक आख्यायिका यह बतायी जाती है कि ये हस्तिविद्या में
उपनयन संस्कार का अधिकार दिया है। सम्पत्ति विषयक पारंगत थे तथा इन्होंने एक मदोन्मत्त हाथी को शांत किया
अधिकारों की भी इसमें चर्चा है। न्यायालयीन जांच को था। इनके पराक्रम से इन्हें पांड्य राजा की सभा में सम्मानजनक
धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र के नियमों पर आधारित बताया गया है। आश्रय मिला। तब से लोग इन्हें हस्तिमल्ल कहने लगे। इन्होंने आठ नाटक लिखे जिनके नाम इस प्रकार हैं
हिरण्यगर्भ प्राजापत्य - ऋग्वेद के 10 वें मंडल में 120 विक्रान्त-गौरव, मैथिली-कल्याण, अंजनापवनंजय, सुभद्रा,
वें सूक्त के द्रष्टा । सृष्टि की उत्पत्ति संबंधी यह सूक्त, प्रजापतिउदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज व मेघेश्वर। इनमें से प्रथम
सूक्त नाम से विख्यात है। चार नाटक प्रकाशित अवस्था में उपलब्ध हैं। इनकी एक और हिरण्यस्तूप - ऋग्वेद के 10 वें मंडल में 149 वें सूक्त के रचना है- आदि पुराण।
द्रष्टा। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति की उपपत्ति बतायी गयी है। हर्षवर्धन - कन्नौज के सुप्रसिद्ध प्राचीन सम्राट (601 से 647
हितहरिवंशजी - राधावल्लभीय संप्रदाय के प्रवर्तक महात्मा । ई.)। चीनी यात्री ह्युएन सांग के प्रभाव से बौद्ध-मत स्वीकृत। सांप्रदायिक मतानुसार श्री मुरली के अवतार। पिता का नाम साथ ही प्रबल समर्थक। जीवन के अन्त में 'सुप्रभात - केशवदास मिश्र। माता का तारावती। गौड ब्राह्मण। उपनाम स्तोत्र' तथा 'महाश्रीचैत्यस्तोत्र' का रचना की। तिब्बती प्रतिलेखों
___व्यासजी। इनके जन्म-स्थान तथा आविर्भावकाल के विषय में
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 493
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