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शत वार्षिकोत्सव में रवीन्द्र पुरस्कार प्राप्त। स्वतंत्र भारत के पद्मभूषण। सन् 1962 में राष्ट्रपति की ओर से मानपत्र । कुल 12 उपाधियों से विभूषित माता-विमुखी, पिता गंगाधर विद्यालंकार । पितामह- काशीचन्द्र वाचस्पति । गुरु जीवानन्दविद्यासागर | कृतियां कंसवध जानकी- विक्रम, मिवारप्रताप, विराज- सरोजिनी, शिवाजी चरित तथा वंगीय प्रताप ये नाटक । रुक्मिणीहरण (महाकाव्य), विद्यावित्त-विवाद, शंकर-सम्भव तथा वियोगवैभव ये तीन खण्डकाव्य, सरला (गद्य), स्मृति चिन्तामणि, काव्यकौमुदी और साहित्यदर्पण की वृत्ति । वैदिक-वादमीमांसा (ऐतिहासिक), आदिपर्व से वनपर्व तक महाभारत की टीका । दशकुमारचरित एवं कादम्बरी की व्याख्याएं मुच्छकटिक, शाकुन्तल, उत्तररामचरित की टीका बंगला पुस्तकें- युधिष्ठिर समय तथा विधवार अनुकल्प।
हरिपाल देव सोमनाथ के पोते । देवगिरि के यादव वंश के राजा हो सकते हैं- (ई.स. 1312 से 1318) मुबारक द्वारा 1318 ई. में हत्या । चालुक्यवंशीय अनहिलवाड नरेश हरिपाल (ई.स. 1145-1155) ये नहीं हो सकते। रचनासंगीत- सुधाकर।
हरिभद्रसूरि - ई. 5 वीं शती चित्रकूट नगर में हरिभद्र नाम ब्राह्मण रहते थे। वे राजा जितारि के पुरोहित थे। हाथ में जंबू वृक्ष की एक शाखा लिये, वे कमर में स्वर्ण-पट्ट बांधे रहते। वह जंबूद्वीप में सर्वश्रेष्ठ विद्वान होने का प्रतीक था वह । उन्होंने याकिनी नामक जैन साध्वी से प्रभावित होकर जैन सम्प्रदाय की दीक्षा ली। इनके बारे में कहा जाता है, कि इन्होंने 1400 प्रबन्ध लिखे ।
(2) ई. 8 वीं शती में श्वेताम्बर जैनियों के आचार्य जिन्होंने लगभग 76 ग्रंथों की रचना की। इनमें से कुछ नाम इस प्रकार है- अनेकान्तवाद प्रवेश अनेकान्तजयपताका, ललितविस्तर षड्दर्शनसमुच्चय, धूर्ताख्यान, नंदिसूत्रवत्ति, योगबिन्दु आदि।
हरियज्वा ई. अठारहवीं शती । पिता लक्ष्मीनृसिंह । 'विवेक मिहिर' नामक नाटक के रचयिता ।
हरियोगी नामान्तर- प्रोलनाचार्य अथवा शैवलाचार्य। ई. 12 वीं शती । ग्रंथ पाणिनीय-धातुपाठ पर शाब्दिकाभरण नामक व्याख्या और धातुप्रत्यय- पंजिका ।
हरिराम तर्कवागीश ई. 17 वीं शती कृतियां तत्त्वचिन्तामणि टीका विचार, आचार्य मत रहस्य- विचार रत्नकोष-विचार और स्वप्रकाशरहस्यविचार | हरिवल्लभ शर्मा (कविमल्ल) जन्म 1848 ई. में । 'कविमल्ल' व 'मल्लभट्ट की उपाधियों से अलंकृत हरिवल्लभ शर्मा का जन्म जयपुर के राजवैद्य - परिवार में हुआ था। इनके पिता जीवनराम शर्मा महाराज रामसिंह द्वितीय (1835-1880
492 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
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ई.) के आश्रित थे। कविमल्ल की प्रसिद्ध रचनाएं 1. जयनगरपंचरंग (ऐतिहासिक खण्डकाव्य), 2. श्लोकबद्ध - दशकुमारचरित दशकुमार-दशा, ललनालोचलोल्लास (काव्य), 4. कान्तावक्षोजशतोक्तयः (काव्य), 5. शृंगारलहरी, 6. मुक्तकसूक्तानि इत्यादि. हरिशास्त्री दाधीच (पं) जन्म 1893 ई. में आशुकवि दाधीच का जन्म जयपुर में हुआ था। इनके पिता दामोदर दाधीच थे। आप तन्त्रशास्त्र के परम विद्वान थे। आपको जीवन में साहित्याचार्य, आशुकवि, साहित्यसुधानिधि, कवि चक्रवर्ती, काव्यरत्नाकर कविभूषण आदि अनेकों उपाधियों से सम्मानित किया गया था। आपकी प्रकाशित रचनाएं हैं1. अलंकारकौतुक, 2. अलंकारलीला, 3. ललितासहस काव्य, 4. शक्तिगीतांजलि 5. सिद्धिस्तव, 6. प्रेमसुधा, 7. दधिमथी, 8. पुष्पितामा 9. लक्ष्मीनक्षत्रमाला 10. राममानसपूजन 11. वाणीलहरी, 12. उदरप्रशस्ति और 13. शिवरत्नावली। अप्रकाशित कृतियों के नाम इस प्रकार हैं- 1. संजीवनी - साम्राज्य, 2. साम्राज्यसिद्धिकाव्य, 3. वर्णबीजाभिधान, 4. अन्योक्तिविनोद, 5. अन्योक्तिमुक्तावलि, 6. अम्बिकासूक्त आदि ।
हरिश्चंद्र- ई. 19 वीं शती। जयपुर के राजा रामसिंग के आदेशानुसार आपने 'वर्गसंग्रह' नामक ग्रंथ का लेखन किया । हरिषेण हरिषेण नाम के अनेक आचार्य हुए 1. समुद्रगुप्त के राजकवि, 2. अपभ्रंश ग्रंथ धर्मपरीक्षा के रचयिता (ई. 11 वीं शती), 3. मुक्तावली के रचयिता (ई. 13 वीं शती), 4. जगत्सुन्दरी योगमलाधिकार के रचयिता, 5. यशोधरचरित में उल्लिखित 6. अष्टाड़िकी कथा के रचयिता और 7. बृहत्कथाकोश के रचयिता जो जैनी पुत्राटसंघ के आचार्य थे गुर्जर प्रतिहार वंशी राजा विनायक पाल के राज्यकाल में वर्धमानपुर में कोश की रचना हुई। (रचनाकाल - ई. 931 ई.) । बृहत्- कथाकोश में 157 कथाएं और 12500 श्लोक हैं। आयुर्वेद, ज्योतिष, दर्शन आदि विषयों का वर्णन इस कोश में है।
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हरिस्वामी शतपथ ब्राह्मण के भाष्यकार । समय- ई. 10 वीं शती से पूर्व कर्काचार्य अपने कात्यायन श्रौतसूत्र भाष्य में हरिस्वामी को उद्धृत करते हैं। उबटाचार्य, कर्काचार्य और भोजराज का निर्देश करते हैं। हरिस्वामी ने विक्रमार्क अवन्तिनाथ का निर्देश किया है। इन सभी प्रमाणों से हरिस्वामी का समय दशम शताब्दी से पूर्व का हो सकता है। संभवतः कात्यायन औतसूत्र और यजुर्वेद पर भी इनकी भाष्य-रचना है। सग्भाष्यकार स्कंदस्वामी इनके गुरु थे ।
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हरिहर त्रिवेदी (डा.) ई. 20 वीं शती मध्यभारत के निवासी । प्रयाग वि.वि. से एम.ए., डी. लिट. । मध्यभारत की राजकीय सेवा में उच्च पदों पर। मध्यप्रदेश के पुरातत्त्व विभाग के उपसंचालक पद से निवृत्त होकर इंदौर में निवास । कृतियांनागराज - विजय, गणाभ्युदय आदि ।
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